लखनऊ: योगी सरकार ने 9 अप्रैल 2018 को फीस नियंत्रण अध्यादेश लागू किया. बाद में इसे कानून का रूप दे दिया. उस समय दावा किया गया था कि इससे आम जनता को राहत मिलेगी. शुक्रवार को इस कानून को बने तीन साल पूरे हो गए. ईटीवी भारत ने इस मुद्दे पर आम जनता की राय ली. इसके नतीजे चौंकाने वाले हैं. 90% ने माना है कि इस कानून का लाभ नहीं मिला है. कुछ अभिभावकों का तो यह भी कहना है कि इसकी आड़ में निजी स्कूलों की मनमानी को कानूनी मान्यता दी गई है.
दरअसल, योगी आदित्यनाथ सरकार के उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनियमन) अधिनियम 2018 को शुक्रवार को तीन साल पूरे हो गए. 9 अप्रैल 2018 में इसे अध्यादेश के रूप में लाया गया. अगस्त 2018 में इसे कानून का अमली जामा पहनाया गया. ईटीवी भारत ने इस कानून के तीसरी वर्षगांठ के अवसर पर लोगों की प्रतिक्रिया ली. इसके नतीजे चौंकाने वाले हैं.
इसे भी पढ़ें:- सभी विश्वविद्यालय कोरोना टीकाकरण में सक्रिय सहभागिता करें: राज्यपाल
इस सर्वे में सिर्फ 10 प्रतिशत लोगों ने इस कानून के सफल होने के पक्ष में अपना मत दिया है. इसमें शामिल 90 प्रतिशत लोगों ने इस कानून को असफल बताया है. उनका कहना है कि इसका लाभ आम जनता को नहीं मिला है. लोगों का कहना है कि इसका फायदा कम हुआ. निजी कॉलेज प्रबंधनों ने इसका लाभ उठाकर मनमानी शुरू कर दी.
इन बिंदुओं पर है असफल
- कानून कहता है कि प्रवेश शुल्क विद्यालय में नवीन प्रवेश के समय लिया जाएगा. इसका लाभ उठाकर शहर के निजी स्कूलों ने प्री-प्राइमरी स्तर की फीस में 10 गुना तक इजाफा कर दिया. नतीजा, आने वाले समय में फीस कई गुना अधिक होगी.
- राजधानी लखनऊ में प्राइवेट और मिशनरी स्कूलों की संख्या करीब 800 है, लेकिन वर्तमान शैक्षिक सत्र में अभी तक राजधानी लखनऊ में 10 प्रतिशत स्कूलों ने भी अपना ब्योरा उपलब्ध नहीं कराया है. कानून में इसकी व्यवस्था है.
- वर्तमान में लखनऊ के द मिलेनियम स्कूल, ला मार्टीनियर सरीखे 5 से 10 प्रतिशत स्कूलों को छोड़ दिया जाए तो किसी ने भी अपनी फीस का ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया है, जो कि गैरकानूनी है.
इस कानून से कोई फायदा नहीं हुआ. अभिभावकों को निजी स्कूलों की मनमानी का सामना करना पड़ रहा है. सरकार इन स्कूलों के आगे नतमस्तक है.
-राकेश कुमार सिंह, अध्यक्ष, अभिभावक विचार परिषद