लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एफआईआर को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका पर फैसला देते हुए कहा है कि संज्ञेय अपराध के मामलों की विवेचना में न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकती. न्यायालय ने यह टिप्पणी करते हुए याचिका को खारिज कर दी.
यह आदेश न्यायमूर्ति राकेश श्रीवास्तव व न्यायमूर्ति आलोक माथुर की खंडपीठ ने सुरेश कुमार तिवारी व अन्य की याचिका पर पारित किया. याचिका में लखीमपुर खीरी जनपद के गोला थाने में जानलेवा हमला आदि आरोपों में दर्ज एफआईआर को चुनौती देते हुए कहा गया था कि उक्त एफआईआर दुराशय से लिखाई गई है व याचियों के विरुद्ध लगाए गए आरोप पूरी तरह झूठे और मनगढंत हैं.
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कहा गया कि याचियों के ऊपर जानलेवा हमले का मामला ही नहीं बन रहा है. वहीं, न्यायालय ने याचियों की इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि एफआईआर को देखने के बाद यह नहीं कहा जा सकता कि याचियों के खिलाफ संज्ञेय अपराध का मामला नहीं बनता. न्यायालय ने कहा कि संज्ञेय अपराध के मामलों में यह अदालत न तो विवेचना में हस्तक्षेप कर सकती है और न ही याचियों की गिरफ्तारी पर रोक लगा सकती है.
न्यायालय ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा कि हस्तक्षेप सिर्फ उन्हीं परिस्थितियों में किया जा सकता है जबकि एफआईआर के तथ्यों से संज्ञेय अपराध न बनता हो अथवा किसी विधिक व्यवस्था के तहत पुलिस को विवेचना करने का अधिकार न हो. न्यायालय ने यह भी कहा कि रिट याचिका को अग्रिम जमानत याचिका के विकल्प के तौर पर नहीं इस्तेमाल किया जा सकता है.
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