लखनऊ : राजधानी स्थित केजीएमयू में अंतरराष्ट्रीय जाॅर्जियन एल्युमिनाई मीट 2023 का शनिवार को समापन हुआ. इस दौरान ईटीवी भारत की टीम ने देश-विदेश के बड़े विशेषज्ञों से खास बातचीत की. इस दौरान विदेश से आए एल्युमिनाई ने इंटर्नशिप से लेकर रैगिंग तक की यादों को साझा किया. इस दौरान केजीएमयू के छात्र-छात्राओं ने एल्युमिनाई को क्रिसमस डे विश करने के लिए सांता क्लॉज बनकर सभी को गुदगुदाया. इसके अलावा एडवांस में सभी सीनियर्स को टॉफी चॉकलेट देकर 'हैप्पी क्रिसमस डे' विश किया.
मुजफ्फरनगर के रहने वाले डॉ. आशीष मिनोचा सन् 1981 के बैच के हैं. वर्तमान में वह इंग्लैंड नॉर्विच के जेनी लैंड चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में कार्यरत हैं. केजीएमयू से एमबीबीएस और एमएस किया. इसके बाद ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट नई दिल्ली से नवजात शिशुओं की सर्जरी की पढ़ाई पूरी की. डॉ आशीष ने बताया कि 'इंग्लैंड में जब वह प्रैक्टिस कर रहे थे, उसे समय पर वहां एडजस्ट होने में थोड़ा समय लगा. इसके पीछे बड़ा कारण यह था कि जब हमने केजीएमयू में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू की.
लखनऊ की इंदिरानगर की रहने वाली डॉ. बीरबाला दीक्षित इंग्लैंड के पूर्व में विप्स क्रॉस हॉस्पिटल कार्यरत थीं. केजीएमयू में सन् 1962 बैच था. 1967 में पास किया. 1970 में इग्लैंड चली गई. फिर एमआरसीओजी किया, एफआरसीओजी किया. मुश्किल का सफर था. अपनी यादें जुड़ी रहती हैं लखनऊ की. हम लोग वहां भी मीट करते हैं तो यादें जुड़ी रहती हैं. डॉ. बीरबाला ने बताया कि इंग्लैंड में सर्जन को मिस्टर या मिसेज कहकर संबोधित करते हैं वहां पर अस्पताल में लोग मिसेज बीरबाला कहकर बुलाते हैं. खैर, अब तो आदत पड़ गई है.
सहारनपुर की रहने वाली प्रो. सुषमा सागर केजीएमयू में सन् 1986 में पढ़ाई के लिए आई थीं. वह बताती हैं कि वर्तमान समय में न्यू दिल्ली एम्स में हूं. केजीएमयू से उन्होंने एमबीबीएस में दाखिला लिया था. वर्तमान में एम्स दिल्ली के ट्राॅमा सेंटर की हेड हैं. उन्होंने कहा कि केजीएमयू में बहुत कुछ बदलाव हुआ है. अब चीज बहुत बदल चुकी हैं, लेकिन केजीएमयू की बिल्डिंग नहीं बदली है. आज भी जब लखनऊ आते हैं तो केजीएमयू जरूर आते हैं. यहां पर हमने सुनहरे पल बिताए हैं.
लखनऊ के बावर्ची टोला के रहने वाले डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव सन् 1958 बेच के स्टूडेंट रहे हैं. उन्होंने कहा कि 'इंग्लैंड में काम करने का अलग ही उन दिनों में क्रेज था, लेकिन हमारी जो नींव है वह केजीएमयू है. हम केजीएमयू के स्टूडेंट रहे हैं. हम जहां जाते हैं, वहां पर बेहतर काम करके दिखाते हैं.'
केजीएमयू के 1956 बैच के डॉ. गिरीश चन्द्रा वर्तमान में लंदन में रहते हैं. एमबीबीएस की पढ़ाई की. फिर ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट में 1966-68 तक पढ़ाया. पांच साल कनाडा रहे. फिर 12 साल अमेरिका में रहे. फिर 10 साल सऊदी अरब में काम किया. फिर इंग्लैंड वापस आ गये. उन्होंने कहा कि 1968 में इंग्लैंड गए.
रायबरेली के रहने वाले डॉ. रामराज सिंह 1976 बैच के स्टूडेंट हैं. एमबीबीएस और एमडी की पढ़ाई की है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया एट लॉस एंजेलिस, प्रोफेसर ऑफ मेडिसिन एंड पैथोलॉजी है. इसके साथ ही रेमेटॉलोजिस्ट हैं. उन्होंने कहा कि हम कहीं भी रह लें, लेकिन हमारी जड़ केजीएमयू है.'