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असंवेदनशील : पद्मश्री प्रो.शुक्ला की मौत के तुरंत बाद पद के लिए शुरू किया झगड़ा

लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. बीके शुक्ला संस्कृत के प्रकांड पंडित और भारत सरकार से पद्मश्री से सम्मानित थे. वे इतने मृदुभाषी थे कि कभी किसी से उनका विवाद नहीं हुआ. पूरा जीवन लखनऊ विश्वविद्यालय को ही दे दिया. लेकिन, विश्वविद्यालय के कुछ महानुभावों की असंवेदशीलता देखिये कि अभी प्रो. शुक्ला दिवंगत हुए जुमा-जुमा चार दिन भी नहीं हुए कि उनके पद को लेकर विवाद खड़ा कर दिया.

पद्मश्री प्रो.शुक्ला
पद्मश्री प्रो.शुक्ला
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Published : Apr 8, 2021, 8:15 PM IST

लखनऊ : लखनऊ विश्वविद्यालय में अधिष्ठाता कला संकाय के पद को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. पद्मश्री प्रोफेसर बीके शुक्ला का कोरोना संक्रमण से देहांत होने के बाद यह पद अब खाली है. उनका देहांत दो दिन पहले ही हुआ है. इसी बीच अचानक उनके पद को लेकर दावेदारी शुरू हो गई है.

इसे लेकर विश्वविद्यालय में गुरुवार को खूब चर्चा हुई. शिक्षकों का कहना था कि दावेदारों को इतनी असंवेदनशीलता भी नहीं दिखानी चाहिए थी. उन्हें कुछ दिन इंतजार जरूर करना चाहिए था.


यह भी पढ़ें : अटल बिहारी वाजपेयी चिकित्सा विश्वविद्यालय के लिए 140 करोड़ का फंड जारी


जिंदा होते तो 2022 तक संभालते जिम्मेदारी
पद्मश्री प्रोफेसर बीके शुक्ला अगर जिंदा रहते तो 2022 तक इस पद पर लगातार बने रहते. लेकिन, उनके अचानक निधन के साथ ही इस पद के लिए भी जोड़-तोड़ शुरू हो गई है. लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षकों का कहना है कि कला संकाय अध्यक्ष के मामले में राजनीति शास्त्र विभाग की एक वरिष्ठ शिक्षिका ने दावा किया है. कुलपति को अपना प्रत्यावेदन दिया है.

उनके दावे पर फिलहाल फैसला होना बाकी हैं. वहीं, अभी तक प्रो. शुक्ला की गैर मौजूदगी में हिंदी विभाग के प्रेम सुमन शर्मा को उनकी जिम्मेदारी मिलती रही है. ऐसे में उन्हें भी इस पद का दावेदार माना जा रहा है.

लखनऊ : लखनऊ विश्वविद्यालय में अधिष्ठाता कला संकाय के पद को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. पद्मश्री प्रोफेसर बीके शुक्ला का कोरोना संक्रमण से देहांत होने के बाद यह पद अब खाली है. उनका देहांत दो दिन पहले ही हुआ है. इसी बीच अचानक उनके पद को लेकर दावेदारी शुरू हो गई है.

इसे लेकर विश्वविद्यालय में गुरुवार को खूब चर्चा हुई. शिक्षकों का कहना था कि दावेदारों को इतनी असंवेदनशीलता भी नहीं दिखानी चाहिए थी. उन्हें कुछ दिन इंतजार जरूर करना चाहिए था.


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जिंदा होते तो 2022 तक संभालते जिम्मेदारी
पद्मश्री प्रोफेसर बीके शुक्ला अगर जिंदा रहते तो 2022 तक इस पद पर लगातार बने रहते. लेकिन, उनके अचानक निधन के साथ ही इस पद के लिए भी जोड़-तोड़ शुरू हो गई है. लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षकों का कहना है कि कला संकाय अध्यक्ष के मामले में राजनीति शास्त्र विभाग की एक वरिष्ठ शिक्षिका ने दावा किया है. कुलपति को अपना प्रत्यावेदन दिया है.

उनके दावे पर फिलहाल फैसला होना बाकी हैं. वहीं, अभी तक प्रो. शुक्ला की गैर मौजूदगी में हिंदी विभाग के प्रेम सुमन शर्मा को उनकी जिम्मेदारी मिलती रही है. ऐसे में उन्हें भी इस पद का दावेदार माना जा रहा है.

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