लखनऊः इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा है कि कर्मचारियों के मृतक आश्रितों को दी जाने वाली अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आश्रित के बालिग होने का इंतजार नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा है कि अनुकम्पा नियुक्ति का एकमात्र आधार मृत सरकारी कर्मचारी के परिवार के सामने आए तात्कालिक वित्तीय संकट से उबारने का है. लेकिन अगर मृत कर्मचारी का आश्रित सालों बाद अनुकम्पा नियुक्ति का दावा करता है तो ये अनुकम्पा नियुक्ति के अवधारणा के विपरीत है. देरी से किया गया दावा अनुकम्पा नियुक्ति के एकमात्र आधार को कमजोर करता है.
हाईकोर्ट का अहम फैसला
ये फैसला न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकलपीठ ने विजय लक्ष्मी यादव की याचिका पर दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अनुकम्पा नियुक्ति एक अपवाद है. इसके तहत नियुक्ति देते समय शर्तों का सख्ती से पालन आवश्यक है. कोर्ट ने आगे कहा कि सरकारी कर्मचारी की मौत की वजह उसके परिवार के सामने आया तात्कालिक और अचानक वित्तीय संकट ही अनुकम्पा नियुक्ति का एकमात्र आधार है. अगर अनुकम्पा नियुक्ति के दावे में देर की जाती है, तो ये उपधारणा की जाएगी कि तात्कालिक वित्तीय संकट खत्म हो चुका है. न्यायालय ने कहा कि अनुकम्पा नियुक्ति दावा करने वाले शख्स के न तो बालिग होने का इंतजार कर सकती है और न ही उसके अतिरिक्त शैक्षिक योग्यता अर्जित करने का इंतजार कर सकती है.
इसे भी पढ़ें- नियम तोड़कर बना कानून का रखवाला, पकड़ी गई जालसाजी अब जेल की खानी होगी हवा
ये था मामला
याची के पिता आजमगढ में सिविल पुलिस में सिपाही के पद पर तैनात थे. डाकुओं के साथ मुठभेड़ में 22 जुलाई 1985 को वो शहीद हो गए थे. उस समय याची की उम्र 17 महीने थी. 18 वर्ष की उम्र होने के तीन साल बाद साल 2005 में उसने अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया. विभाग से संतोषजनक जवाब न मिलने पर करीब 15 साल बाद उसने वर्तमान याचिका दाखिल की.