लखनऊ: 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा विरोधी दिवस को देश में मद्यनिषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन नशा मुक्ति के लिए गोष्ठियां और रैलियां भी निकाली जाती हैं, लेकिन इनका प्रभाव सीमित हो गया है. भारत को दुनिया का सबसे युवा देश कहा जाता है, क्योंकि यहां पर 65 फीसदी आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है, लेकिन यही आबादी आज नशे के कुचक्र में जकड़ती जा रही है. आंकड़ों के मुताबिक देश की 130 करोड़ की आबादी में से 10 करोड़ से ज्यादा लोग नशाखोरी के दलदल में फंस चुके हैं. वहीं, हर साल लाखों की संख्या में लोगों की मौत की वजह भी नशाखोरी है.
नशा शरीर को दीमक की तरह खोखला ही नहीं करता, बल्कि घर में अशांति और आर्थिक स्थिति को कमजोर कर देता है. वहीं, उत्तर प्रदेश का मद्यनिषेध विभाग नशे के कुचक्र से लोगों को बाहर निकालने के लिए नशा मुक्ति अभियान चलाता है. इसके अंतर्गत नशे के खिलाफ प्रचार-प्रसार और जागरूकता फैलाई जाती है, लेकिन विभाग के सीमित संसाधनों के चलते प्रदेश का मद्यनिषेध विभाग नशाखोरी में फंसे लोगों को नशे से मुक्ति दिलाने में ज्यादा कामयाब नहीं हुआ है. साल 2018 से लेकर 2021 तक केवल 11 हजार लोगों को ही नशे से मुक्त किया जा सका है. जबकि, प्रदेश की 24 करोड़ आबादी में एक करोड़ से ज्यादा लोग नशे के कुचक्र में फंसे हुए हैं.
आजादी के बाद से ही कांग्रेस की जवाहरलाल नेहरू की सरकार के समय से ही मद्यनिषेध विभाग के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. उत्तर प्रदेश में सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व नशे के सामानों से मिलता है. प्रदेश सरकार ने लॉकडाउन में भी शराब की दुकानों को खोले रखा. वहीं, दूसरी तरफ नशा मुक्ति अभियान के प्रचार-प्रसार करने के लिए 7 क्षेत्रीय कार्यालय बनाए गए हैं. प्रदेश में 22 नशा मुक्ति केंद्र भी संचालित हो रहे हैं, जहां पर नशे के कुचक्र में फंस चुके बीमार लोगों को रखकर उपचार किया जाता है.
प्रदेश की 24 करोड़ की आबादी में नशा करने वालों का प्रतिशत 10 फीसदी से भी ज्यादा है. नशे से दूर रखने के लिए बनाए गए मद्य निषेध विभाग के पास आज न तो संसाधन है और न ही मैन पावर. ऐसे में जमीन पर उतरकर केवल प्रचार-प्रसार और दीवारों पर वॉल पेंटिंग करके लोगों को नशे से मुक्ति नहीं दिलाई जा सकती है. मध निषेध के बजट में भी कटौती जारी है 2020-21 में प्रदेश का बजट 45 लाख 50 हजार था, लेकिन 2021-22 में बजट में 25 फीसदी की कटौती कर दी गई.
मध निषेध विभाग में कर्मियों की कमी
उत्तर प्रदेश की आबादी 24 करोड़ से भी ज्यादा हो गई है. वहीं, इस आबादी के 1.6 करोड़ लोग नशे की गिरफ्त में हैं. लोगों को नशा मुक्त करने की जिम्मेदारी प्रदेश के मद्यनिषेध विभाग के ऊपर है. दूसरी तरफ यह विभाग सरकार की उदासीनता के चलते खुद बीमार हो गया है. प्रदेश के 75 जिलों में 94 पद स्वीकृत हैं, जबकि वर्तमान में 57 पद ही मौजूद हैं. इस विभाग में कर्मियों की कमी के चलते केवल गिनती के लोगों को ही नशा से मुक्ति दिलाई जा सकती है. क्षेत्रीय मंडल मध निषेध अधिकारी जलज मिश्रा ने बताया कि उनके अंतर्गत जो जिले आते हैं, वहां पर 2020-21 में 780 लोगों को नशे से मुक्ति दिलाई गई. वहीं, प्रदेश में विगत 3 वर्षों में करीब 10876 लोग नशा से मुक्त हुए हैं.
मध निषेध विभाग के नशा मुक्ति के आंकड़े
वर्ष | 75 जिले | 10 जनपद | बजट |
2018-19 | 4135 | 1324 | 4550000 |
2019-20 | 3713 | 964 | 4550000 |
2020-21 | 3028 | 780 | 25 %कमी |
विभाग में पदों के सापेक्ष आधे लोगों की कमी
उत्तर प्रदेश के मद्यनिषेध विभाग का काम जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण सरकार के विभाग के प्रति जिम्मेदारी भी है. लगातार उपेक्षित रहने के चलते विभाग में स्वीकृत पदों के सापेक्ष अब कर्मियों की संख्या घटकर आधी रह गई है. ऐसे में नशा मुक्ति का काम प्रभावित हो चुका है. इसके चलते इतनी बड़ी आबादी में गिनती के लोगों को ही नशे से मुक्ति दिलाई जा सकती है.
पद | स्वीकृत | वर्तमान की संख्या |
DPO | 27 | 13 |
DRO | 6 | 3 |
TS | 7 | 2 |
कुल स्वीकृत पद -94 | ||
वर्तमान में पद-57 |
जब गिनती के हैं नशा मुक्ति केंद्र तो कैसे मिलेगी नशे से मुक्ति
देश में नशीले पदार्थों के सेवन की समस्या से निपटने के लिए सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय ने नशा मुक्त भारत अभियान की शुरुआत 272 जिलों में की है. वहीं, इस अभियान में नारकोटिक्स ब्यूरो नशीले पदार्थ का उपयोग करने के आदी हो चुके लोगों तक पहुंच, सामाजिक न्याय मंत्रालय के द्वारा जागरूकता फैलाने और उनकी नशा मुक्ति के प्रयास भी शामिल हैं. उत्तर प्रदेश में 75 जिलों में 22 नशा मुक्ति केंद्र संचालित हैं, जिनमें 1 महीने तक नशे के आदी मरीज को भर्ती करके उसका उपचार किया जाता है.
कोरोना संक्रमण के दौरान फैलाई गई जागरूकता
कोरोना संक्रमण के दौर में चिकित्सकों ने सोशल मीडिया पर अपने संदेशों द्वारा लोगों में जागरूकता फैलाई. इसके चलते देश में बहुत से लोग नशे से मुक्त हुए. इस बात को खुद क्षेत्रीय मध निषेध अधिकारी जलज मिश्रा स्वीकार करते हैं. उन्होंने कहा कि बहुत से लोगों ने सिगरेट पीना इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि कोरोना वायरस के संक्रमण से फेफड़ों में ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा था.
नशे की लत से बेटे की हुई मौत तो सांसद पिता ने चलाया नशा मुक्ति अभियान
लखनऊ के मोहनलालगंज से बीजेपी सांसद कौशल किशोर के 28 साल के बेटे आकाश की मौत नशे के कुचक्र में फंसने के चलते हो गई. बेटा शराब पीता था, जिसके चलते उसका लीवर फेल हो गया और मौत हो गई. जवान बेटे की मौत ने सांसद कौशल किशोर को झकझोर कर रख दिया. फिर उन्होंने युवाओं को नशे से मुक्ति दिलाने के लिए अभियान चलाया. उनके द्वारा लगातार क्षेत्रीय स्तर पर गांव तक नशा मुक्ति की कमेटियां बनाई गई हैं. युवाओं को नशे से दूर रहने के लिए कसमें खिलाई जाती हैं.
अब तक 70000 युवाओं को नशे से दूर किया गया है. सांसद ने बताया उन्हें बेटे की मौत ने झकझोर के रख दिया. उनका बेटा शराब का आदी हो गया था, जिससे उसकी मौत हो गई. उन्होंने उत्तर प्रदेश को भी नशा मुक्त बनाने के लिए सरकार को शराब से लेकर नशे के सभी सामानों पर रोक लगाने की मांग की है. उन्होंने बिहार का उदाहरण बताया और कहा कि जब एक प्रदेश इसका जीता जागता सबूत है तो हम क्यों नहीं उस मॉडल को अपना सकते हैं.
नशे के कुचक्र से बर्बाद हो रहीं जिंदगी
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2017-19 के बीच 2300 लोगों की मौत हुई है. मरने वालों की आयु 30 से 45 साल के बीच की है. इस अवधि में 236 लोग उत्तर प्रदेश में मरे हैं, जबकि आंकड़ों के अनुसार राजस्थान सबसे ऊपर है. जहां 338 लोगों की मौत हुई है. एनसीआरबी की 20-21 के आंकड़े अभी प्रकाशित नहीं हुए हैं, फिर भी पहले के मुकाबले बढ़ोतरी का ही अनुमान है.
उत्तर प्रदेश में बढ़ रहा नशाखोरी का चलन
नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर के सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में शराब के शौकीनों की संख्या 1.6 करोड़ है और 28 लाख लोग गांजे का शौक रखते हैं. करीब 100000 लोग इंजेक्शन के जरिए नशे का शौक पूरा करते हैं और 10.7 लाख लोग अफीम का नशा करते हैं. वहीं, इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार कि प्रदेश में 94000 नाबालिग बच्चे नशे की गिरफ्त में हैं. मध्य प्रदेश दूसरे और महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है. इन दिनों बच्चों में सूंघने वाला नशा करने की प्रवृत्ति बढ़ रही हैं. इनमें ज्यादातर बच्चे बेघर हैं या गली-मोहल्ले में घूमकर कूड़ा बीनते हैं. सर्वे की रिपोर्ट पर गौर करें तो 1.7 लाख लोग अफीम का नशा करते हैं.
नशाखोरी का समाज पर प्रभाव
शराब, सिगरेट, अफीम, गांजा, हीरोइन, कोकीन, चरस और तंबाकू का प्रयोग देश की एक बड़ी आबादी नशे के लिए करती है. वहीं, यह नशा इनके प्रयोग करने वालों के शरीर को खोखला कर देता है. इसके साथ ही शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से भी यह व्यक्ति को कमजोर कर देता है. आज न सिर्फ युवा, बल्कि युवतियां भी तेजी से नशे के कुचक्र में फंसती जा रही हैं.
नशाखोरी का एक बड़ा कारण
देश में नशाखोरी की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. इसके लिए हमारी सरकारें भी जिम्मेदार हैं. उत्तर प्रदेश के किसी भी कोने में चले जाएं वहां किताबों, वस्त्र या भोजन भले ही न मिले, लेकिन नशीले पदार्थों की खुलेआम बिक्री हर जगह मिल जाएगी. शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में शराब की दुकानें भी खूब खुली हुई हैं. इसके चलते लोग नशाखोरी की लत में पड़ जाते हैं. दोस्तों के साथ खड़े होकर स्टाइल में सिगरेट पीना या हुक्का शिकार और शराब का सेवन. दूसरों से बड़ा बनने की कोशिश में खुद के भविष्य को आज युवा अपने हाथों से बर्बाद कर रहा है.
इसे भी पढ़ें:अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस: CM योगी ने की UP को 'नशा मुक्त प्रदेश' बनाने की अपील