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राम मंदिर आंदोलन के साथ देश की सियासत ने कैसे ली करवट, जानें संघर्ष की कहानी

अयोध्या में 5 अगस्त को राम मंदिर भूमि पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. देश में राम मंदिर निर्माण के लिए एक लंबा आंदोलन चला. राम मंदिर आंदोलन के साथ देश की सियासत ने भी कई करवटें बदलीं, जिसे बहुत कम लोग ही जानते हैं. आइए जानते हैं कि इस आंदोलन को देश की राजनीति और राजनेताओं ने कैसी हवा दी.

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राम आंदोलन से मंदिर निर्माण तक का राजनीतिकरण और उसका प्रभाव.
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Published : Aug 4, 2020, 1:23 PM IST

Updated : Aug 4, 2020, 2:25 PM IST

लखनऊ: अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा कुछ एक दिनों का नहीं, बल्कि सैकड़ों वर्ष पुराना है. 1528 में जिस धार्मिक आस्था के प्रकरण का जन्म हुआ, वह आजादी के कुछ समय बाद से राजनीति रंग लेने लगा. हिंदुओं और हिन्दू संगठनों को लगा कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण किए बिना उन्हें न्याय नहीं मिलने वाला है. धीरे-धीरे राजनीतिकरण शुरू हुआ.

साठ के दशक से चलकर अस्सी के दशक में राम मंदिर आंदोलन उस वक्त जोर पकड़ा, जब भाजपा के शीर्ष दो नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी ने राम रथ यात्रा निकाली. आंदोलन बढ़ता गया. राजनीतिक दल अपना-अपना हित देख रहे थे. किसी दल को इसका लाभ मिला, तो किसी को नुकसान सहन करना पड़ा. दोनों पक्ष हिन्दू हों या मुसलमान, उन्होंने देश की न्याय व्यवस्था में विश्वास व्यक्त किया. वर्षों इंतजार बाद अब न्यायालय के फैसले से मंदिर निर्माण होने जा रहा है.

राम आंदोलन से मंदिर निर्माण तक का राजनीतिकरण और उसका प्रभाव.

अयोध्या आंदोलन के दौरान के सक्रिय पत्रकार उमाशंकर त्रिपाठी कहते हैं कि भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है. ऐसे ही उनके मंदिर निर्माण में सभी मर्यादाओं का पालन हुआ है. इतने वर्षों तक इंतजार करने के बाद राम भक्तों को एक प्रक्रिया के तहत ही न्याय मिला है. भक्तों को न्याय मिल गया. अयोध्या आंदोलन की लंबी यात्रा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद ने गैर राजनीति संगठन के रूप में भूमिका अदा की. वहीं राजनीतिक दलों की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मुख्य घटक दल के रूप में जुड़े रहे हैं. बिहार की बात की जाए तो आडवाणी की रथ यात्रा को रोकने वाले तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव भी शामिल हैं. इन सभी ने आंदोलन का लाभ लेने का समय समय पर प्रयास किया.

मुलायम ने अयोध्या में गोली चलवाने की बात स्वीकारी
मुलायम सिंह यादव ने कई बार सार्वजनिक मंचों से इस बात को स्वीकारा कि 1990 में उनकी सरकार ने अगर कारसेवकों पर गोली नहीं चलवाई होती तो स्थितियां कुछ और हो सकती थीं. मुलायम सिंह यादव को आगे चलकर इसका लाभ मिला. यादव समुदाय उनके साथ खड़ा था. अल्पसंख्यक और आ गए, सपा का एम-वाई फैक्टर आज भी है. उसी फार्मूले को उनके पुत्र अखिलेश यादव भी बढ़ा रहे हैं.

कल्याण सरकार में ढहाया गया विवादित ढांचा
6 दिसंबर 1992 को कल्याण सरकार में विवादित ढांचा गिराया गया. भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार ही नहीं, अन्य राज्यों की भी सरकार बर्खास्त कर दी गई. इस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी को यहां नुकसान उठाना पड़ा. बीच में भाजपा का राम मंदिर आंदोलन से रिश्ता थोड़ा कमजोर हुआ, लेकिन जब केंद्र में नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे नेता सामने आए तो इन लोगों ने एक बार फिर हिंदुत्व को मजबूती से पकड़ा, नतीजा सामने है.

दूसरी तरफ कांग्रेस खड़ी है. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने मंदिर बनाना नहीं चाहा. कांग्रेस चाहती थी कि वह मंदिर बनवा दे. इसका उसे श्रेय भी मिल जाए, लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय को वह नाराज नहीं करना चाहती थी. कांग्रेस की संतुलन के साथ राजनीतिक लाभ लेने की सोच साकार रूप नहीं ले सकी. कांग्रेस के नेता दबी जुबान में यह कहते रहे हैं कि उनकी सरकार में ही मंदिर का ताला खुला. भगवान की पूजा शुरू हुई. कांग्रेस में यही दिक्कत है, वे इस मुद्दे को खुलकर नहीं बोल सकते. राजीव गांधी के बारे भी कई जानकर बताते हैं कि वह भाजपा और विहिप को दूर रखकर मंदिर निर्माण कराना चाह रहे थे. उनके इस योजना को भाजपाई ताकतों ने साकार रूप नहीं लेने दिया. खैर, इस मुद्दे पर राजनीतिक लाभ के मामले में कांग्रेस के हाथ ज्यादा निराशा ही लगी है.

नरेंद्र मोदी के खाते में राजनीतिक लाभ
अब बात आती है कि राम मंदिर निर्माण के उपरांत किस राजनीतिक दल को लाभ मिलता दिखाई दे रहा है. इस पर वरिष्ठ पत्रकार सियाराम पांडे कहते हैं कि राजनीतिक लाभ कम मिले या ज्यादा, भारतीय जनता पार्टी को ही मिलेगा. भारतीय जनता पार्टी के भीतर की बात करें, तो यह पूरा लाभ नरेंद्र मोदी के खाते में जाने वाला है. केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद से ही राम मंदिर मुद्दे को व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ाने का कार्य किया गया. हर दिन सुनवाई हो, इसके लिए भी इसी दौरान पुरजोर कोशिश की गई. परिणाम सामने है. हालांकि तमाम गुणा गणित के आधार पर यह बातें कही जा रही हैं. राजनीति में कभी कुछ भी संभव है, इसलिए अभी राजनीतिक नफा-नुकसान के बजाए मंदिर निर्माण पर बात करना ज्यादा बेहतर है. इस राजनीति का फायदा और नुकसान आगामी चुनाव में पता चलेगा और इसके लिए चुनाव का इंतजार करना होगा.

अयोध्या आंदोलनः कब, कहां और क्या
1- पहले आरोप, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की अब मुहरः 1528-29 में भयक्रांता बाबर के सेनापति मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद बनवाई.
2- 1853 में निर्मोही अखाड़े ने विवादित ढांचे पर दावा करते हुए कहा कि यह एक मंदिर था, जिसे बाबर के शासनकाल में नष्ट किया गया. इस दावे के बाद अयोध्या में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया.
3- फैजाबाद (अब अयोध्या) के जिला गजेटियर 1905 के अनुसार 1855 तक, दोनों धर्मों के लोग अपने अंदाज में अपने आराध्य को रिझाते रहे.
4- 1857 की पहली क्रांति के चलते देश अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा हो गया. दोनों धर्मों के लोग एकजुट हो गये. इससे अंग्रेजों को बड़ा धक्का लगा और उन्होंने 1859 में मस्जिद व मंदिर के बीच एक दीवार बना दी, जिसके एक मुस्लिम और दूसरे हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना की इजाजत दी गई.
5- 1885 में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद जिला कोर्ट में याचिका दाखिल करके विवादित ढांचे में राम मंदिर निर्माण की अनुमति मांगी. अदालत ने अपील खारिज कर दी.
6- 1934 में फिर से दंगा हुआ, जिसमें विवादित ढांचे की दीवार व गुंबद क्षतिग्रस्त हो गए. अंग्रेज सरकार ने इसकी नए सिरे से मरम्मत करा दी.
7- कहा जाता है कि 1949 हिंदू समाज के लोगों ने कथित तौर पर यहां मूर्ति स्थापित की. यह भी कहा गया कि मूर्ति प्रकट हुई, जिसके बाद सरकार परिसर को विवादित मान ताला लगवा दिया. (यह जनश्रुति है, साक्ष्य नहीं).
8- 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने अदालत में याचिका दाखिल कर भगवान श्रीराम की पूजा की अनुमति मांगी. महंत रामचंद्र दास ने विवादित ढांचे में हिंदुओं द्वारा पूजा जारी रखने के लिए याचिका दाखिल की, जिसमें मस्जिद 'ढांचा' कहा गया.
9- 1959-61 में विवाद अदालत पहुंच गया. अब दो पक्ष हो गए. एक ओर निर्मोही अखाड़ा था और दूसरी ओर सुन्नी वक्फ बोर्ड.
10- 1984 विश्व हिन्दू परिषद ने राम जन्मभूमि मुक्ति समिति का गठन किया. उसी समय गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ ने राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति गठित कर ली. कुछ अरसे बाद इस समिति का नेतृत्व भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी के हाथों आ गया.
11- 1986 में जिला मजिस्ट्रेट की कोर्ट ने मंदिर क्षेत्र का ताला खोलने का आदेश और मुस्लिम समुदाय की ओर से बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.
12- 1989 में अशोक सिंघल की अगुवाई वाली विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर का शिलान्यास किया. भाजपा ने विश्व हिन्दू परिषद को समर्थन किया.
13- 25 सितंबर 1990 में प्रख्यात बाबा विश्वनाथ के सोमनाथ मंदिर से भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या तक रथ यात्रा शुरू की. बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने यात्रा रोक ली और लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया.
14- लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बावजूद मंदिर निर्माण के लिए देशभर से लाखों ईंटें अयोध्या भेजी गईं, जिस पर कार्रवाई शुरू हुई. नाराज भाजपा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया.
15- 1990 में अक्टबूर की 30 तारीख को अयोध्या में पहली बार कारसेवा हुई और मुलायम सिंह यादव सरकार ने पुलिस फायरिंग का आदेश दिया. इसमें पांच कारसेवकों की मौत हुई.
16- अक्टूबर 1992 को साधु-संतों की धर्म संसद में कारसेवा की घोषणा की. यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कथित विवादित ढांचे की हिफाजत करने का कोर्ट में हलफनामा दिया.
17- 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में अपार जनसमुदाय उमड़ा, जिसने विवादित ढांचा ढहा दिया और देश व्यापी दंगे हुए.
18- 16 दिसंबर 1992 में विवादित ढांचा ढहा देने की जांच के लिए सरकार ने जस्टिस एमएस लिब्रहान आयोग गठित किया गया.
19- 1994 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पूरे प्रकरण की सुनवाई शुरू हुई.
20- सितंबर 1997 में एक फैसले में विवादित ढांचे के ढहाने को लेकर 49 लोग दोषी ठहराया गया.
21- 2001 में विश्व हिंदू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल ने राम मंदिर बनाने की तारीख घोषित कर दी.
22- 13 मार्च 2002 को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को अयोध्या में यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश जारी किया.
23- सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर के लिए एकत्रित शिलाएं प्रशासन को सौंपने का निर्णय लिया. 15 मार्च 2002 को शिलाएं प्रशासन को सौंप दी गईं.
24- अप्रैल 2002 में हाईकोर्ट में विवादित स्थल के मालिकाना हक पर तीन जजों की पीठ की सुनवाई शुरू हुई.
25- मार्च-अगस्त 2003 में कोर्ट के आदेश पर पुरातत्व विभाग ने कथित विवादित स्थल के नीचे खुदाई शुरू कर आंकलन शुरू किया.
26- मई 2003 में सीबीआई ने भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी समेत 8 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया.
27- जून 2003 में कांची पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती ने मध्यस्थता का नाकाम प्रयास किया.
28- नवंबर 2009 में लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी.
29- 20 मई 2010 को हाईकोर्ट ने इस प्रकरण की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी.
30- जुलाई 2010 में अयोध्या भूमि विवाद पर हाईकोर्ट में सुनवाई काम काम पूरा हो गया.
31- सितंबर 2010 में हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया और विवादित परिसर को तीन हिस्सों में बांट दिया.
32- 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई.
33- अप्रैल 2017 को 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने का सुझाव दिया. लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया.
34- अक्टूबर 2018 में ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जल्द सुनाई पर इनकार करते हुए केस जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया.
35- नवंबर 2018 में विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में फिर से धर्म सभा हुई.
36- 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए बनी समिति को 8 सप्ताह के अंदर कार्यवाही खत्म करने को कहा.
37- अगस्त 2019 में मध्यस्थता पैनल समाधान निकालने में विफल रहा.
38- 16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में सुनवाई पूरी की और भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अब भाजपा सांसद रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर प्रतिदिन सुनवाई शुरू की.

ऐतिहासिक दिन
39- 9 नवंबर 2019 को मुख्य न्यायाधीश रंजन गगोई की अध्यक्षता वाली पीठ फैसला सुनायाः फैसले में विवादित स्थल हिन्दू पक्षकारों को दिया गया. मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन अलग से दी गई.
40- 5 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद सत्र के दौरान 15 सदस्यीय श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की, जिसका बिल भी पेश किया गया.
41- 19 फरवरी 2020 को राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की पहली बैठक हुई, जिसमें महंत नृत्यगोपाल दास को ट्रस्ट का अध्यक्ष चुना गया. चंपत राय को महामंत्री बनाया गया. प्रधानमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा को भवन निर्माण समिति के चेयरमैन बनाया गया. गोविंद गिरी को ट्रस्ट का कोषाध्यक्ष बनाया गया.
42- मंदिर ट्रस्ट ने पांच अगस्त को राम मंदिर के लिए भूमि पूजन, शिलान्यास का कार्यक्रम तय किया है.

लखनऊ: अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा कुछ एक दिनों का नहीं, बल्कि सैकड़ों वर्ष पुराना है. 1528 में जिस धार्मिक आस्था के प्रकरण का जन्म हुआ, वह आजादी के कुछ समय बाद से राजनीति रंग लेने लगा. हिंदुओं और हिन्दू संगठनों को लगा कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण किए बिना उन्हें न्याय नहीं मिलने वाला है. धीरे-धीरे राजनीतिकरण शुरू हुआ.

साठ के दशक से चलकर अस्सी के दशक में राम मंदिर आंदोलन उस वक्त जोर पकड़ा, जब भाजपा के शीर्ष दो नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी ने राम रथ यात्रा निकाली. आंदोलन बढ़ता गया. राजनीतिक दल अपना-अपना हित देख रहे थे. किसी दल को इसका लाभ मिला, तो किसी को नुकसान सहन करना पड़ा. दोनों पक्ष हिन्दू हों या मुसलमान, उन्होंने देश की न्याय व्यवस्था में विश्वास व्यक्त किया. वर्षों इंतजार बाद अब न्यायालय के फैसले से मंदिर निर्माण होने जा रहा है.

राम आंदोलन से मंदिर निर्माण तक का राजनीतिकरण और उसका प्रभाव.

अयोध्या आंदोलन के दौरान के सक्रिय पत्रकार उमाशंकर त्रिपाठी कहते हैं कि भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है. ऐसे ही उनके मंदिर निर्माण में सभी मर्यादाओं का पालन हुआ है. इतने वर्षों तक इंतजार करने के बाद राम भक्तों को एक प्रक्रिया के तहत ही न्याय मिला है. भक्तों को न्याय मिल गया. अयोध्या आंदोलन की लंबी यात्रा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद ने गैर राजनीति संगठन के रूप में भूमिका अदा की. वहीं राजनीतिक दलों की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मुख्य घटक दल के रूप में जुड़े रहे हैं. बिहार की बात की जाए तो आडवाणी की रथ यात्रा को रोकने वाले तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव भी शामिल हैं. इन सभी ने आंदोलन का लाभ लेने का समय समय पर प्रयास किया.

मुलायम ने अयोध्या में गोली चलवाने की बात स्वीकारी
मुलायम सिंह यादव ने कई बार सार्वजनिक मंचों से इस बात को स्वीकारा कि 1990 में उनकी सरकार ने अगर कारसेवकों पर गोली नहीं चलवाई होती तो स्थितियां कुछ और हो सकती थीं. मुलायम सिंह यादव को आगे चलकर इसका लाभ मिला. यादव समुदाय उनके साथ खड़ा था. अल्पसंख्यक और आ गए, सपा का एम-वाई फैक्टर आज भी है. उसी फार्मूले को उनके पुत्र अखिलेश यादव भी बढ़ा रहे हैं.

कल्याण सरकार में ढहाया गया विवादित ढांचा
6 दिसंबर 1992 को कल्याण सरकार में विवादित ढांचा गिराया गया. भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार ही नहीं, अन्य राज्यों की भी सरकार बर्खास्त कर दी गई. इस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी को यहां नुकसान उठाना पड़ा. बीच में भाजपा का राम मंदिर आंदोलन से रिश्ता थोड़ा कमजोर हुआ, लेकिन जब केंद्र में नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे नेता सामने आए तो इन लोगों ने एक बार फिर हिंदुत्व को मजबूती से पकड़ा, नतीजा सामने है.

दूसरी तरफ कांग्रेस खड़ी है. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने मंदिर बनाना नहीं चाहा. कांग्रेस चाहती थी कि वह मंदिर बनवा दे. इसका उसे श्रेय भी मिल जाए, लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय को वह नाराज नहीं करना चाहती थी. कांग्रेस की संतुलन के साथ राजनीतिक लाभ लेने की सोच साकार रूप नहीं ले सकी. कांग्रेस के नेता दबी जुबान में यह कहते रहे हैं कि उनकी सरकार में ही मंदिर का ताला खुला. भगवान की पूजा शुरू हुई. कांग्रेस में यही दिक्कत है, वे इस मुद्दे को खुलकर नहीं बोल सकते. राजीव गांधी के बारे भी कई जानकर बताते हैं कि वह भाजपा और विहिप को दूर रखकर मंदिर निर्माण कराना चाह रहे थे. उनके इस योजना को भाजपाई ताकतों ने साकार रूप नहीं लेने दिया. खैर, इस मुद्दे पर राजनीतिक लाभ के मामले में कांग्रेस के हाथ ज्यादा निराशा ही लगी है.

नरेंद्र मोदी के खाते में राजनीतिक लाभ
अब बात आती है कि राम मंदिर निर्माण के उपरांत किस राजनीतिक दल को लाभ मिलता दिखाई दे रहा है. इस पर वरिष्ठ पत्रकार सियाराम पांडे कहते हैं कि राजनीतिक लाभ कम मिले या ज्यादा, भारतीय जनता पार्टी को ही मिलेगा. भारतीय जनता पार्टी के भीतर की बात करें, तो यह पूरा लाभ नरेंद्र मोदी के खाते में जाने वाला है. केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद से ही राम मंदिर मुद्दे को व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ाने का कार्य किया गया. हर दिन सुनवाई हो, इसके लिए भी इसी दौरान पुरजोर कोशिश की गई. परिणाम सामने है. हालांकि तमाम गुणा गणित के आधार पर यह बातें कही जा रही हैं. राजनीति में कभी कुछ भी संभव है, इसलिए अभी राजनीतिक नफा-नुकसान के बजाए मंदिर निर्माण पर बात करना ज्यादा बेहतर है. इस राजनीति का फायदा और नुकसान आगामी चुनाव में पता चलेगा और इसके लिए चुनाव का इंतजार करना होगा.

अयोध्या आंदोलनः कब, कहां और क्या
1- पहले आरोप, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की अब मुहरः 1528-29 में भयक्रांता बाबर के सेनापति मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद बनवाई.
2- 1853 में निर्मोही अखाड़े ने विवादित ढांचे पर दावा करते हुए कहा कि यह एक मंदिर था, जिसे बाबर के शासनकाल में नष्ट किया गया. इस दावे के बाद अयोध्या में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया.
3- फैजाबाद (अब अयोध्या) के जिला गजेटियर 1905 के अनुसार 1855 तक, दोनों धर्मों के लोग अपने अंदाज में अपने आराध्य को रिझाते रहे.
4- 1857 की पहली क्रांति के चलते देश अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा हो गया. दोनों धर्मों के लोग एकजुट हो गये. इससे अंग्रेजों को बड़ा धक्का लगा और उन्होंने 1859 में मस्जिद व मंदिर के बीच एक दीवार बना दी, जिसके एक मुस्लिम और दूसरे हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना की इजाजत दी गई.
5- 1885 में महंत रघुबर दास ने फैजाबाद जिला कोर्ट में याचिका दाखिल करके विवादित ढांचे में राम मंदिर निर्माण की अनुमति मांगी. अदालत ने अपील खारिज कर दी.
6- 1934 में फिर से दंगा हुआ, जिसमें विवादित ढांचे की दीवार व गुंबद क्षतिग्रस्त हो गए. अंग्रेज सरकार ने इसकी नए सिरे से मरम्मत करा दी.
7- कहा जाता है कि 1949 हिंदू समाज के लोगों ने कथित तौर पर यहां मूर्ति स्थापित की. यह भी कहा गया कि मूर्ति प्रकट हुई, जिसके बाद सरकार परिसर को विवादित मान ताला लगवा दिया. (यह जनश्रुति है, साक्ष्य नहीं).
8- 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने अदालत में याचिका दाखिल कर भगवान श्रीराम की पूजा की अनुमति मांगी. महंत रामचंद्र दास ने विवादित ढांचे में हिंदुओं द्वारा पूजा जारी रखने के लिए याचिका दाखिल की, जिसमें मस्जिद 'ढांचा' कहा गया.
9- 1959-61 में विवाद अदालत पहुंच गया. अब दो पक्ष हो गए. एक ओर निर्मोही अखाड़ा था और दूसरी ओर सुन्नी वक्फ बोर्ड.
10- 1984 विश्व हिन्दू परिषद ने राम जन्मभूमि मुक्ति समिति का गठन किया. उसी समय गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ ने राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति गठित कर ली. कुछ अरसे बाद इस समिति का नेतृत्व भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी के हाथों आ गया.
11- 1986 में जिला मजिस्ट्रेट की कोर्ट ने मंदिर क्षेत्र का ताला खोलने का आदेश और मुस्लिम समुदाय की ओर से बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.
12- 1989 में अशोक सिंघल की अगुवाई वाली विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर का शिलान्यास किया. भाजपा ने विश्व हिन्दू परिषद को समर्थन किया.
13- 25 सितंबर 1990 में प्रख्यात बाबा विश्वनाथ के सोमनाथ मंदिर से भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या तक रथ यात्रा शुरू की. बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने यात्रा रोक ली और लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया.
14- लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बावजूद मंदिर निर्माण के लिए देशभर से लाखों ईंटें अयोध्या भेजी गईं, जिस पर कार्रवाई शुरू हुई. नाराज भाजपा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया.
15- 1990 में अक्टबूर की 30 तारीख को अयोध्या में पहली बार कारसेवा हुई और मुलायम सिंह यादव सरकार ने पुलिस फायरिंग का आदेश दिया. इसमें पांच कारसेवकों की मौत हुई.
16- अक्टूबर 1992 को साधु-संतों की धर्म संसद में कारसेवा की घोषणा की. यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कथित विवादित ढांचे की हिफाजत करने का कोर्ट में हलफनामा दिया.
17- 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में अपार जनसमुदाय उमड़ा, जिसने विवादित ढांचा ढहा दिया और देश व्यापी दंगे हुए.
18- 16 दिसंबर 1992 में विवादित ढांचा ढहा देने की जांच के लिए सरकार ने जस्टिस एमएस लिब्रहान आयोग गठित किया गया.
19- 1994 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पूरे प्रकरण की सुनवाई शुरू हुई.
20- सितंबर 1997 में एक फैसले में विवादित ढांचे के ढहाने को लेकर 49 लोग दोषी ठहराया गया.
21- 2001 में विश्व हिंदू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल ने राम मंदिर बनाने की तारीख घोषित कर दी.
22- 13 मार्च 2002 को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को अयोध्या में यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश जारी किया.
23- सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर के लिए एकत्रित शिलाएं प्रशासन को सौंपने का निर्णय लिया. 15 मार्च 2002 को शिलाएं प्रशासन को सौंप दी गईं.
24- अप्रैल 2002 में हाईकोर्ट में विवादित स्थल के मालिकाना हक पर तीन जजों की पीठ की सुनवाई शुरू हुई.
25- मार्च-अगस्त 2003 में कोर्ट के आदेश पर पुरातत्व विभाग ने कथित विवादित स्थल के नीचे खुदाई शुरू कर आंकलन शुरू किया.
26- मई 2003 में सीबीआई ने भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी समेत 8 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया.
27- जून 2003 में कांची पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती ने मध्यस्थता का नाकाम प्रयास किया.
28- नवंबर 2009 में लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी.
29- 20 मई 2010 को हाईकोर्ट ने इस प्रकरण की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी.
30- जुलाई 2010 में अयोध्या भूमि विवाद पर हाईकोर्ट में सुनवाई काम काम पूरा हो गया.
31- सितंबर 2010 में हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया और विवादित परिसर को तीन हिस्सों में बांट दिया.
32- 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई.
33- अप्रैल 2017 को 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने का सुझाव दिया. लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया.
34- अक्टूबर 2018 में ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जल्द सुनाई पर इनकार करते हुए केस जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया.
35- नवंबर 2018 में विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में फिर से धर्म सभा हुई.
36- 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए बनी समिति को 8 सप्ताह के अंदर कार्यवाही खत्म करने को कहा.
37- अगस्त 2019 में मध्यस्थता पैनल समाधान निकालने में विफल रहा.
38- 16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में सुनवाई पूरी की और भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अब भाजपा सांसद रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर प्रतिदिन सुनवाई शुरू की.

ऐतिहासिक दिन
39- 9 नवंबर 2019 को मुख्य न्यायाधीश रंजन गगोई की अध्यक्षता वाली पीठ फैसला सुनायाः फैसले में विवादित स्थल हिन्दू पक्षकारों को दिया गया. मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन अलग से दी गई.
40- 5 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद सत्र के दौरान 15 सदस्यीय श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की, जिसका बिल भी पेश किया गया.
41- 19 फरवरी 2020 को राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की पहली बैठक हुई, जिसमें महंत नृत्यगोपाल दास को ट्रस्ट का अध्यक्ष चुना गया. चंपत राय को महामंत्री बनाया गया. प्रधानमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा को भवन निर्माण समिति के चेयरमैन बनाया गया. गोविंद गिरी को ट्रस्ट का कोषाध्यक्ष बनाया गया.
42- मंदिर ट्रस्ट ने पांच अगस्त को राम मंदिर के लिए भूमि पूजन, शिलान्यास का कार्यक्रम तय किया है.

Last Updated : Aug 4, 2020, 2:25 PM IST
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