ETV Bharat / state

Armed Forces Tribunal : नाउम्मीद हो चुके सैन्य परिजनों को सशस्त्र बल अधिकरण से मिल रहा न्याय

author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 9, 2023, 2:37 PM IST

सेना में अपनी सेवा देने वाले जवानों पर जब कोई दिक्कत आई तो सेना ने साथ देने के बजाय उनका झटक दिया. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद जब परिजनों की उम्मीद टूट गई तो आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल ने कई ऐसे फैसले दिए जो नजीर बन गए. ऐसे ही कुछ मामलों की देखिए विशेष रिपोर्ट.

Etv Bharat
Etv Bharat

लखनऊ : अधिवक्ता विजय कुमार पांडेय बताते हैं कि सशस्त्र बल अधिकरण में सेना के जवानों से जुड़े मामले आते हैं. इनमें कई मामले काफी पेचीदा होते हैं. कई मामलों में परिजन काफी थक हार कर चुके होते हैं. हालांकि न्याय की उम्मीद लेकर पहुंचने वालों को सशस्त्र बल अधिकरण (आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल) में न्याय जरूर मिलता है. एडवोकेट विजय पांडेय कई ऐसे मामले बताते हैं. विजय पांडेय आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल में आने वालों की ही पैरवी करते हैं और कई लोगों को न्याय दिला चुके हैं.

नाउम्मीद हो चुके सैन्य परिजनों को सशस्त्र बल अधिकरण से मिला न्याय.
नाउम्मीद हो चुके सैन्य परिजनों को सशस्त्र बल अधिकरण से मिला न्याय.

एडवोकेट विजय पांडेय ने बताया कि बीते दिनों भारतीय थल सेना की सिग्नल कोर में 19 साल देश की सेवा करने वाले बलिया के जांबाज सैनिक वेद विजय पांडय को सशत्र-बल अधिकरण ने 75 फीसद विकलांगता पेंशन दिए जाने का फैसला सुनाया था. मामला था वर्ष 2022 में मेडिकल बोर्ड ने चार विकलांगताओं में करीब 57 फीसद अपंगता के कारण डिस्चार्ज किए जाने की सिफारिश की. जिसमें सिर्फ फायरिंग में दौरान विस्फोट होने से कान का पर्दा फटने के मामले को सिर्फ सेना से जुड़ा माना और 50 प्रतिशत दिव्यांगता पेंशन देकर याची को सेना से डिस्चार्ज कर दिया, जबकि कोलायड सिस्ट से बिगड़ी दिमागी हालत को ठीक करने के लिए किए गए ऑपरेशन से आई 20 फीसद दिमागी विकलांगता को जन्मजात और अनुवांशिक बताकर सेना ने पल्ला झाड़ लिया.

अधिवक्ता विजय कुमार पांडेय बताते हैं कि विवाद उस समय बढ़ा जब अगस्त 2022 में याची की अपील भारत सरकार ने खारिज कर दी. उसके बाद याची ने मेरे माध्यम से सशत्र-बल अधिकरण, लखनऊ में वाद योजित किया. इसकी सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति रवीन्द्र नाथ कक्कड़ और एडमिरल अतुल कुमार जैन की खंडपीठ ने सैनिक के पक्ष में फैसला सुनाया. कहा कि 18 साल की देश सेवा के बाद होने वाली दिमाग में दिक्कत को कोई भी समझदार व्यक्ति कैसे जन्मजात और आनुवांशिक स्वीकार कर सकता है? जबकि, मेडिकल बोर्ड ने अपनी राय रखने के बजाय सीधे तौर पर सिर्फ यह कह दिया कि इसका सेना से कोई लेना देना नहीं है जो संदेहास्पद है जिसका लाभ उच्चतम न्यायालय की विधि-व्यवस्था के अनुसार याची को दिए जाने का विधान है. खंडपीठ ने भारत सरकार के सभी आदेश खारिज करते हुए याची को 75 फीसद पेंशन चार माह के अंदर देने का आदेश दिया. यह भी कहा कि समय सीमा का पालन न होने पर याची आठ प्रतिशत ब्याज पाने का हकदार होगा.




अधिवक्ता विजय कुमार पांडेय ने बताया कि इससे पहले लेह लद्दाख में माइनस 40 डिग्री तापमान के बीच बर्फीले तूफान से आंख की रोशनी खो देने वाले सेवा के एक जवान को 24 साल बाद दिव्यांगता पेंशन जारी करने का भी आदेश आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल की तरफ से दिया गया था. सेवा काल के दौरान हवलदार देव बहादुर छेत्री वर्ष 1998 में लेह लद्दाख में तैनात थे और माइनस 40 डिग्री तापमान के बीच तेज बर्फीले तूफान का शिकार हो गए. उनकी आंख में बर्फ लग गई जिससे आंखों की रोशनी चली गई थी. कई बार ऑपरेशन हुआ पर रोशनी वापस नहीं आई. इसके बाद सेना ने हवलदार देव बहादुर को मेडिकल का आधार लेकर रिटायर कर दिया. यह भी कह दिया कि आंख खराब होने के लिए सैनिक खुद ही जिम्मेदार है न कि आर्मी. इससे हवलदार देव बहादुर को दिव्यंगता पेंशन नहीं दी जाएगी.

रक्षा मंत्रालय से कई बार दिव्यांगता पेंशन दिए जाने की हवलदार की तरफ से अपील की गई, लेकिन रक्षा मंत्रालय ने भी अपील खारिज कर दी. इसके बाद हवलदार ने आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल लखनऊ में याचिका दायर की थी. जिसके बाद मैंने उनका केस लड़ा था. न्यायमूर्ति उमेश चंद्र श्रीवास्तव और वाइस एडमिरल (सेवानिवृत्त) अभय रघुनाथ करवे की बेंच ने मामले की सुनवाई की थी. बेंच अपने फैसले में कहा कि हवलदार देव बहादुर छेत्री को 8% ब्याज के साथ दिव्यांगता पेंशन मिलनी ही चाहिए. इतना ही नहीं हवलदार का मेडिकल दोबारा कराकर इस आधार पर उसकी दिव्यांगता तय करके आगे पेंशन निर्धारण का भी आदेश दिया. ये मामला भी काफी चर्चित था जिसमें सेवा के जवान को न्याय मिला था. ऐसे ही सेना के जवानों से जुड़े कई मामले हैं जिनमें सशस्त्र बल अधिकरण ने उन्हें राहत दी है.

यह भी पढ़ें

लखनऊ : अधिवक्ता विजय कुमार पांडेय बताते हैं कि सशस्त्र बल अधिकरण में सेना के जवानों से जुड़े मामले आते हैं. इनमें कई मामले काफी पेचीदा होते हैं. कई मामलों में परिजन काफी थक हार कर चुके होते हैं. हालांकि न्याय की उम्मीद लेकर पहुंचने वालों को सशस्त्र बल अधिकरण (आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल) में न्याय जरूर मिलता है. एडवोकेट विजय पांडेय कई ऐसे मामले बताते हैं. विजय पांडेय आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल में आने वालों की ही पैरवी करते हैं और कई लोगों को न्याय दिला चुके हैं.

नाउम्मीद हो चुके सैन्य परिजनों को सशस्त्र बल अधिकरण से मिला न्याय.
नाउम्मीद हो चुके सैन्य परिजनों को सशस्त्र बल अधिकरण से मिला न्याय.

एडवोकेट विजय पांडेय ने बताया कि बीते दिनों भारतीय थल सेना की सिग्नल कोर में 19 साल देश की सेवा करने वाले बलिया के जांबाज सैनिक वेद विजय पांडय को सशत्र-बल अधिकरण ने 75 फीसद विकलांगता पेंशन दिए जाने का फैसला सुनाया था. मामला था वर्ष 2022 में मेडिकल बोर्ड ने चार विकलांगताओं में करीब 57 फीसद अपंगता के कारण डिस्चार्ज किए जाने की सिफारिश की. जिसमें सिर्फ फायरिंग में दौरान विस्फोट होने से कान का पर्दा फटने के मामले को सिर्फ सेना से जुड़ा माना और 50 प्रतिशत दिव्यांगता पेंशन देकर याची को सेना से डिस्चार्ज कर दिया, जबकि कोलायड सिस्ट से बिगड़ी दिमागी हालत को ठीक करने के लिए किए गए ऑपरेशन से आई 20 फीसद दिमागी विकलांगता को जन्मजात और अनुवांशिक बताकर सेना ने पल्ला झाड़ लिया.

अधिवक्ता विजय कुमार पांडेय बताते हैं कि विवाद उस समय बढ़ा जब अगस्त 2022 में याची की अपील भारत सरकार ने खारिज कर दी. उसके बाद याची ने मेरे माध्यम से सशत्र-बल अधिकरण, लखनऊ में वाद योजित किया. इसकी सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति रवीन्द्र नाथ कक्कड़ और एडमिरल अतुल कुमार जैन की खंडपीठ ने सैनिक के पक्ष में फैसला सुनाया. कहा कि 18 साल की देश सेवा के बाद होने वाली दिमाग में दिक्कत को कोई भी समझदार व्यक्ति कैसे जन्मजात और आनुवांशिक स्वीकार कर सकता है? जबकि, मेडिकल बोर्ड ने अपनी राय रखने के बजाय सीधे तौर पर सिर्फ यह कह दिया कि इसका सेना से कोई लेना देना नहीं है जो संदेहास्पद है जिसका लाभ उच्चतम न्यायालय की विधि-व्यवस्था के अनुसार याची को दिए जाने का विधान है. खंडपीठ ने भारत सरकार के सभी आदेश खारिज करते हुए याची को 75 फीसद पेंशन चार माह के अंदर देने का आदेश दिया. यह भी कहा कि समय सीमा का पालन न होने पर याची आठ प्रतिशत ब्याज पाने का हकदार होगा.




अधिवक्ता विजय कुमार पांडेय ने बताया कि इससे पहले लेह लद्दाख में माइनस 40 डिग्री तापमान के बीच बर्फीले तूफान से आंख की रोशनी खो देने वाले सेवा के एक जवान को 24 साल बाद दिव्यांगता पेंशन जारी करने का भी आदेश आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल की तरफ से दिया गया था. सेवा काल के दौरान हवलदार देव बहादुर छेत्री वर्ष 1998 में लेह लद्दाख में तैनात थे और माइनस 40 डिग्री तापमान के बीच तेज बर्फीले तूफान का शिकार हो गए. उनकी आंख में बर्फ लग गई जिससे आंखों की रोशनी चली गई थी. कई बार ऑपरेशन हुआ पर रोशनी वापस नहीं आई. इसके बाद सेना ने हवलदार देव बहादुर को मेडिकल का आधार लेकर रिटायर कर दिया. यह भी कह दिया कि आंख खराब होने के लिए सैनिक खुद ही जिम्मेदार है न कि आर्मी. इससे हवलदार देव बहादुर को दिव्यंगता पेंशन नहीं दी जाएगी.

रक्षा मंत्रालय से कई बार दिव्यांगता पेंशन दिए जाने की हवलदार की तरफ से अपील की गई, लेकिन रक्षा मंत्रालय ने भी अपील खारिज कर दी. इसके बाद हवलदार ने आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल लखनऊ में याचिका दायर की थी. जिसके बाद मैंने उनका केस लड़ा था. न्यायमूर्ति उमेश चंद्र श्रीवास्तव और वाइस एडमिरल (सेवानिवृत्त) अभय रघुनाथ करवे की बेंच ने मामले की सुनवाई की थी. बेंच अपने फैसले में कहा कि हवलदार देव बहादुर छेत्री को 8% ब्याज के साथ दिव्यांगता पेंशन मिलनी ही चाहिए. इतना ही नहीं हवलदार का मेडिकल दोबारा कराकर इस आधार पर उसकी दिव्यांगता तय करके आगे पेंशन निर्धारण का भी आदेश दिया. ये मामला भी काफी चर्चित था जिसमें सेवा के जवान को न्याय मिला था. ऐसे ही सेना के जवानों से जुड़े कई मामले हैं जिनमें सशस्त्र बल अधिकरण ने उन्हें राहत दी है.

यह भी पढ़ें
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.