लखनऊ: राजधानी के हसनगंज थाने का एक अजीबोगरीब तथ्य हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के समक्ष आया है. थाने का कहना है कि पिछले 12-13 सालों से वहां के मालखाने को खोला ही नहीं जा सका है क्योंकि जिस कर्मचारी के पास इसका चार्ज था. उसने अपने सेवानिवृत्ति के समय न तो चार्ज हैंड ओवर किया और न ही मालाखाने की चाभी किसी को दी है. न्यायालय ने नाराजगी प्रकट करते हुए, एसीपी, महानगर को मामले में रिपोर्ट तैयार कर, जनपद न्यायाधीश के समक्ष पेश करने का आदेश दिया है.
यह आदेश न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव, प्रथम की एकल पीठ ने ब्रम्हानंद की याचिका को निस्तारित करते हुए पारित किया. याची की ओर से अधिवक्ता राजेश श्रीवास्तव ने दलील दी कि याची की बंदूक वर्ष 1997 में ही थाने के मालखाने में जमा की गई थी. उक्त बंदूक के रिलीज का प्रार्थना पत्र निचली अदालत में विचाराधीन है. निचली अदालत में थाने की ओर से बंदूक जमा होने के बावत कोई स्पष्ट आख्या नहीं दी जा रही है.
वहीं, याचिका पर जवाब देते हुए, सरकारी वकील राजेश कुमार सिंह ने न्यायालय को बताया कि हेड कांस्टेबिल कन्हैया लाल के पास ही मालखाने का चार्ज था. जो 6-7 साल पहले रिटायर हो चुका है. उन्होंने कहा कि उसे के पास मालखाने की चाभी भी होती थी, लेकिन उसने न तो चार्ज और न चाभी ही किसी को हैंड ओवर किया. इसकी वजह से यह समस्या आ रही है. इस पर न्यायालय ने जनपद न्यायाधीश को भी आदेश दिया है कि पुलिस कमिश्नर के साथ मासिक बैठकों के दौरान इस विषय को प्रमुखता से उठाया जाए.
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