लखनऊ : नगर निकाय चुनाव को लेकर जारी किए गए आरक्षण पर हाईकोर्ट ने सवाल खड़े किए थे. इसके बाद मंगलवार को हाईकोर्ट से महत्वपूर्ण फैसला आ सकता है. निकाय चुनाव को लेकर कोर्ट के फैसले पर सरकार के साथ-साथ सभी राजनीतिक दलों की भी नजरें लगी हुई हैंं. राज्य सरकार के नगर विकास विभाग की तरफ से हाईकोर्ट में पक्षकारों को दिए जवाब में 2017 के सर्वे को ओबीसी आरक्षण का आधार बताया है. नवगठित नगर पंचायत नगर पालिका व तमाम नगर पंचायतों का हुआ सीमा विस्तार के मामले में भी तमाम याचिका हाईकोर्ट में दाखिल हुई है. इसके अलावा हाई कोर्ट अगर सरकार के ओबीसी आरक्षण सर्वे से सहमत नहीं नहीं हुआ तो स्थानीय निकाय चुनाव तीन चार महीने आगे बढ़ सकते हैं
राज्य सरकार (state government) के नगर विकास विभाग के सचिव रंजन कुमार ने हाईकोर्ट में याचिका करने वाले पत्रकारों को दिए जवाब में कहा है कि वर्ष 2017 में हुए ओबीसी के सर्वे को आरक्षण आधार मानकर ही आरक्षण प्रक्रिया लागू की गई है. पक्षकारों को दिए गए जवाबी हलफनामे में नगर विकास विभाग ने कहा है कि वर्ष 2017 में हुए ओबीसी सर्वे को ही ट्रिपल सर्वे माना जाए. हलफनामे में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि इस चुनाव में ट्रांसजेंडर्स को आरक्षण नहीं दिया जा सकता है. 20 दिसंबर (मंगलवार) की सुनवाई में सरकार इस बात पर भी निर्णय करेगी कि राज्य सरकार किन प्रावधानों के तहत नगर निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की है. इस बिंदु पर सरकार का कहना है कि 5 दिसंबर 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के अंतर्गत यह प्रावधान है. नगर निकायों के अध्यक्षों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद प्रशासक नियुक्त किए जाएं.
हाईकोर्ट में पिछली सुनवाई में आरक्षण को लेकर सरकार के फैसले पर आपत्ति जताते हुए मुकदमा दायर किया गया था. जिस पर 20 दिसंबर तक हाईकोर्ट लखनऊ खंडपीठ में स्थानीय निकाय चुनाव की अंतिम अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी थी. इसके साथ ही राज्य सरकार को 20 दिसंबर तक अनंतिम आरक्षण की अधिसूचना और प्रशासक नियुक्ति को लेकर जवाब भी मांगा था. हाईकोर्ट ने ओबीसी को उचित आरक्षण का लाभ दिए जाने व सीटों के चक्कर अनुक्रम के मुद्दों को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चुनाव की अधिसूचना जारी करने पर रोक लगाई थी.
सूत्र बताते हैं कि आरक्षण का लाभ देने को लेकर ट्रिपल टेस्ट करने को लेकर पहले एक आयोग का गठन करना होगा जो निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति का आकलन करेगा. इसके बाद पिछड़ों के लिए सीटों के आरक्षण को प्रस्तावित करेगा. दूसरे चरण में स्थानीय निकायों द्वारा ओबीसी की संख्या का परीक्षण कराया जाएगा तथा तीसरे चरण में शासन के स्तर पर इसका सत्यापन कराया जाएगा. अगर हाईकोर्ट ने वर्ष 2017 के सर्वे को ओबीसी आरक्षण का आधार नहीं माना तो चुनाव करीब 4 महीने आगे बढ़ जाएंगे और अगर सरकार के जवाब को हाईकोर्ट मान भी जाती है तो पक्षकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं. इस बीच सरकार को ट्रिपल टेस्ट कराते हुए सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश पर आरक्षण की व्यवस्था लागू करनी होगी. सरकार के पक्ष में या सरकार के खिलाफ फैसला आने पर सुप्रीम कोर्ट जाने और अपील करने का रास्ता दोनों पक्षों के लिए बरकरार रहेगा.
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