लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (High Court of Lucknow) ने अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के निर्धारण के संबंध में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी संस्थान को सिर्फ इसलिए अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. क्योंकि उसका संचालन अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा किया जा रहा है. इन टिप्पणियों के साथ ही न्यायालय ने इस संबंध में दाखिल उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें सरकार द्वारा एक शैक्षिक संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से इंकार कर दिया गया था. यह आदेश न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय (Justice Devendra Kumar Upadhyay) और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी (Justice Subhash Vidyarthi) की खंडपीठ ने एमटीवी बुद्धिस्ट रीलीजियस ट्रस्ट की ओर से दकहिल याचिका पर पारित किया.
याचियों ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग द्वारा याची द्वारा संचालित कॉलेज को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने के लिए महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा व प्रशिक्षण को निर्देश जारी करने की प्रार्थना की थी. याचिका में उस शासनादेश को भी चुनौती दी गई थी. जिसके तहत राज्य सरकार ने चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण विभाग में भाषा और धर्म के आधार पर गैर-सरकारी मेडिकल, डेंटल, पैरा मेडिकल कॉलेज को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित करने के लिए मानदंड निर्धारित किए हैं.
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न्यायालय ने अपने विस्तृत निर्णय में कहा कि जब उक्त संस्थान स्थापित किया गया था. तब याची ट्रस्ट अल्पसंख्यक नहीं था. बाद में ट्रस्ट के सदस्यों ने बौद्ध धर्म अपनाया. लेकिन सिर्फ इस आधार पर ट्रस्ट के संस्थान को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान (minority educational institution) नहीं माना जा सकता. न्यायालय ने आगे कहा कि यदि किसी सोसायटी या ट्रस्ट में किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य उस समय शामिल नहीं थे. जब उसने एक शैक्षणिक संस्थान की स्थापना की तो हमारी राय में, ऐसी स्थिति में संबंधित शिक्षण संस्थान प्रदेश में अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जाएगा.
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