लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार से पूछा है कि उसने केजीएमयू में नियुक्तियों में कथित धांधली के बाबत तत्कालीन मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई की है. न्यायालय ने सरकारी वकील को इस संबंध में 10 दिनों के भीतर सरकार से निर्देश प्राप्त करके अवगत कराने का आदेश दिया है.
यह आदेश न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने हरीश चंद्र प्रताप यादव की ओर से वर्ष 2018 में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया. 25 अक्टूबर 2018 को इस मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने याची को मामले से अलग कर दिया था. न्यायालय ने मामले में एक न्याय मित्र की नियुक्ति करते हुए मामले की सुनवाई शुरू की थी.
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याचिका में कहा गया है कि तत्कालीन मंडलायुक्त प्रशांत त्रिवेदी ने केजीएमयू में 94 पदों पर नियुक्तियों के मामले में धांधली पाई थी. उन्होंने इस मामले की जांच रिपोर्ट राज्य सरकार को भेज दी थी. आरोप है कि केजीएमयू इस मामले में कथित रूप से शामिल सभी लोगों को क्लीन चिट दे चुका है. न्यायालय ने मामले पर शुरुआती सुनवाई में भी कहा था कि उक्त जांच रिपोर्ट एक बहुत ही वरिष्ठ अधिकारी द्वारा तैयार की गई है. उक्त जांच रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता.