लखनऊ : किडनी हमारे खून को साफ करती है. एक व्यक्ति के शरीर में दो किडनी होती हैं, लेकिन कभी-कभी किडनी संबंधित बीमारी के चलते या फिर फेल हो जाने के कारण मरीज को डायलिसिस का सहारा लेना पड़ता है. किडनी फेल होने जाने की स्थिति में ट्रांसप्लांट की भी आवश्यकता पड़ती है. अगर किसी व्यक्ति की एक किडनी खराब होती है तो उसकी जिंदगी चलती रहती है, लेकिन अगर किसी व्यक्ति की दोनों ही किडनी खराब हो जाती है तो यकीनन वह अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकता है. इस स्थिति में किडनी ट्रांसप्लांट होती है.
सरकारी संस्थान में कम बजट में होता है किडनी ट्रांसप्लांट : सरकारी संस्थान में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए तकरीबन एक से डेढ़ लाख रुपए का खर्च आता है, हालांकि किडनी ट्रांसप्लांट के लिए जब किसी निजी अस्पताल में कोई मरीज जाता है तो वहां पर अलग-अलग शुल्क निर्धारित होते हैं. सरकार के द्वारा आयुष्मान कार्ड योजना है उसके तहत भी मरीज किडनी ट्रांसप्लांट कर सकता है. नए नियमों के तहत किडनी ट्रांसप्लांट करने की 65 साल की उम्र को बढ़ाकर 75 साल तय कर दी है.
किडनी ट्रांसप्लांट के बाद रहें सतर्क : किडनी ट्रांसप्लांट के पांच से छह महीनों तक किसी भी प्रकार का वाहन न चलाएं और न ही ज्यादा लंबा सफर तय करें. किडनी ट्रांसप्लांट के बाद सावधानी बरतते हुए आपको ज्यादा से ज्यादा आराम करना चाहिए. किडनी ट्रांसप्लांट होने के बाद कम से कम छह से आठ सप्ताह तक अचानक या तेजी से उठने, बैठने, लेटने से बचें. अगर मरीज की नई किडनी खराब हो जाती है तो मरीज को जीवित रहने के लिए डायलिसिस पर वापस जाना होगा. मरीज दूसरे किडनी प्रत्यारोपण के लिए भी मूल्यांकन करवा सकते हैं. अगर मरीज पर्याप्त रूप से स्वस्थ हैं, तो वह एक से अधिक किडनी प्रत्यारोपण करा सकते हैं.
किडनी फेल के लक्षण |
- क्रॉनिक डिजीज का लगातार बढ़ना. |
- जांच करने के बाद किसी भी बीमारी का न निकालना. |
- खाना डाइजेस्ट होने में समस्या. |
- अत्यधिक थकान होना. |
- खाना खाने की इच्छा न होना. |
- उल्टी जैसा लगना. |
- पीठ या पसलियों में लगातार दर्द होना. |
- पेशाब का कम होना पर जल्दी जल्दी लगना या झागदार पेशाब होना. |
- शरीर का डिटॉक्स न होने के कारण त्वचा में रूखापन, खुजली और दुर्गन्ध बने रहना. |
- बार-बार किडनी इन्फेक्शन होना. |
- आंखों के आसपास सूजन. |
- नींद न आना. |
90 प्रतिशत सफलता दर : किडनी ट्रांसप्लांट के लिए स्वास्थ्य निदेशालय के द्वारा कमेटी में वेरिफिकेशन के बाद अस्पताल भेजा जाता है. उन्हें ऐसे अस्पतालों में ट्रांसप्लांट के लिए भेजा जाता है, जहां पर किडनी ट्रांसप्लांट की जा चुके हो और उन केसों की सफलता दर भी हो. ऐसे में अगर किसी मेडिकल कॉलेज, पीजीआई या किसी अच्छे निजी अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट होती है तो उसकी सफलता दर 90 प्रतिशत की होती है. ऑपरेशन के बाद व्यक्ति को डॉक्टर के ऑब्जर्वेशन में रखा जाता है. जब तक व्यक्ति पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो जाता तब तक उसे आराम करना होता है. अस्पताल से डिस्चार्ज भी कर दिया जाता है, लेकिन घर पर उसे आराम करना होता है.
कमेटी में होते हैं यह मेंबर्स : सीएमओ के द्वारा नामित प्रतिनिधि, केजीएमयू के द्वारा नामित प्रतिनिधि, शहर के प्रतिष्ठित नामित अस्पताल के द्वारा प्रतिनिधि, स्वास्थ्य निदेशालय के द्वारा चिकित्सा सुविधा के लिए नामित व्यक्ति.
क्यों फेल होती है किडनी : आज की भाग दौड़ वाली जिंदगी में हर कोई किसी न किसी बीमारी से ग्रसित हो रहा है. आमतौर पर कम उम्र में ही लोग डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित हो रहे हैं. क्रोनिक किडनी रोग के कारणों में मधुमेह, उच्च रक्तचाप के अलावा ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस (किडनी में सूजन) और पॉलीसिस्टिक किडनी रोग शामिल हैं. इस स्थिति में इन बीमारियों का पारिवारिक इतिहास शामिल होता है. ज्यादातर ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर (कोशिकास्तवक) और एल्ब्यूमिन (कोशिश गुच्छ) की मात्रा निर्धारित करने के लिए मूत्र परीक्षणों को मापने के लिए रक्त परीक्षणों द्वारा किया जाता है.
मरीज के इलाज के लिए महत्वपूर्ण तथ्य |
- किडनी देने और लेने वाले का रक्त मिलना चाहिए. |
- किडनी डोनर स्वस्थ व्यक्ति होना चाहिए, जिसकी दोनों किडनी ठीक हों और उसे किसी प्रकार का कोई रोग न हो. |
- किडनी ट्रांसप्लांट के केस में पैसे का मोलभाव नहीं होता है. किडनी लेने वाले को किडनी देने वाले की सिक्योरिटी देखनी होती है. |
- अगर किडनी देने और लेने वाले व्यक्ति दूर के रिश्तेदार हैं या अनजान हैं तो कमेटी को अप्रूवल देने में सोचना पड़ता है. |
- कमेटी के द्वारा किडनी ट्रांसप्लांट के लिए दोनों के पते की पुष्टि के लिए एसडीएम व डीएम का हस्ताक्षर होता है. |
- किडनी देने के लिए दोनों के बीच पुराने रिश्ते होने चाहिए. |
- मरीजों को उन अस्पतालों में भेजा जाता है जिसमें 25 किडनी ट्रांसप्लांट कर चुकी हों. |
किडनी मरीजों के लिए 11 अस्पतालों में डायलिसिस यूनिट : प्रदेश सरकार चिकित्सा क्षेत्र में लगातार काम रही है. स्वास्थ्य सुविधाओं में इजाफा करने के लिए प्रदेश सरकार ने बजट दिया है. डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने प्रदेश के 11 अस्पतालों के लिए वित्तीय स्वीकृति प्रदान की है. इसमें किडनी मरीजों के लिए डायलिसिस यूनिट खोली जा रही हैं. तीन अस्पतालों में ब्लड बैंक की स्थापना होगी. उन्होंने तय समय पर काम करने के निर्देश दिए हैं. साथ ही अधिकारियों को कामकाज की निगरानी की हिदायत दी है.
उन्होंने लखनऊ के लोकबंधु राज नारायण अस्पताल में चार-चार बेड की दो डायलिसिस यूनिट खोलने के निर्देश दिए हैं. साथ ही अस्पताल में ब्लड बैंक के लिए रोटरी इंटरनेशनल को अनुमति प्रदान की है. वाराणसी और गोरखपुर में चार-चार बेड की डायलिसिस यूनिट खोलने की अनुमति प्रदान की है. इन दोनों अस्पतालों में भी रोटरी इंटरनेशनल ब्लड बैंक की स्थापना में मदद करेगी. डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा कि 'लखनऊ के उच्च न्यायालय इलाहाबाद खण्डपीठ की पैथोलॉजी को अपग्रेड किया जा रहा है. इसमें ऑटोमेटिक बायोकैमेस्ट्री एनालाइजर मशीन लगाई जाएगी. इसके लिए 4,68,400 रुपये की स्वीकृति प्रदान की गयी है. उन्होंने बताया कि कानपुर के यूएचएम (उर्सला) अस्पताल में दो लिफ्ट लगाई जाएंगी. इसके लिए 88.90 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्रदान कर दी गयी है.'
आगरा मानसिक आरोग्यशाला को 327.41 लाख रुपये का अनुदान दिया गया है. उरई-जालौन के जिला पुरुष चिकित्सालय को आधुनिक उपकरणों से लैस किया जाएगा. डॉक्टर, मरीज तीमारदारों की सहूलियतों के लिए फर्नीचर भी क्रय किया जाएगा. इसके लिए 80,06,000 रुपये की मंजूरी दी गई है. बस्ती के जिला महिला चिकित्सालय को 44.08,480 व बलरामपुर के मेमोरियल जिला चिकित्सालय को उपकरण व फर्नीचर के लिए 2,11,99,466 रुपये की वित्तीय स्वीकृति दी गई है. झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के प्रशासनिक भवन में फायर फाइटिंग सिस्टम व फायर एलार्म की स्थापना के लिए 208.21 लाख की वित्तीय स्वीकृति दी गयी है.