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World Sepsis Day: एंटीबायोटिक का अंधाधुंध इस्तेमाल नहीं रोका तो सेप्सिस से होंगी सर्वाधिक मौतें

वर्ल्ड सेप्सिस डे की पूर्व संध्या पर केजीएमयू में पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश शर्मा ने कहा कि देशभर में एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध व बेवजह इस्तेमाल नहीं रोका गया तो वह दिन दूर नहीं, जब दुनिया में सर्वाधिक मौतें सेप्सिस (सांस रोग संबंधी संक्रमण) के चलते होंगी.

वर्ल्ड सेप्सिस डे
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Published : Sep 13, 2021, 5:43 AM IST

लखनऊ: देशभर में एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध व बेवजह इस्तेमाल नहीं रोका गया तो वह दिन दूर नहीं, जब दुनिया में सर्वाधिक मौतें सेप्सिस (सांस रोग संबंधी संक्रमण) के चलते होंगी. मौजूदा वक्त में हार्ट अटैक और कैंसर के बाद सेप्सिस दुनिया में तीसरी सर्वाधिक मौतों की वजह है. अभी नहीं चेते तो 2050 तक सेप्सिस दुनिया की नंबर वन किलर बन जाएगी. यह बातें वर्ल्ड सेप्सिस डे की पूर्व संध्या पर रविवार को केजीएमयू में पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश शर्मा ने कही.

आइसीयू में भर्ती 60 से 70 फीसद मरीज सेप्सिस के चलते गंभीर
डॉ. वेद ने कहा कि इस दौरान केजीएमयू से लेकर एसजीपीजीआइ व लोहिया संस्थान के अलावा अन्य जिस भी अस्पताल के आइसीयू में विभिन्न बीमारियों के मरीज भर्ती हैं, उनमें गंभीरता की सबसे बड़ी वजह सेप्सिस है. उन्होंने बताया कि आइसीयू के कुल मरीजों में 60 से 70 फीसद मरीज सेप्सिस के शिकार हैं. इनमें सबसे ज्यादा 35 फीसद मरीज रेस्पिटरेट्री सेप्सिस (सांस रोग संबंधी संक्रमण) व 25 फीसद मरीज यूरोसेप्सिस (मूत्र संबंधी संक्रमण) से ग्रस्त हैं. डॉ. वेद ने कहा कि रेस्पिटरेट्री सेप्सिस और यूरोसेप्सिस की सबसे बड़ी वजह एंटीबायोटिक व दर्द निवारक दवाओं का जरूरत से अधिक प्रयोग व डाक्टरों एवं मरीजों की अनभिज्ञता है. विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति ज्यादा भयावह हो रही है. कोरोना काल में भी फेफड़ों और मूत्र मार्ग संबंधी सेप्सिस से ज्यादा मौतें हुईं. सेप्सिस हर घंटे मौत की तरफ ले जाता है. नियंत्रण नहीं मिलने पर शरीर के अंग फेल होने लगते हैं. इससे मरीज की मौत हो जाती है.

झोलाछाप बढ़ा रहे खतरा
डॉ. वेद ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरों तक क्लीनिक, नर्सिंग होम व छोटे-छोटे अस्पताल चला रहे झोलाछाप डाक्टरों व बगैर फार्मासिस्ट चल रहे मेडिकल स्टोर संचालकों ने सेप्सिस के खतरे को सबसे ज्यादा बढ़ाया है. डा. वेद के अनुसार जिन बीमारियों में कम डोज वाली एंटीबायोटिक व बिना एंटीबायोटिक के काम चल सकता है, वहां भी इसके प्रभावों से अनभिज्ञ डॉक्टर पहली ही बार में एंटीबायोटिक की हाई डोज दे रहे हैं. ऐसे में सेप्सिस रजिस्ट्रेंस होती जा रही है. यह बिल्कुल वैसी स्थिति है, जैसी टीबी का मरीज अनाप-सनाप दवाओं से मल्टी ड्रग रजिस्ट्रेंस (एमडीआर) की स्थिति में पहुंच जाता है. इसके अलावा लोग जरा से जुकाम-बुखार या हल्की फुल्की चोट में कई बार सीधे मेडिकल स्टोर से ही कोई भी एंटीबायोटिक दवाएं खरीद लाते हैं. यह स्थिति और भी घातक है.

इसे भी पढ़ें-कोरोना काल में लोगों की मदद करने वाले 40 एनजीओ को इस्लामिक सेंटर में किया गया सम्मानित

डॉक्टर के परामर्श के विपरीत दवा न लें
डॉ. वेद ने कहा कि जब कोई कुशल डॉक्टर तीन या पांच दिन दवा लिखे तो मरीज एक दो दिन कम या उससे अधिक दिन तक बची हुई दवा खाने का प्रयास करता है. यह दोनों स्थिति घातक हो सकती है. अगर परामर्श से कम दिन दवा ली तो बचे हुए वायरस बैक्टीरिया बाद में शरीर में रजिस्ट्रेंस पावर विकसित कर लेते हैं. ऐसे में फिर कभी दिक्कत होने पर वह दवाएं काम नहीं करेंगी. परामर्श से अधिक समय तक दवा लेने से सेप्सिस का खतरा और बढ़ेगा. इसलिए अपने आप एंटीबायोटिक का इस्तेमाल न करें. इस दौरान प्रो. डा. बीएन प्रसाद ने कहा कि अस्पतालों में साफ-सफाई न होना व उपकरणों का संक्रमण भी सेप्सिस की बड़ी वजह है. यूरोलोजी विभाग के प्रो. अपुल गोयल ने कहा कि वृद्धावस्था, प्रतिरक्षादमन, शुगर, मोटापा, कैंसर व कीटनाशकों और रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग भी सेप्सिस के खतरे को बढ़ा रहा है.

लखनऊ: देशभर में एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध व बेवजह इस्तेमाल नहीं रोका गया तो वह दिन दूर नहीं, जब दुनिया में सर्वाधिक मौतें सेप्सिस (सांस रोग संबंधी संक्रमण) के चलते होंगी. मौजूदा वक्त में हार्ट अटैक और कैंसर के बाद सेप्सिस दुनिया में तीसरी सर्वाधिक मौतों की वजह है. अभी नहीं चेते तो 2050 तक सेप्सिस दुनिया की नंबर वन किलर बन जाएगी. यह बातें वर्ल्ड सेप्सिस डे की पूर्व संध्या पर रविवार को केजीएमयू में पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश शर्मा ने कही.

आइसीयू में भर्ती 60 से 70 फीसद मरीज सेप्सिस के चलते गंभीर
डॉ. वेद ने कहा कि इस दौरान केजीएमयू से लेकर एसजीपीजीआइ व लोहिया संस्थान के अलावा अन्य जिस भी अस्पताल के आइसीयू में विभिन्न बीमारियों के मरीज भर्ती हैं, उनमें गंभीरता की सबसे बड़ी वजह सेप्सिस है. उन्होंने बताया कि आइसीयू के कुल मरीजों में 60 से 70 फीसद मरीज सेप्सिस के शिकार हैं. इनमें सबसे ज्यादा 35 फीसद मरीज रेस्पिटरेट्री सेप्सिस (सांस रोग संबंधी संक्रमण) व 25 फीसद मरीज यूरोसेप्सिस (मूत्र संबंधी संक्रमण) से ग्रस्त हैं. डॉ. वेद ने कहा कि रेस्पिटरेट्री सेप्सिस और यूरोसेप्सिस की सबसे बड़ी वजह एंटीबायोटिक व दर्द निवारक दवाओं का जरूरत से अधिक प्रयोग व डाक्टरों एवं मरीजों की अनभिज्ञता है. विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति ज्यादा भयावह हो रही है. कोरोना काल में भी फेफड़ों और मूत्र मार्ग संबंधी सेप्सिस से ज्यादा मौतें हुईं. सेप्सिस हर घंटे मौत की तरफ ले जाता है. नियंत्रण नहीं मिलने पर शरीर के अंग फेल होने लगते हैं. इससे मरीज की मौत हो जाती है.

झोलाछाप बढ़ा रहे खतरा
डॉ. वेद ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरों तक क्लीनिक, नर्सिंग होम व छोटे-छोटे अस्पताल चला रहे झोलाछाप डाक्टरों व बगैर फार्मासिस्ट चल रहे मेडिकल स्टोर संचालकों ने सेप्सिस के खतरे को सबसे ज्यादा बढ़ाया है. डा. वेद के अनुसार जिन बीमारियों में कम डोज वाली एंटीबायोटिक व बिना एंटीबायोटिक के काम चल सकता है, वहां भी इसके प्रभावों से अनभिज्ञ डॉक्टर पहली ही बार में एंटीबायोटिक की हाई डोज दे रहे हैं. ऐसे में सेप्सिस रजिस्ट्रेंस होती जा रही है. यह बिल्कुल वैसी स्थिति है, जैसी टीबी का मरीज अनाप-सनाप दवाओं से मल्टी ड्रग रजिस्ट्रेंस (एमडीआर) की स्थिति में पहुंच जाता है. इसके अलावा लोग जरा से जुकाम-बुखार या हल्की फुल्की चोट में कई बार सीधे मेडिकल स्टोर से ही कोई भी एंटीबायोटिक दवाएं खरीद लाते हैं. यह स्थिति और भी घातक है.

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डॉक्टर के परामर्श के विपरीत दवा न लें
डॉ. वेद ने कहा कि जब कोई कुशल डॉक्टर तीन या पांच दिन दवा लिखे तो मरीज एक दो दिन कम या उससे अधिक दिन तक बची हुई दवा खाने का प्रयास करता है. यह दोनों स्थिति घातक हो सकती है. अगर परामर्श से कम दिन दवा ली तो बचे हुए वायरस बैक्टीरिया बाद में शरीर में रजिस्ट्रेंस पावर विकसित कर लेते हैं. ऐसे में फिर कभी दिक्कत होने पर वह दवाएं काम नहीं करेंगी. परामर्श से अधिक समय तक दवा लेने से सेप्सिस का खतरा और बढ़ेगा. इसलिए अपने आप एंटीबायोटिक का इस्तेमाल न करें. इस दौरान प्रो. डा. बीएन प्रसाद ने कहा कि अस्पतालों में साफ-सफाई न होना व उपकरणों का संक्रमण भी सेप्सिस की बड़ी वजह है. यूरोलोजी विभाग के प्रो. अपुल गोयल ने कहा कि वृद्धावस्था, प्रतिरक्षादमन, शुगर, मोटापा, कैंसर व कीटनाशकों और रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग भी सेप्सिस के खतरे को बढ़ा रहा है.

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