लखनऊ : प्रदेश में 2012 से 2017 के बीच जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी, उस दौरान खनन घोटाला खूब सुर्खियों में रहा था. सैकड़ों करोड़ के इस घोटाले में सीबीआई जांच शुरू हुई तो कई नेताओं और अधिकारियों पर जांच का शिकंजा भी कसना शुरू हुआ. इसके बाद सूबे में आई भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने खनन को लेकर काफी सख्ती दिखाई और इसे लेकर स्पष्ट नीति भी बनाई. बावजूद इसके आज तक अवैध मौरंग और रेत का खनन थमा नहीं है. बांदा, हमीरपुर और झांसी सहित उन तमाम जिलों से अवैध खनन की छिटपुट खबरें आती रहती हैं, जहां खनन के लिए खनिज उपलब्ध हैं. बड़ा सवाल यह है कि आखिर खनन पर पूरी तरह पाबंदी क्यों नहीं लग पाती? क्यों सरकारी तंत्र को धता बताकर माफिया अपने मंसूबों में कामयाब हो जाता है.
प्रदेश में रेत और मौरंग खनन में कई तरह का भ्रष्टाचार है. मानक से अधिक और अवैध खनन के अलावा तय वजन से ज्यादा ढुलाई में भी धांधली होती है. सरकारी तंत्र ने अधिक ढुलाई पर तो नियंत्रण कर लिया है, लेकिन अवैध खनन कुछ स्थानों पर अब भी जारी है. लाल सोना कही जाने वाली मौरंग इतनी महंगी है कि माफिया को आसानी से इसमें पैसे दिखाई देते हैं. खनन वाले क्षेत्रों में मीडिया के लोग भी आसानी से नहीं जा सकते. खनन माफिया वहां मीडिया कर्मियों की जान का दुश्मन बन जाता है. विगत वर्ष औरैया में इस तरह की एक घटना सामने आई थी, जब खनन का कवरेज करने पहुंचे संवाददाता को बुरी तरह से पीटा गया था. इसके अलावा भी कई घटनाएं हो चुकी हैं. इसलिए जरूरी है कि सरकार इस दिशा में और कड़े कदम उठाए, ताकि अवैध खनन पर पूरी तरह से पाबंदी लग सके.
खनन संबंधी मामलों के जानकार अनिल पाठक कहते हैं मौरंग और रेत के अवैध खनन में भाजपा सरकार में काफी सुधार हुआ है. हालांकि इसे पूरी तरह से बंद कर पाना बहुत कठिन है. ऐसा नहीं है कि माफिया बिना स्थानीय तंत्र की जानकारी के यह सब कर लेता है. स्थानीय अधिकारी, पुलिस और यहां तक कि लोकल मीडिया कर्मियों की भी इस गोरखधंधे में मिलीभगत होती है. सभी को इसकी कीमत भी मिलती है. ऐसे मामलों में कार्रवाई तभी की जाती है, जब स्थानीय स्तर से निकल कर खबरें उच्चाधिकारियों तक पहुंचती हैं. ऐसे में इस तंत्र को तोड़ पाना सरकार के लिए आसान काम नहीं है.