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हाईकोर्ट ने खारिज की शारीरिक शोषण की एफआईआर

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शारीरिक और मानसिक शोषण के आरोपों को लेकर दर्ज कराई गई एक एफआईआर को खारिज कर दिया. मामले में पुलिस ने जांच के दौरान दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट आदि की धाराएं भी लगाई थीं.

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच.
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच.
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Published : Jan 28, 2021, 7:40 PM IST

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शारीरिक और मानसिक शोषण के आरोपों को लेकर दर्ज कराई गई एक एफआईआर को खारिज कर दिया. मामले में पुलिस ने जांच के दौरान दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट आदि की धाराएं भी लगाई थीं. यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति राजीव सिंह की खंडपीठ ने विजय प्रकाश सिंह व अभिषेक कुमार सिंह की याचिका पर दिया.

अयोध्या महिला थाना में दर्ज कराई गई थी एफआईआर

याचियों के अधिवक्ता चन्दन श्रीवास्तव ने बताया कि उक्त एफआईआर अयोध्या जनपद के महिला थाना में कथित पीड़िता द्वारा दर्ज कराई गई थी. एफआईआर में अभिषेक कुमार सिंह पर वादिनी को शादी का झांसा देकर शारीरिक व मानसिक शोषण करने का आरोप लगाया गया, जबकि उसके पिता विजय प्रकाश सिंह पर शादी से इनकार करने का आरोप लगाया गया था. उक्त आरोपों के तहत पुलिस ने आईपीसी की धारा 493 के तहत एफआईआर दर्ज कर ली. याचियों की ओर से दलील दी गई कि उक्त धारा असंज्ञेय है. इसके साथ ही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 198 के तहत उक्त धारा में मजिस्ट्रेट सिर्फ पीड़िता के परिवाद पत्र पर ही संज्ञान ले सकता है. इस पर पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने एसएसपी अयोध्या से व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर जवाब तलब किया था.

एसएसपी ने हलफनामे में ये कहा

आदेश के अनुपालन में एसएसपी ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि मामले में जांच के दौरान दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध का होना भी पाया गया है. लिहाजा, आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 3/4 की वृद्धि कर दी गई है. इस पर याचियों के अधिवक्ता का कहना था कि सीआरपीसी की धारा 156 और 157 के तहत पुलिस जब इस मामले में विवेचना ही नहीं कर सकती थी, तो जांच के दौरान धाराएं बढ़ाने का भी कोई औचित्य नहीं है. यह भी दलील दी गई कि कोर्ट के 8 जुलाई 2020 के आदेश के बाद 10 जुलाई 2020 को वादिनी का दोबारा बयान दर्ज किया गया और उसी दिन मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज करवा के उक्त धाराओं की वृद्धि मात्र कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए की गई है. कोर्ट ने मामले के तकनीकी पहलुओं को देखते हुए और यह पाते हुए कि धाराओं की वृद्धि पुलिस ने नाराजगीवश की है, उक्त एफआईआर को खारिज कर दिया.

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शारीरिक और मानसिक शोषण के आरोपों को लेकर दर्ज कराई गई एक एफआईआर को खारिज कर दिया. मामले में पुलिस ने जांच के दौरान दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट आदि की धाराएं भी लगाई थीं. यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति राजीव सिंह की खंडपीठ ने विजय प्रकाश सिंह व अभिषेक कुमार सिंह की याचिका पर दिया.

अयोध्या महिला थाना में दर्ज कराई गई थी एफआईआर

याचियों के अधिवक्ता चन्दन श्रीवास्तव ने बताया कि उक्त एफआईआर अयोध्या जनपद के महिला थाना में कथित पीड़िता द्वारा दर्ज कराई गई थी. एफआईआर में अभिषेक कुमार सिंह पर वादिनी को शादी का झांसा देकर शारीरिक व मानसिक शोषण करने का आरोप लगाया गया, जबकि उसके पिता विजय प्रकाश सिंह पर शादी से इनकार करने का आरोप लगाया गया था. उक्त आरोपों के तहत पुलिस ने आईपीसी की धारा 493 के तहत एफआईआर दर्ज कर ली. याचियों की ओर से दलील दी गई कि उक्त धारा असंज्ञेय है. इसके साथ ही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 198 के तहत उक्त धारा में मजिस्ट्रेट सिर्फ पीड़िता के परिवाद पत्र पर ही संज्ञान ले सकता है. इस पर पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने एसएसपी अयोध्या से व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर जवाब तलब किया था.

एसएसपी ने हलफनामे में ये कहा

आदेश के अनुपालन में एसएसपी ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि मामले में जांच के दौरान दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध का होना भी पाया गया है. लिहाजा, आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 3/4 की वृद्धि कर दी गई है. इस पर याचियों के अधिवक्ता का कहना था कि सीआरपीसी की धारा 156 और 157 के तहत पुलिस जब इस मामले में विवेचना ही नहीं कर सकती थी, तो जांच के दौरान धाराएं बढ़ाने का भी कोई औचित्य नहीं है. यह भी दलील दी गई कि कोर्ट के 8 जुलाई 2020 के आदेश के बाद 10 जुलाई 2020 को वादिनी का दोबारा बयान दर्ज किया गया और उसी दिन मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज करवा के उक्त धाराओं की वृद्धि मात्र कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए की गई है. कोर्ट ने मामले के तकनीकी पहलुओं को देखते हुए और यह पाते हुए कि धाराओं की वृद्धि पुलिस ने नाराजगीवश की है, उक्त एफआईआर को खारिज कर दिया.

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