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India Emergency 1975: हृदय नारायण दीक्षित ने ईटीवी भारत से साझा की आपबीती

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के 25 जून 1975 को आपातकाल (India Emergency 1975) की घोषणा के फैसले के बाद सरकार का विरोध करने वाले हर नेता, युवा को सलाखों के पीछे डाल दिया गया. इसी में एक थे यूपी विधानसभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित. ईटीवी भारत से बातचीत में हृदय नारायण दीक्षित ने आपातकाल के दौरान की आपबीती को साझा किया.

हृदय नारायण दीक्षित ने ईटीवी भारत से साझा की आपबीती
हृदय नारायण दीक्षित ने ईटीवी भारत से साझा की आपबीती
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Published : Jun 25, 2021, 2:00 PM IST

लखनऊ: देश में 25 जून 1975 को लागू किया गया आपातकाल (India Emergency 1975) नई पीढ़ी भले ही भूल जाए, लेकिन वह लोग नहीं भूल सकते जिन्होंने उस समय यातनाएं सही थी. आपातकाल के दौरान लोकतंत्र को कुचलने की सारी हदें पार दी गईं थीं. यूपी विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित को भी जेल भेज दिया गया था. करीब डेढ़ साल बाद उनके पिता जेल में मिलने पहुंचे तो उन्होंने कहा कि यह तो मेरा बेटा ही नहीं है. इस बात पर उन्नाव जेल के जेलर नाराज हुए और उनके पिता जी को डांट दिया तो इस पर हृदय नारायण दीक्षित दुखी हो गए. आपातकाल के दौरान के ऐसे ही तमाम संस्मरण विधानसभा अध्यक्ष ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए साझा किए.

ईटीवी भारत से बातचीत करते विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित.

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि भारत की नई पीढ़ी को 45 वर्ष पुरानी यह घटना याद नहीं है. आवश्यकता इस बात की है कि देश में संसदीय जनतंत्र का खात्मा करने, पूरी व्यवस्था को तानाशाही के माध्यम से कुचल देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का स्मरण जरूरी है. इस आपातकाल (India Emergency 1975) में देश के प्रत्येक नागरिक का उत्पीड़न हुआ था. प्रेस की स्वतंत्रता कुचल दी गई थी. विचार अभिव्यक्ति का कोई नामोनिशान नहीं बचा था. सभी विपक्ष के नेता जेल गए थे. हम लोग भी जेल में थे. विपक्ष की अनुपस्थिति में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में संविधान के लगभग 53 संशोधन हुए. जितने भी संशोधन किए गए, वह सभी व्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले थे.

इसी तरह से आपातकाल 1932-33 में जर्मनी में हिटलर ने लगाया था. आपातकाल के माध्यम से जिस तरह से जर्मनी में संवैधानिक अधिकार छीने गए थे, ठीक उसी तरह से भारत में भी यही स्थिति थी. लोग लंबे समय तक जेल में रहे. मैं स्वयं 19 महीने जेल में था. पूरी की पूरी जनता पुलिस तानाशाही का और सरकारी अत्याचारों का शिकार थी. पूरा देश कराह रहा था, आंदोलन भी हुए. मैंने स्वयं अपनी आंखों से देखा कि उन्नाव कचहरी में आंदोलन करने वाले नौजवानों की पुलिस ने टांगें बांधकर उल्टा लटका दिया था. इस तरह से यह घटना एक-दो नहीं बल्कि देश भर के हर कोने में हुई थी. विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने इसी प्रकार से अपने जेल के अनुभवों को भी साझा किया है. उन्होंने आपातकाल को किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए दुखद बताया है.

इसे भी पढ़ें:- राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 27 जून को आएंगे अपने पैतृक गांव 'परौंख', कथरी देवी के करेंगे दर्शन

बता दें कि 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल (India Emergency 1975) की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक लगी रही. तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी. स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था. आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए और नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई. इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित कर दिया गया. जयप्रकाश नारायण ने इसे 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था.

लखनऊ: देश में 25 जून 1975 को लागू किया गया आपातकाल (India Emergency 1975) नई पीढ़ी भले ही भूल जाए, लेकिन वह लोग नहीं भूल सकते जिन्होंने उस समय यातनाएं सही थी. आपातकाल के दौरान लोकतंत्र को कुचलने की सारी हदें पार दी गईं थीं. यूपी विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित को भी जेल भेज दिया गया था. करीब डेढ़ साल बाद उनके पिता जेल में मिलने पहुंचे तो उन्होंने कहा कि यह तो मेरा बेटा ही नहीं है. इस बात पर उन्नाव जेल के जेलर नाराज हुए और उनके पिता जी को डांट दिया तो इस पर हृदय नारायण दीक्षित दुखी हो गए. आपातकाल के दौरान के ऐसे ही तमाम संस्मरण विधानसभा अध्यक्ष ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए साझा किए.

ईटीवी भारत से बातचीत करते विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित.

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि भारत की नई पीढ़ी को 45 वर्ष पुरानी यह घटना याद नहीं है. आवश्यकता इस बात की है कि देश में संसदीय जनतंत्र का खात्मा करने, पूरी व्यवस्था को तानाशाही के माध्यम से कुचल देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का स्मरण जरूरी है. इस आपातकाल (India Emergency 1975) में देश के प्रत्येक नागरिक का उत्पीड़न हुआ था. प्रेस की स्वतंत्रता कुचल दी गई थी. विचार अभिव्यक्ति का कोई नामोनिशान नहीं बचा था. सभी विपक्ष के नेता जेल गए थे. हम लोग भी जेल में थे. विपक्ष की अनुपस्थिति में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में संविधान के लगभग 53 संशोधन हुए. जितने भी संशोधन किए गए, वह सभी व्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले थे.

इसी तरह से आपातकाल 1932-33 में जर्मनी में हिटलर ने लगाया था. आपातकाल के माध्यम से जिस तरह से जर्मनी में संवैधानिक अधिकार छीने गए थे, ठीक उसी तरह से भारत में भी यही स्थिति थी. लोग लंबे समय तक जेल में रहे. मैं स्वयं 19 महीने जेल में था. पूरी की पूरी जनता पुलिस तानाशाही का और सरकारी अत्याचारों का शिकार थी. पूरा देश कराह रहा था, आंदोलन भी हुए. मैंने स्वयं अपनी आंखों से देखा कि उन्नाव कचहरी में आंदोलन करने वाले नौजवानों की पुलिस ने टांगें बांधकर उल्टा लटका दिया था. इस तरह से यह घटना एक-दो नहीं बल्कि देश भर के हर कोने में हुई थी. विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने इसी प्रकार से अपने जेल के अनुभवों को भी साझा किया है. उन्होंने आपातकाल को किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए दुखद बताया है.

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बता दें कि 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल (India Emergency 1975) की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक लगी रही. तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी. स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था. आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए और नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई. इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित कर दिया गया. जयप्रकाश नारायण ने इसे 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था.

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