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अवैध खनन पर पूरी तरह अंकुश के लिए सरकार को उठाने होंगे और कदम

यूपी में अवैध खनन का बड़ा कारोबार है. इसमें प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस, लोकल मीडिया के साथ सरकार के मंत्री तक भी शामिल रहते हैं. ऐसे में अवैध खनन पर रोक लगाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

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Published : Jun 10, 2023, 7:37 AM IST

अवैध खनन पर पूरी तरह अंकुश के लिए सरकार को उठाने होंगे और कदम. देखें वीडियो

लखनऊ : प्रदेश में 2012 से 2017 के बीच जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी, उस दौरान खनन घोटाला खूब सुर्खियों में रहा था. सैकड़ों करोड़ के इस घोटाले में सीबीआई जांच शुरू हुई तो कई नेताओं और अधिकारियों पर जांच का शिकंजा भी कसना शुरू हुआ. इसके बाद सूबे में आई भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने खनन को लेकर काफी सख्ती दिखाई और इसे लेकर स्पष्ट नीति भी बनाई. बावजूद इसके आज तक अवैध मौरंग और रेत का खनन थमा नहीं है. बांदा, हमीरपुर और झांसी सहित उन तमाम जिलों से अवैध खनन की छिटपुट खबरें आती रहती हैं, जहां खनन के लिए खनिज उपलब्ध हैं. बड़ा सवाल यह है कि आखिर खनन पर पूरी तरह पाबंदी क्यों नहीं लग पाती? क्यों सरकारी तंत्र को धता बताकर माफिया अपने मंसूबों में कामयाब हो जाता है.

अवैध खनन से नुकसान.
अवैध खनन से नुकसान.
प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार में 2012 के बाद खनन घोटाला तब हुआ था, जब अखिलेश यादव खुद मुख्यमंत्री थे और खनन विभाग भी वह खुद देखते थे. प्रदेश के सात जिलों हमीरपुर, शामली, फतेहपुर, सिद्धार्थनगर, देवरिया, कौशांबी और सहारनपुर में नियम विरुद्ध खनन की अनुमति देने के मामले में 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया था. इसके बाद सीबीआई ने जनवरी 2019 में 14 स्थानों पर छापेमारी की थी. मामले में 11 संदिग्धों के खिलाफ सीबीआई ने केस भी दर्ज किया था. मामले में पांच आईएएस अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है. हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2015 में हमीरपुर जिले में जारी साथ मौरंग पट्टों को अवैध घोषित करते हुए रद कर दिया था. 2017 में जब भाजपा की सरकार सत्ता में आई तो उसने खनन को व्यवस्थित करने के लिए नीति बनाई और अवैध खनन को रोकने की कोशिशें भी कीं. उस दौरान 2018-19 में मौरंग के दाम आसमान छूने लगे थे. बाद में धीरे-धीरे कीमतें सामान्य हुईं.
अवैध खनन. फाइल फोटो
अवैध खनन. फाइल फोटो


प्रदेश में रेत और मौरंग खनन में कई तरह का भ्रष्टाचार है. मानक से अधिक और अवैध खनन के अलावा तय वजन से ज्यादा ढुलाई में भी धांधली होती है. सरकारी तंत्र ने अधिक ढुलाई पर तो नियंत्रण कर लिया है, लेकिन अवैध खनन कुछ स्थानों पर अब भी जारी है. लाल सोना कही जाने वाली मौरंग इतनी महंगी है कि माफिया को आसानी से इसमें पैसे दिखाई देते हैं. खनन वाले क्षेत्रों में मीडिया के लोग भी आसानी से नहीं जा सकते. खनन माफिया वहां मीडिया कर्मियों की जान का दुश्मन बन जाता है. विगत वर्ष औरैया में इस तरह की एक घटना सामने आई थी, जब खनन का कवरेज करने पहुंचे संवाददाता को बुरी तरह से पीटा गया था. इसके अलावा भी कई घटनाएं हो चुकी हैं. इसलिए जरूरी है कि सरकार इस दिशा में और कड़े कदम उठाए, ताकि अवैध खनन पर पूरी तरह से पाबंदी लग सके.

अवैध खनन. फाइल फोटो
अवैध खनन. फाइल फोटो



खनन संबंधी मामलों के जानकार अनिल पाठक कहते हैं मौरंग और रेत के अवैध खनन में भाजपा सरकार में काफी सुधार हुआ है. हालांकि इसे पूरी तरह से बंद कर पाना बहुत कठिन है. ऐसा नहीं है कि माफिया बिना स्थानीय तंत्र की जानकारी के यह सब कर लेता है. स्थानीय अधिकारी, पुलिस और यहां तक कि लोकल मीडिया कर्मियों की भी इस गोरखधंधे में मिलीभगत होती है. सभी को इसकी कीमत भी मिलती है. ऐसे मामलों में कार्रवाई तभी की जाती है, जब स्थानीय स्तर से निकल कर खबरें उच्चाधिकारियों तक पहुंचती हैं. ऐसे में इस तंत्र को तोड़ पाना सरकार के लिए आसान काम नहीं है.




यह भी पढ़ें : IMA POP 2023: दुश्मनों को धूल चटाने के लिए तैयार देश के 331 जांबाज, जोश के साथ आज लेंगे देश रक्षा की शपथ

अवैध खनन पर पूरी तरह अंकुश के लिए सरकार को उठाने होंगे और कदम. देखें वीडियो

लखनऊ : प्रदेश में 2012 से 2017 के बीच जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी, उस दौरान खनन घोटाला खूब सुर्खियों में रहा था. सैकड़ों करोड़ के इस घोटाले में सीबीआई जांच शुरू हुई तो कई नेताओं और अधिकारियों पर जांच का शिकंजा भी कसना शुरू हुआ. इसके बाद सूबे में आई भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने खनन को लेकर काफी सख्ती दिखाई और इसे लेकर स्पष्ट नीति भी बनाई. बावजूद इसके आज तक अवैध मौरंग और रेत का खनन थमा नहीं है. बांदा, हमीरपुर और झांसी सहित उन तमाम जिलों से अवैध खनन की छिटपुट खबरें आती रहती हैं, जहां खनन के लिए खनिज उपलब्ध हैं. बड़ा सवाल यह है कि आखिर खनन पर पूरी तरह पाबंदी क्यों नहीं लग पाती? क्यों सरकारी तंत्र को धता बताकर माफिया अपने मंसूबों में कामयाब हो जाता है.

अवैध खनन से नुकसान.
अवैध खनन से नुकसान.
प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार में 2012 के बाद खनन घोटाला तब हुआ था, जब अखिलेश यादव खुद मुख्यमंत्री थे और खनन विभाग भी वह खुद देखते थे. प्रदेश के सात जिलों हमीरपुर, शामली, फतेहपुर, सिद्धार्थनगर, देवरिया, कौशांबी और सहारनपुर में नियम विरुद्ध खनन की अनुमति देने के मामले में 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया था. इसके बाद सीबीआई ने जनवरी 2019 में 14 स्थानों पर छापेमारी की थी. मामले में 11 संदिग्धों के खिलाफ सीबीआई ने केस भी दर्ज किया था. मामले में पांच आईएएस अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है. हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2015 में हमीरपुर जिले में जारी साथ मौरंग पट्टों को अवैध घोषित करते हुए रद कर दिया था. 2017 में जब भाजपा की सरकार सत्ता में आई तो उसने खनन को व्यवस्थित करने के लिए नीति बनाई और अवैध खनन को रोकने की कोशिशें भी कीं. उस दौरान 2018-19 में मौरंग के दाम आसमान छूने लगे थे. बाद में धीरे-धीरे कीमतें सामान्य हुईं.
अवैध खनन. फाइल फोटो
अवैध खनन. फाइल फोटो


प्रदेश में रेत और मौरंग खनन में कई तरह का भ्रष्टाचार है. मानक से अधिक और अवैध खनन के अलावा तय वजन से ज्यादा ढुलाई में भी धांधली होती है. सरकारी तंत्र ने अधिक ढुलाई पर तो नियंत्रण कर लिया है, लेकिन अवैध खनन कुछ स्थानों पर अब भी जारी है. लाल सोना कही जाने वाली मौरंग इतनी महंगी है कि माफिया को आसानी से इसमें पैसे दिखाई देते हैं. खनन वाले क्षेत्रों में मीडिया के लोग भी आसानी से नहीं जा सकते. खनन माफिया वहां मीडिया कर्मियों की जान का दुश्मन बन जाता है. विगत वर्ष औरैया में इस तरह की एक घटना सामने आई थी, जब खनन का कवरेज करने पहुंचे संवाददाता को बुरी तरह से पीटा गया था. इसके अलावा भी कई घटनाएं हो चुकी हैं. इसलिए जरूरी है कि सरकार इस दिशा में और कड़े कदम उठाए, ताकि अवैध खनन पर पूरी तरह से पाबंदी लग सके.

अवैध खनन. फाइल फोटो
अवैध खनन. फाइल फोटो



खनन संबंधी मामलों के जानकार अनिल पाठक कहते हैं मौरंग और रेत के अवैध खनन में भाजपा सरकार में काफी सुधार हुआ है. हालांकि इसे पूरी तरह से बंद कर पाना बहुत कठिन है. ऐसा नहीं है कि माफिया बिना स्थानीय तंत्र की जानकारी के यह सब कर लेता है. स्थानीय अधिकारी, पुलिस और यहां तक कि लोकल मीडिया कर्मियों की भी इस गोरखधंधे में मिलीभगत होती है. सभी को इसकी कीमत भी मिलती है. ऐसे मामलों में कार्रवाई तभी की जाती है, जब स्थानीय स्तर से निकल कर खबरें उच्चाधिकारियों तक पहुंचती हैं. ऐसे में इस तंत्र को तोड़ पाना सरकार के लिए आसान काम नहीं है.




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