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मजदूरों के बच्चों को निःशुल्क इलाज न मिलने पर हाईकोर्ट सख्त

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने गम्भीर कोशिकीय बीमारी से ग्रस्त मजदूर दम्पति के बच्चों को निःशुल्क उपचार न मुहैया कराए जाने पर सख्त रुख अपनाया है. न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकार से पूछा है कि योजनाएं होने के बावजूद अब तक इलाज के लिए फंड क्यों नहीं मुहैया कराया गया.

मजदूरों के बच्चों को निःशुल्क इलाज न मिलने पर हाईकोर्ट सख्त
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Published : May 10, 2019, 11:53 PM IST

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 13 मई को मामले में दोनों सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों का ब्यौरा तलब किया है. यह आदेश न्यायमूर्ति डॉ. डीके अरोड़ा व न्यायमूर्ति आलोक माथुर की खंडपीठ ने मास्टर विवेक कुमार और अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया. याचियों की ओर से कहा गया कि वे गम्भीर कोशिकीय बीमारी से ग्रस्त हैं और इसका इलाज काफी महंगा है. क्योंकि उनके माता-पिता पेशे से दिहाड़ी मजदूर हैं लिहाजा वे उनका इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं. उन्होंने इस सम्बंध में स्वास्थ्य मंत्रालय, दिल्ली को पत्र लिखा था और वहां से जो दस्तावेज मंगाए गए थे, वह भी भेज दिये थे, लेकिन उसके बाद कोई कार्रवाई नहीं हुई.

हालांकि मुख्यमंत्री कोष से प्रत्येक बच्चे को तीन-तीन लाख रुपये की राशि इलाज में मदद के तौर पर मिली थी. याचियों की ओर से कहा गया कि पीजीआई की ओर से बताया गया है कि बीमारी के इलाज में प्रत्येक बच्चे पर 72-72 लाख रुपये का खर्च आना है. मुख्यमंत्री कोष से मिली रकम इलाज में खर्च हो चुकी है. लिहाजा उन्होंने पुनः मदद की गुहार लगाई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. इस पर न्यायलाय ने केंद्र व राज्य सरकार से पूछा कि जब असाध्य रोगों के निःशुल्क उपचार से सम्बंधित योजनाएं हैं तो उन्होंने इलाज के लिए संस्थान को बजट क्यों नहीं उपलब्ध कराया. न्यायालय ने अगली सुनवाई के लिए 13 मई की तिथि नियत करते हुए दोनों सरकारों से इस सम्बंध में की गई कार्रवाई का ब्यौरा तलब किया है.

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 13 मई को मामले में दोनों सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों का ब्यौरा तलब किया है. यह आदेश न्यायमूर्ति डॉ. डीके अरोड़ा व न्यायमूर्ति आलोक माथुर की खंडपीठ ने मास्टर विवेक कुमार और अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया. याचियों की ओर से कहा गया कि वे गम्भीर कोशिकीय बीमारी से ग्रस्त हैं और इसका इलाज काफी महंगा है. क्योंकि उनके माता-पिता पेशे से दिहाड़ी मजदूर हैं लिहाजा वे उनका इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं. उन्होंने इस सम्बंध में स्वास्थ्य मंत्रालय, दिल्ली को पत्र लिखा था और वहां से जो दस्तावेज मंगाए गए थे, वह भी भेज दिये थे, लेकिन उसके बाद कोई कार्रवाई नहीं हुई.

हालांकि मुख्यमंत्री कोष से प्रत्येक बच्चे को तीन-तीन लाख रुपये की राशि इलाज में मदद के तौर पर मिली थी. याचियों की ओर से कहा गया कि पीजीआई की ओर से बताया गया है कि बीमारी के इलाज में प्रत्येक बच्चे पर 72-72 लाख रुपये का खर्च आना है. मुख्यमंत्री कोष से मिली रकम इलाज में खर्च हो चुकी है. लिहाजा उन्होंने पुनः मदद की गुहार लगाई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. इस पर न्यायलाय ने केंद्र व राज्य सरकार से पूछा कि जब असाध्य रोगों के निःशुल्क उपचार से सम्बंधित योजनाएं हैं तो उन्होंने इलाज के लिए संस्थान को बजट क्यों नहीं उपलब्ध कराया. न्यायालय ने अगली सुनवाई के लिए 13 मई की तिथि नियत करते हुए दोनों सरकारों से इस सम्बंध में की गई कार्रवाई का ब्यौरा तलब किया है.

मजदूरों के बच्चों को निःशुल्क इलाज न मिलने पर हाईकोर्ट हुई सख्त 
केंद्र व राज्य सरकार से पूछा कि योजनाएं होने के बावजूद अब तक मदद क्यों नहीं मिली 
विधि संवाददाता 
लखनऊ
 हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने गम्भीर कोशिकीय बीमारी से ग्रस्त मजदूर दम्पति के बच्चों को निःशुल्क उपचार न मुहैया कराए जाने पर, सख्त रुख अपनाया है न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकार से पूछा है कि योजनाएं होने के बावजूद अब तक इलाज के लिए फंड क्यों नहीं मुहैया कराया गयान्यायालय ने 13 मई को मामले में दोनों सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों का ब्यौरा तलब किया है 
    यह आदेश न्यायमूर्ति डॉ. डीके अरोड़ा व न्यायमूर्ति आलोक माथुर की खंडपीठ ने मास्टर विवेक कुमार व न्य की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया
 याचियों की ओर से कहा गया कि वे गम्भीर कोशिकीय बीमारी से ग्रस्त हैं और इसका इलाज काफी महंगा है चुंकि उनके माता-पिता पेशे से दिहाड़ी मजदूर हैं लिहाजा वे उनका इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं उन्होंने इस सम्बंध में स्वास्थ्य मंत्रालय, दिल्ली को पत्र लिखा था व वहां से जो दस्तावेज मंगाए गए थे, वह भी भेज दिये थे, लेकिन उसके बाद कोई कार्यवाही नहीं हुई हालांकि मुख्यमंत्री कोष से प्रत्येक बच्चे को तीन-तीन लाख रुपये की राशि इलाज में मदद के तौर पर मिली थी याचियों की ओर से कहा गया कि पीजीआई की ओर से बताया गया है कि बीमारी के इलाज में प्रत्येक बच्चे पर 72-72 लाख रुपये का खर्च आना है व मुख्यमंत्री कोष से मिली रकम इलाज में खर्च हो चुकी है लिहाजा उन्होंने पुनः मदद की गुहार लगाई लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई इस पर न्यायलाय ने केंद्र व राज्य सरकार से पूछा कि जब असाध्य रोगों के निःशुल्क उपचार से सम्बंधित योजनाएं हैं तो उन्होंने इलाज के लिए संस्थान को बजट क्यों नहीं उपलब्ध कराया न्यायालय ने अगली सुनवाई के लिए 13 मई की तिथि नियत करते हुए, दोनों सरकारों से इस सम्बंध में की गई कार्यवाही का बयौरा तलब किया है
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