लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अपील अथवा निगरानी दाखिल करने में वादकारी से हुई देरी की माफी संबंधी प्रार्थना पत्र पर तार्किक तरीके से विचार किया जाना चाहिए. किसी भी वादकारी के लिए देरी के हर दिन का ब्यौरा देना संभव नहीं है.
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति रविनाथ तिलहरी ने सावित्री देवी व एक अन्य की याचिका पर दिये फैसले में की. याची का कहना था कि उपजिलाधिकारी महमूदाबाद, सीतापुर के वर्ष 2002 के एक आदेश के विरुद्ध उसने एक निगरानी याचिका अपर आयुक्त के समक्ष की थी. उक्त निगरानी याचिका पैरवी के अभाव में 14 सितम्बर 2010 को खारिज कर दी गई, जिसके आठ साल बाद 29 मार्च 2019 को याचियों ने एक प्रार्थना पत्र देते हुए, 14 सितम्बर 2010 के आदेश को वापस लेने की मांग की.
याचियों ने आठ साल बाद उक्त प्रार्थना पत्र दाखिल करने के लिए देरी माफी से संबंधित प्रार्थना पत्र भी लगाया, जिसमें आठ साल विलंब होने का कारण अंकित था. अपर आयुक्त ने देरी माफी के प्रार्थना पत्र को यह कहते हुए 5 अप्रैल 2021 को खारिज कर दिया कि याचियों ने आठ साल के विलंब के कारण के तौर पर दिन-प्रतिदिन का ब्यौरा नहीं दिया है.
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न्यायालय ने अपर आयुक्त के 5 अप्रैल के आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि देरी माफी के कारण को रूढ़िवादी तरीके से देखा जाना उचित नहीं है. यदि ऐसा किया गया तो यह भी प्रश्न उठता है कि वादकारी को क्यों प्रत्येक दिन का ही ब्यौरा देना चाहिए. वह प्रत्येक घंटे का ब्यौरा दे अथवा प्रत्येक सेकंड का. न्यायालय ने कहा कि लेकिन यह तार्किक नहीं है. किसी के लिए भी हर दिन का ब्यौरा देना संभव नहीं है.