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UP Assembly Election 2022: UP में भाजपा के सोशल मीडिया कैंपेन में तालिबानी जिन्न के मायने...

उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के मद्देनजर भाजपा की सोशल मीडिया पर बढ़ी सक्रियता यह साबित करने को काफी है कि किस कदर पार्टी दोबारा सूबे की सत्ता में आने को तैयारी कर रही है. वहीं, अबकी विपक्षियों को घेरने को भाजपा ने अफगानिस्तान के तालिबानी खौफ को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के जरिए पेश कर हिन्दुत्व कार्ड खेलना शुरू किया है.

यूपी विधानसभा चुनाव 2022
यूपी विधानसभा चुनाव 2022
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Published : Oct 6, 2021, 11:17 AM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के मद्देनजर भाजपा की सोशल मीडिया पर बढ़ी सक्रियता यह साबित करने को काफी है कि किस कदर पार्टी दोबारा सूबे की सत्ता में वापसी को तैयारी कर रही है. इतना ही नहीं अबकी भाजपा ने विपक्षियों को घेरने के लिए अफगानिस्तान में बंदूक की नोक पर बनी तालिबानी सरकार और वहां हो रहे मानवाधिकार के हनन को हथियार बनाया है. लेकिन अब आप सोचेंगे कि भला उत्तर प्रदेश में कैसे तालिबान भाजपा के लिए मजबूत सियासी हथियार बन गया. दरअसल, भाजपा अफगानिस्तान की खौफनाक तस्वीर को पेश कर हिन्दू मतदाताओं को एक एकजुट करने की कोशिश में है और जमीनी स्तर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरीखे हिन्दुवादी संगठनों से उसे मदद भी मिल रही है.

वहीं, क्षेत्रीय पार्टियां भले ही सोशल मीडिया पर पहले की तुलना में अधिक सक्रिय दिख रही हो, पर कहीं न कहीं अब भी वे जाति समीकरण के अपने पुराने दांव पर ही अधिक फोकस कर रही हैं. यदि बात समाजवादी पार्टी की करें तो सपा यादव-मुस्लिम वोट को हासिल कर सत्ता की गणित साधते रही है. वहीं, बसपा पिछड़ा व अति पिछड़ों की रहनुमाई कर सीटों की समीकरण में पेंच फंसा सत्ता की लालसा पाले बैठी है. लेकिन इस बीच बसपा सुप्रीमो मायावती के ब्राह्मणों से बढ़ी करीबी ने उन्हें अपने परंपरागत वोटर्स से काटने का काम किया है.

इसे भी पढ़ें - UP Assembly Election 2022: तब बिसौली के लोगों ने चुना था युवा प्रतिनिधि, लेकिन अबकी भाजपा-सपा में तय है मुकाबला

इधर, सूबे में सियासी रूप से कमजोर पड़ी मायावती के कई प्रतिद्वंद्वी उठ खड़े हुए हैं. पश्चिम उत्तर में चंद्रशेखर की भीम सेना और अवध में निषाद पार्टी और पूर्वांचल में अपना दल के अलावे भी कई छोटी पार्टियां है, जो जातिगत वोट को पाट कर समीकरण बिगाड़ सकती हैं. यही कारण है कि भाजपा ने निषाद पार्टी और पूर्वांचल में अपना दल को अपना बना रखा है. यानी कहने का तात्पर्य यह है कि भाजपा हर मोर्चे पर विपक्ष को पटखनी देने को तैयार बैठी है. वहीं, 15 अगस्त के बाद यानी अफगानिस्तान में तालिबानियों के कब्जे के बाद की सूरत को भाजपा ने यूपी में खूब भुनाया है.

पार्टी ने तालीबान को खौफ की असीम पीड़ा के रूप में पेश कर यह बताने की कोशिश की है कि हिन्दू जाति भेद की दीवार को ध्वस्त कर मोदी-योगी को मजबूत करें, ताकि कभी हमारे मुल्क में तालीबान सी कट्टर सोच व खौफ न पनपे. यानी संदेश स्पष्ट है और सूबे के सियासी जानकार इसे अच्छी तरह से समझ भी रहे हैं.

इसे भी पढ़ें - भाजपा विधायक का बेतुका बयान, मोहम्मद गोरी से की पूर्व मंत्री की तुलना

वहीं, इस तरह के संदेशों को साझा करने को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर पार्टी आईटी सेल के साथ ही स्वतंत्रत समूहों को काम पर लगाया गया है. जानकारी यह भी है कि सूबे में भाजपा ने 1,918 ऐसी टीमें सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार को लगा रखी हैं, जो सूबे की नियमित सियासी हलचलों के साथ ही विपक्ष के हर दांव पर पटखनी देने को अग्रसर हैं. इसके अलावे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बतौर हिन्दुत्व रक्षक व नायक के रूप में पेश किया जा रहा है. साथ ही समाजवादी पार्टी और बसपा पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप मढ़े जा रहे हैं.

इंस्टेंट मैसेजिंग प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप पर पार्टी की ओर से संचालित सोशल मीडिया हैंडल और समूहों पर साझा किए गए संदेशों पर नजर डालने पर पता चलता है कि पिछले दो महीनों में कम से कम 35 फीसद पोस्ट तालिबान से संबंधित मुद्दों को लेकर किए गए हैं. उन पोस्टों के मूल में मोदी और योगी को "हिंदुत्व के ब्रांड" के रूप में कट्टरपंथी इस्लामिक खतरों से संघर्ष का एकमात्र विकल्प दर्शाया गया है.

इन सब के इतर भाजपा की ओर से काबुल एयरपोर्ट के उन तस्वीरों को भी सोशल मीडिया पर साझा किया गया, जो वहां के खौफ-ए-मंजर को पेश करते हैं. हालांकि, भाजपा के इस हिन्दुत्व कार्ड पर समाजवादी पार्टी की ओर से कहा गया कि देश और प्रदेश में व्याप्त बेरोजगारी, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को छुपाने और असल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने को यह सब किया जा रहा है. लेकिन यह कर के भी अबकी कुछ खास हासिल होने वाला नहीं है.

इसे भी पढ़ें - बंगाल में सत्ता की हैट्रिक लगाने के बाद यूपी चुनाव पर दीदी की नजर, सपा से हो सकता गठजोड़

वहीं, विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश के एक लाख 15 हजार बूथों पर भाजपा ने एक-एक व्हाट्सएप ग्रुप भी बना दिया है, जो स्थानीय नेताओं को एक-दूसरे से कनेक्ट करने के साथ ही रूट प्लानिंग के लिए भी अहम है. दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पहली बार सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया का प्रभावी तरीके से इस्तेमाल किया था. लेकिन, अब इस काम में भाजपा काफी आगे निकल चुकी है. अभी तक यूपी भाजपा में आईटी सेल ही सोशल मीडिया का काम संभालता था.

लेकिन, अब आगामी विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने आईटी सेल से अलग पूरे प्रदेश में सोशल मीडिया की एक बड़ी फौज तैयार कर ली है. प्रदेश स्तर पर भाजपा ने सोशल मीडिया की टीम में एक संयोजक और चार सह संयोजक को नियुक्त किया है.

वहीं, अपने सभी 6 क्षेत्रों में एक संयोजक और दो सह संयोजक सोशल मीडिया के लिए नियुक्त किए हैं. इसके अलावे पार्टी के संगठनात्मक 98 जिलों में एक संयोजक और दो सह संयोजक सोशल मीडिया टीम में और भाजपा के संगठनात्मक 1,918 मंडलों में भी सोशल मीडिया संयोजकों की नियुक्ति की गई है. साथ ही प्रदेश के सभी विधानसभा क्षेत्रों में सोशल मीडिया के लिए एक-एक संयोजक की नियुक्ति की गई है.

इसे भी पढ़ें - यूपी में भाजपा की घेराबंदी को TMC ने इस ऐप पर बढ़ाया अपना कुनबा

आपको बता दें कि पार्टी ने 1 लाख 15 हजार बूथों पर व्हाट्सएप ग्रुप बनाए हैं. वहीं, इस चुनाव को पार्टी ने डिजिटल चुनावी वार में बदल दिया है और इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि अभी तक प्रदेश के 1 लाख 15 हजार बूथों पर भाजपा ने एक-एक व्हाट्सएप ग्रुप भी बना लिया है.

इसके अलावे लखनऊ के भाजपा दफ्तर में आईटी सेल और कॉल सेंटर में करीब 100 लोग काम कर रहे हैं. भाजपा की आईटी सेल का काम प्रदेश के सभी सोशल मीडिया संयोजकों को टेक्निकल सपोर्ट देना है. इसके अलावे भाजपा दफ्तर में बने कॉल सेंटर के जरिए सोशल मीडिया टीम के साथ कोऑर्डिनेशन का काम किया जा रहा है.

भाजपा सोशल मीडिया की टीम व्हाट्सएप, फेसबुक, टेलीग्राम सहित दूसरे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ग्रुप बनाकर लगातार सक्रिय हैं. जिनका काम अपनी सरकार की उपलब्धियों को लोगों के बीच पहुंचाने के साथ साथ ही विपक्ष पर जबर्दस्त तरीके से हमला करना है. यानी कुल मिलाकर कह सकते हैं कि पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए डिजटल प्लेटफॉर्म पर लड़ने को माइक्रो लेवल की तैयारी कर रखी है.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के मद्देनजर भाजपा की सोशल मीडिया पर बढ़ी सक्रियता यह साबित करने को काफी है कि किस कदर पार्टी दोबारा सूबे की सत्ता में वापसी को तैयारी कर रही है. इतना ही नहीं अबकी भाजपा ने विपक्षियों को घेरने के लिए अफगानिस्तान में बंदूक की नोक पर बनी तालिबानी सरकार और वहां हो रहे मानवाधिकार के हनन को हथियार बनाया है. लेकिन अब आप सोचेंगे कि भला उत्तर प्रदेश में कैसे तालिबान भाजपा के लिए मजबूत सियासी हथियार बन गया. दरअसल, भाजपा अफगानिस्तान की खौफनाक तस्वीर को पेश कर हिन्दू मतदाताओं को एक एकजुट करने की कोशिश में है और जमीनी स्तर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरीखे हिन्दुवादी संगठनों से उसे मदद भी मिल रही है.

वहीं, क्षेत्रीय पार्टियां भले ही सोशल मीडिया पर पहले की तुलना में अधिक सक्रिय दिख रही हो, पर कहीं न कहीं अब भी वे जाति समीकरण के अपने पुराने दांव पर ही अधिक फोकस कर रही हैं. यदि बात समाजवादी पार्टी की करें तो सपा यादव-मुस्लिम वोट को हासिल कर सत्ता की गणित साधते रही है. वहीं, बसपा पिछड़ा व अति पिछड़ों की रहनुमाई कर सीटों की समीकरण में पेंच फंसा सत्ता की लालसा पाले बैठी है. लेकिन इस बीच बसपा सुप्रीमो मायावती के ब्राह्मणों से बढ़ी करीबी ने उन्हें अपने परंपरागत वोटर्स से काटने का काम किया है.

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इधर, सूबे में सियासी रूप से कमजोर पड़ी मायावती के कई प्रतिद्वंद्वी उठ खड़े हुए हैं. पश्चिम उत्तर में चंद्रशेखर की भीम सेना और अवध में निषाद पार्टी और पूर्वांचल में अपना दल के अलावे भी कई छोटी पार्टियां है, जो जातिगत वोट को पाट कर समीकरण बिगाड़ सकती हैं. यही कारण है कि भाजपा ने निषाद पार्टी और पूर्वांचल में अपना दल को अपना बना रखा है. यानी कहने का तात्पर्य यह है कि भाजपा हर मोर्चे पर विपक्ष को पटखनी देने को तैयार बैठी है. वहीं, 15 अगस्त के बाद यानी अफगानिस्तान में तालिबानियों के कब्जे के बाद की सूरत को भाजपा ने यूपी में खूब भुनाया है.

पार्टी ने तालीबान को खौफ की असीम पीड़ा के रूप में पेश कर यह बताने की कोशिश की है कि हिन्दू जाति भेद की दीवार को ध्वस्त कर मोदी-योगी को मजबूत करें, ताकि कभी हमारे मुल्क में तालीबान सी कट्टर सोच व खौफ न पनपे. यानी संदेश स्पष्ट है और सूबे के सियासी जानकार इसे अच्छी तरह से समझ भी रहे हैं.

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वहीं, इस तरह के संदेशों को साझा करने को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर पार्टी आईटी सेल के साथ ही स्वतंत्रत समूहों को काम पर लगाया गया है. जानकारी यह भी है कि सूबे में भाजपा ने 1,918 ऐसी टीमें सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार को लगा रखी हैं, जो सूबे की नियमित सियासी हलचलों के साथ ही विपक्ष के हर दांव पर पटखनी देने को अग्रसर हैं. इसके अलावे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बतौर हिन्दुत्व रक्षक व नायक के रूप में पेश किया जा रहा है. साथ ही समाजवादी पार्टी और बसपा पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप मढ़े जा रहे हैं.

इंस्टेंट मैसेजिंग प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप पर पार्टी की ओर से संचालित सोशल मीडिया हैंडल और समूहों पर साझा किए गए संदेशों पर नजर डालने पर पता चलता है कि पिछले दो महीनों में कम से कम 35 फीसद पोस्ट तालिबान से संबंधित मुद्दों को लेकर किए गए हैं. उन पोस्टों के मूल में मोदी और योगी को "हिंदुत्व के ब्रांड" के रूप में कट्टरपंथी इस्लामिक खतरों से संघर्ष का एकमात्र विकल्प दर्शाया गया है.

इन सब के इतर भाजपा की ओर से काबुल एयरपोर्ट के उन तस्वीरों को भी सोशल मीडिया पर साझा किया गया, जो वहां के खौफ-ए-मंजर को पेश करते हैं. हालांकि, भाजपा के इस हिन्दुत्व कार्ड पर समाजवादी पार्टी की ओर से कहा गया कि देश और प्रदेश में व्याप्त बेरोजगारी, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को छुपाने और असल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने को यह सब किया जा रहा है. लेकिन यह कर के भी अबकी कुछ खास हासिल होने वाला नहीं है.

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वहीं, विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश के एक लाख 15 हजार बूथों पर भाजपा ने एक-एक व्हाट्सएप ग्रुप भी बना दिया है, जो स्थानीय नेताओं को एक-दूसरे से कनेक्ट करने के साथ ही रूट प्लानिंग के लिए भी अहम है. दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पहली बार सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया का प्रभावी तरीके से इस्तेमाल किया था. लेकिन, अब इस काम में भाजपा काफी आगे निकल चुकी है. अभी तक यूपी भाजपा में आईटी सेल ही सोशल मीडिया का काम संभालता था.

लेकिन, अब आगामी विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने आईटी सेल से अलग पूरे प्रदेश में सोशल मीडिया की एक बड़ी फौज तैयार कर ली है. प्रदेश स्तर पर भाजपा ने सोशल मीडिया की टीम में एक संयोजक और चार सह संयोजक को नियुक्त किया है.

वहीं, अपने सभी 6 क्षेत्रों में एक संयोजक और दो सह संयोजक सोशल मीडिया के लिए नियुक्त किए हैं. इसके अलावे पार्टी के संगठनात्मक 98 जिलों में एक संयोजक और दो सह संयोजक सोशल मीडिया टीम में और भाजपा के संगठनात्मक 1,918 मंडलों में भी सोशल मीडिया संयोजकों की नियुक्ति की गई है. साथ ही प्रदेश के सभी विधानसभा क्षेत्रों में सोशल मीडिया के लिए एक-एक संयोजक की नियुक्ति की गई है.

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आपको बता दें कि पार्टी ने 1 लाख 15 हजार बूथों पर व्हाट्सएप ग्रुप बनाए हैं. वहीं, इस चुनाव को पार्टी ने डिजिटल चुनावी वार में बदल दिया है और इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि अभी तक प्रदेश के 1 लाख 15 हजार बूथों पर भाजपा ने एक-एक व्हाट्सएप ग्रुप भी बना लिया है.

इसके अलावे लखनऊ के भाजपा दफ्तर में आईटी सेल और कॉल सेंटर में करीब 100 लोग काम कर रहे हैं. भाजपा की आईटी सेल का काम प्रदेश के सभी सोशल मीडिया संयोजकों को टेक्निकल सपोर्ट देना है. इसके अलावे भाजपा दफ्तर में बने कॉल सेंटर के जरिए सोशल मीडिया टीम के साथ कोऑर्डिनेशन का काम किया जा रहा है.

भाजपा सोशल मीडिया की टीम व्हाट्सएप, फेसबुक, टेलीग्राम सहित दूसरे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ग्रुप बनाकर लगातार सक्रिय हैं. जिनका काम अपनी सरकार की उपलब्धियों को लोगों के बीच पहुंचाने के साथ साथ ही विपक्ष पर जबर्दस्त तरीके से हमला करना है. यानी कुल मिलाकर कह सकते हैं कि पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए डिजटल प्लेटफॉर्म पर लड़ने को माइक्रो लेवल की तैयारी कर रखी है.

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