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पीजीआई में दी गई ब्रेन स्ट्रोक के निवारण की जानकारी, न्यूरोलाॅजी विभाग में हुई जागरूकता कार्यशाला

राजधानी के संजय गांधी पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग में स्ट्रोक के प्रति जागरूकता अभियान की शुरुआत की गई है. इसके तहत मस्तिष्क की किसी नस में रक्त का प्रवाह ठीक से न होने, नस के फट जाने, ब्लॉकेज की वजह से स्ट्रोक होने की जानकारी दी जा रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मरीज को समय से इलाज मिल जाए तो उसकी जान बच सकती है.

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Published : Oct 31, 2022, 2:34 PM IST

Updated : Oct 31, 2022, 5:26 PM IST

लखनऊ : राजधानी के संजय गांधी पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग (neurology department) में ब्नेन स्ट्रोक के प्रति जागरूकता अभियान (Awareness Campaign) की शुरुआत की गई है. इसके तहत मस्तिष्क की किसी नस में रक्त का प्रवाह ठीक से न होने, नस के फट जाने, ब्लॉकेज की वजह से स्ट्रोक होने की जानकारी दी जा रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मरीज को समय से इलाज मिल जाए तो उसकी जान बच सकती है. स्ट्रोक का जल्दी पता लगाने और प्रबंधन में प्रगति के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रत्येक वर्ष 29 अक्टूबर को विश्व स्ट्रोक दिवस (world stroke day) मनाया जाता है. इस कड़ी में 29 अक्टूबर को न्यूरोलॉजी विभाग द्वारा न्यूरोलॉजी ओपीडी में अस्पताल प्रशासन विभाग के सहयोग से सार्वजनिक व रोगी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया.


कार्यशाला में बताया गया कि ब्रेन स्ट्रोक भारत और दुनिया में मृत्यु और विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है. अधिकांश स्ट्रोक ischemic प्रकृति के होते हैं (मस्तिष्क में रक्त वाहिकाओं में रुकावट के कारण) और शेष मस्तिष्क में रक्तस्राव के कारण रक्तस्रावी होते हैं. स्ट्रोक के कई जोखिम कारक हैं. जिनमें मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, डिस्लिपिडेमिया, मोटापा, तनाव, धूम्रपान और तंबाकू का उपयोग और एक सुस्त जीवन शैली शामिल है. स्ट्रोक के क्षेत्र में हुई नई प्रगति ने मस्तिष्क रक्त वाहिकाओं में रुकावटों को खोलना संभव बना दिया है. रूकावट को क्लॉट बस्टर दवाओं जैसे recombinant tissue plasminogen activator का उपयोग करके अथवा क्लॉट रिट्रीवर्स जैसे उपकरणों की मदद से खोला जा सकता है.

कार्यक्रम की शुरुआत न्यूरोलॉजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डाॅक्टर विनीता एलिजाबेथ मणि के स्वागत भाषण से हुई. न्यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष, प्रो . संजीव झा, द्वारा स्ट्रोक और इसके जोखिम कारकों की जानकारी दी. मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर गौरव अग्रवाल ने स्ट्रोक का जल्द पता लगाने की आवश्यकता के विषय में जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया. कार्यवाहक निदेशक प्रोफेसर एस.पी. अंबेष ने जोखिम कारकों और स्ट्रोक की संभावना को कम करने के लिए स्वस्थ जीवन शैली पर जोर दिया. इमरजेंसी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ. आर.के. सिंह ने स्ट्रोक की चेतावनी संकेतों के बारे में बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि स्ट्रोक के बाद मरीज को 3 से 3.5 घंटे के भीतर अस्पताल में पहुंचाना चाहिए. न्यूरोसर्जरी विभाग के अध्यक्ष व एपेक्स ट्रामा सेंटर के प्रमुख प्रो . राज कुमार ने स्ट्रोक के सर्जिकल प्रबंधन की जानकारी दी. डॉ. आर. हर्षवर्धन, विभागाध्यक्ष, अस्पताल प्रशासन ने तृतीयक देखभाल अस्पतालों में स्ट्रोक प्रबंधन की सुविधा की जानकारी दी.

यह भी पढ़ें : प्रोफेसर विनय पाठक पर भ्रष्टाचार का आरोप, 15 प्रतिशत कमीशन न देने पर धमकाया

लखनऊ : राजधानी के संजय गांधी पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग (neurology department) में ब्नेन स्ट्रोक के प्रति जागरूकता अभियान (Awareness Campaign) की शुरुआत की गई है. इसके तहत मस्तिष्क की किसी नस में रक्त का प्रवाह ठीक से न होने, नस के फट जाने, ब्लॉकेज की वजह से स्ट्रोक होने की जानकारी दी जा रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मरीज को समय से इलाज मिल जाए तो उसकी जान बच सकती है. स्ट्रोक का जल्दी पता लगाने और प्रबंधन में प्रगति के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रत्येक वर्ष 29 अक्टूबर को विश्व स्ट्रोक दिवस (world stroke day) मनाया जाता है. इस कड़ी में 29 अक्टूबर को न्यूरोलॉजी विभाग द्वारा न्यूरोलॉजी ओपीडी में अस्पताल प्रशासन विभाग के सहयोग से सार्वजनिक व रोगी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया.


कार्यशाला में बताया गया कि ब्रेन स्ट्रोक भारत और दुनिया में मृत्यु और विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है. अधिकांश स्ट्रोक ischemic प्रकृति के होते हैं (मस्तिष्क में रक्त वाहिकाओं में रुकावट के कारण) और शेष मस्तिष्क में रक्तस्राव के कारण रक्तस्रावी होते हैं. स्ट्रोक के कई जोखिम कारक हैं. जिनमें मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, डिस्लिपिडेमिया, मोटापा, तनाव, धूम्रपान और तंबाकू का उपयोग और एक सुस्त जीवन शैली शामिल है. स्ट्रोक के क्षेत्र में हुई नई प्रगति ने मस्तिष्क रक्त वाहिकाओं में रुकावटों को खोलना संभव बना दिया है. रूकावट को क्लॉट बस्टर दवाओं जैसे recombinant tissue plasminogen activator का उपयोग करके अथवा क्लॉट रिट्रीवर्स जैसे उपकरणों की मदद से खोला जा सकता है.

कार्यक्रम की शुरुआत न्यूरोलॉजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डाॅक्टर विनीता एलिजाबेथ मणि के स्वागत भाषण से हुई. न्यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष, प्रो . संजीव झा, द्वारा स्ट्रोक और इसके जोखिम कारकों की जानकारी दी. मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर गौरव अग्रवाल ने स्ट्रोक का जल्द पता लगाने की आवश्यकता के विषय में जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया. कार्यवाहक निदेशक प्रोफेसर एस.पी. अंबेष ने जोखिम कारकों और स्ट्रोक की संभावना को कम करने के लिए स्वस्थ जीवन शैली पर जोर दिया. इमरजेंसी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ. आर.के. सिंह ने स्ट्रोक की चेतावनी संकेतों के बारे में बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि स्ट्रोक के बाद मरीज को 3 से 3.5 घंटे के भीतर अस्पताल में पहुंचाना चाहिए. न्यूरोसर्जरी विभाग के अध्यक्ष व एपेक्स ट्रामा सेंटर के प्रमुख प्रो . राज कुमार ने स्ट्रोक के सर्जिकल प्रबंधन की जानकारी दी. डॉ. आर. हर्षवर्धन, विभागाध्यक्ष, अस्पताल प्रशासन ने तृतीयक देखभाल अस्पतालों में स्ट्रोक प्रबंधन की सुविधा की जानकारी दी.

यह भी पढ़ें : प्रोफेसर विनय पाठक पर भ्रष्टाचार का आरोप, 15 प्रतिशत कमीशन न देने पर धमकाया

Last Updated : Oct 31, 2022, 5:26 PM IST
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