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सरकारी धन से कैसे दी जा रही है मजहबी शिक्षा, हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार से मांगा जवाब

हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र व राज्य सरकार से जवाब मांगा है कि सरकारी धन से मदरसों में मजहबी शिक्षा कैसे दी जा रही है. कोर्ट का कहना है कि क्या यह संविधान मे प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है.

हाईकोर्ट
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Published : Mar 31, 2023, 10:46 PM IST

लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने केंद्र व राज्य सरकार से मदरसों में मजहबी शिक्षा दिए जाने के संबंध में पूछा है कि सरकारी धन से चलाने वाले मदरसों में मजहबी शिक्षा कैसे दे एजा सकती है. न्यायालय ने यह भी बताने को कहा है कि क्या यह संविधान में प्रदत्त तमाम मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है. न्यायालय ने जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है. मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी.

यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने जौनपुर के एजाज अहमद की सेवा संबंधी याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया. अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि केंद्र व राज्य सरकार बताएं कि सरकारी खर्चे पर या सरकार द्वारा वित्त पोषित करते हुए, मजहबी शिक्षा कैसे दी जा रही है. न्यायालय ने आगे पूछा कि क्या यह संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26, 29 व 30 का उल्लंघन नहीं है.

न्यायालय ने कहा कि सचिव, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार व प्रमुख सचिव अल्पसंख्यक कल्याण व वक्फ याचिका पर जवाब देने के साथ-साथ हलफनामा दाखिल करते हुए, उपरोक्त प्रश्नों के भी उत्तर दें. याचिका में याची ने खुद को वेतन न दिए जाने का मुद्दा उठाते हुए न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की हुई है.

याची का कहना है कि वह जौनपुर के शुदनीपुर के मदरसा समदानिया इस्लामिया में पढ़ाता है व उसे वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है. न्यायालय ने याचे एके मामले पर यह भी आदेश किया है कि यदि याची उक्त मदरसे में पढ़ाता है व उक्त मदरसा सरकार से धन प्राप्त करता है तो उसके 6 अप्रैल 2016 के नियुक्ति पत्र के अनुसार उसे वेतन का भुगतान किया जाए.

लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने केंद्र व राज्य सरकार से मदरसों में मजहबी शिक्षा दिए जाने के संबंध में पूछा है कि सरकारी धन से चलाने वाले मदरसों में मजहबी शिक्षा कैसे दे एजा सकती है. न्यायालय ने यह भी बताने को कहा है कि क्या यह संविधान में प्रदत्त तमाम मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है. न्यायालय ने जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है. मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी.

यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने जौनपुर के एजाज अहमद की सेवा संबंधी याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया. अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि केंद्र व राज्य सरकार बताएं कि सरकारी खर्चे पर या सरकार द्वारा वित्त पोषित करते हुए, मजहबी शिक्षा कैसे दी जा रही है. न्यायालय ने आगे पूछा कि क्या यह संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26, 29 व 30 का उल्लंघन नहीं है.

न्यायालय ने कहा कि सचिव, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार व प्रमुख सचिव अल्पसंख्यक कल्याण व वक्फ याचिका पर जवाब देने के साथ-साथ हलफनामा दाखिल करते हुए, उपरोक्त प्रश्नों के भी उत्तर दें. याचिका में याची ने खुद को वेतन न दिए जाने का मुद्दा उठाते हुए न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की हुई है.

याची का कहना है कि वह जौनपुर के शुदनीपुर के मदरसा समदानिया इस्लामिया में पढ़ाता है व उसे वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है. न्यायालय ने याचे एके मामले पर यह भी आदेश किया है कि यदि याची उक्त मदरसे में पढ़ाता है व उक्त मदरसा सरकार से धन प्राप्त करता है तो उसके 6 अप्रैल 2016 के नियुक्ति पत्र के अनुसार उसे वेतन का भुगतान किया जाए.

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