लखनऊ: ई-रिक्शा की तरह साउंड लेस, आहिस्ता रफ्तार, कितना मजेदार होता है एक तरफा प्यार... भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान में हिंदी सप्ताह का आयोजन किया गया है. इस आयोजन के तहत आज संस्थान में कवि सम्मेलन आयोजित किया गया. इस आयोजन में राजेंद्र पंडित, मुकुल महान, ताराचंद्र तन्हा, पंकज प्रसून और सूर्यकुमार पांडे जैसे कवियों और व्यंग्यकारों ने प्रतिभाग किया. इन कवियों ने अपनी कविताओं में राजनीति, प्यार, लड़कियों और सोशल मीडिया सहित समाज के कई ऐसे हास्यास्पद पद सुनाएं, जिसे सुनकर वैज्ञानिक और शोधकर्ताओं समेत छात्र-छात्राएं हंस-हंस कर लोटपोट हो गए.
कवि सम्मेलन का भी आयोजन
हिंदी सप्ताह के तहत हुए इस कवि सम्मेलन में सभी कवियों ने अपनी अपनी कविताओं के साथ यह संदेश भी दिया कि हिंदी भाषा की महत्ता हमारे जीवन में कितनी जरूरी है, वह किस तरह से समाई हुई है. इस कार्यक्रम के बारे में संस्थान की एक्टिंग डायरेक्टर डॉ. पूनम कक्कड़ कहती हैं कि हम हर साल हिंदी सप्ताह का आयोजन करते हैं और पिछले कई वर्षों से कवि सम्मेलन का भी आयोजन करते आ रहे हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि इसमें वैज्ञानिकों से लेकर शोधकर्ताओं, रिसर्च स्कॉलर और यहां तक कि कर्मचारियों को भी काफी रुचि रहती है और वह इसे सुनना पसंद करते हैं. साथ ही साथ हिंदी सप्ताह के तहत कई ऐसी बातें भी हास्य के रूप में हमें पता चल जाती है जो हमारे आसपास से जुड़ी होती है. यहां पर आए कवि अपनी तरफ से जो भी बातें कहते हैं वह मन को छू जाती हैं और हमेशा जहन में बसी रहती हैं.
बहते जल के समान है हिंदी भाषा
इस अवसर पर साहित्यकार और व्यंग्यकार सूर्य कुमार पांडे कहते हैं कि हिंदी की भाषा बहते जल के समान होती है, और यह वक्त के साथ बदलती रहती है. फिर चाहे वो ऑक्सफोर्ड की डिक्शनरी हो और या फिर हिंदी का शब्दकोश. इन में समय के साथ नए शब्द जोड़ते रहते हैं, और हमारी रोजमर्रा के जीवन में भी शामिल होते जा रहे हैं. ऐसे में हम भी उन्ही शब्दों का इस्तेमाल अपनी कविताओं में करते हैं. जिसे हमारे श्रोता सुने और समझ सकें. साथ ही वह कहते हैं कि कभी-कभी मूल शब्द ही हमारे जीवन शैली में समाहित हो जाते हैं. उनका भावार्थ निकालना सही नहीं होता. जैसे मोबाइल, कैमरा, सोशल मीडिया आदि इन सभी शब्दों को हिंदी की आवश्यकता नहीं है.
प्रदेश की मातृभाषा
हिंदी सप्ताह के मायने तो हिंदी के प्रसार के लिए है. हिंदी हमारे देश की राजभाषा भी है, और हमारे प्रदेश की मातृभाषा भी है. यह भाषा अधिकांश राज्यों की मातृभाषा है. इसलिए हमारा प्रयास होता है कि हिंदी राष्ट्रभाषा बने और लोग इसे अपनाएं. हिंदी पहले से ही सर्वव्यापी है. यहां तक वसुधैव कुटुंबकम की परंपरा भारत में चली आ रही है. उसमें भी हिंदी शामिल है.
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हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसमें सभी भाषाओं के शब्दों को मिलाया जा सकता है, और उसके बावजूद हिंदी के वाक्य बेहतरीन रूप से सामने आता है. हम किसी और भाषा में हिंदी के किसी शब्द को नहीं जोड़ सकते पर कई भाषाओं के शब्द हिंदी में जोड़कर हिंदी के ही हो जाते हैं. इसी तरह वैज्ञानिक संस्थानों में भी हिंदी को बढ़ावा मिलना चाहिए . यहां पर आए रिसर्च स्कॉलर और वैज्ञानिक भाषा को समझने के बजाय कांसेप्ट को समझने पर ज्यादा ध्यान दे पाएं.
-पंकज प्रसून, हास्य कवि