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High Court: शिकायतकर्ता की मौत पर नहीं खत्म होगा चेक बाउंस का आपराधिक केस - हाईकोर्ट का ताजा फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि चेक अनादर मामले में कंप्लेंट केस दर्ज करने वाले की मौत पर केस खत्म नहीं होगा. वैध वारिस अभियोग चला सकते हैं.

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High Court: शिकायतकर्ता की मौत पर नहीं खत्म होगा धारा 138 का आपराधिक केस
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Published : Jul 22, 2022, 9:51 PM IST

इलाहाबादः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि चेक अनादर मामले में कंप्लेंट केस दर्ज करने वाले की मौत पर केस खत्म नहीं होगा. वैध वारिस अभियोग चला सकते हैं. कोर्ट ने केस कायम करने वाले की मौत के आधार पर केस समाप्त करने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी है.

कोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट को परक्राम्य विलेख अधिनियम (एनआई एक्ट) की धारा 138 के अंतर्गत चल रहे आपराधिक केस को छः महीने में निर्णित करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि मजिस्ट्रेट ने शिकायत कर्ता की मौत पर वैध वारिसों को पक्षकार बना कर सही किया और केस समाप्त करने की अर्जी खारिज करना ग़लत नहीं है. यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने नानक चंद्र गौतम की याचिका पर दिया है.

न्यायिक मजिस्ट्रेट मथुरा की अदालत में राधेश्याम अग्रवाल ने याची के खिलाफ आपराधिक इस्तगासा दर्ज किया. मजिस्ट्रेट ने 15 अगस्त 1991 में सम्मन जारी किया किन्तु आरोपी याची मामले को लटकाए रखा. इसी बीच राधेश्याम अग्रवाल की मौत हो गई. उनके बेटे राजीव अग्रवाल ने अर्जी देकर विधिक वारिसों को पक्षकार बनाने की मांग की.

याची ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 256 में अर्जी दाखिल कर शादी की मौत के आधार पर केस समाप्त करने की मांग की. मजिस्ट्रेट ने अर्जी निरस्त कर दी. इसके खिलाफ पुनरीक्षण भी निरस्त कर दी गई जिस पर यह याचिका दायर की गई.

याची का कहना था कि शिकायतकर्ता की मौत पर आपराधिक केस समाप्त हो जाएगा इसलिए उसके खिलाफ केस निरस्त किया जाए. कोर्ट ने धारा 256 व धारा 247 को एक साथ परिशीलन करते हुए सुप्रीम कोर्ट के विधि सिद्धांतों के तहत मजिस्ट्रेट के आदेश को सही करार दिया है और कहा कि कंप्लेंट केस दर्ज करने वाले की मौत पर केस खत्म नहीं होगा.

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इलाहाबादः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि चेक अनादर मामले में कंप्लेंट केस दर्ज करने वाले की मौत पर केस खत्म नहीं होगा. वैध वारिस अभियोग चला सकते हैं. कोर्ट ने केस कायम करने वाले की मौत के आधार पर केस समाप्त करने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी है.

कोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट को परक्राम्य विलेख अधिनियम (एनआई एक्ट) की धारा 138 के अंतर्गत चल रहे आपराधिक केस को छः महीने में निर्णित करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि मजिस्ट्रेट ने शिकायत कर्ता की मौत पर वैध वारिसों को पक्षकार बना कर सही किया और केस समाप्त करने की अर्जी खारिज करना ग़लत नहीं है. यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने नानक चंद्र गौतम की याचिका पर दिया है.

न्यायिक मजिस्ट्रेट मथुरा की अदालत में राधेश्याम अग्रवाल ने याची के खिलाफ आपराधिक इस्तगासा दर्ज किया. मजिस्ट्रेट ने 15 अगस्त 1991 में सम्मन जारी किया किन्तु आरोपी याची मामले को लटकाए रखा. इसी बीच राधेश्याम अग्रवाल की मौत हो गई. उनके बेटे राजीव अग्रवाल ने अर्जी देकर विधिक वारिसों को पक्षकार बनाने की मांग की.

याची ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 256 में अर्जी दाखिल कर शादी की मौत के आधार पर केस समाप्त करने की मांग की. मजिस्ट्रेट ने अर्जी निरस्त कर दी. इसके खिलाफ पुनरीक्षण भी निरस्त कर दी गई जिस पर यह याचिका दायर की गई.

याची का कहना था कि शिकायतकर्ता की मौत पर आपराधिक केस समाप्त हो जाएगा इसलिए उसके खिलाफ केस निरस्त किया जाए. कोर्ट ने धारा 256 व धारा 247 को एक साथ परिशीलन करते हुए सुप्रीम कोर्ट के विधि सिद्धांतों के तहत मजिस्ट्रेट के आदेश को सही करार दिया है और कहा कि कंप्लेंट केस दर्ज करने वाले की मौत पर केस खत्म नहीं होगा.

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