लखनऊ : कहने को तो विश्वभर में लखनऊ की धरोहरें प्रख्यात हैं, लेकिन यह धरोहरें विश्व धरोहर सूची में शामिल नहीं है. लखनऊ में रेजीडेंसी, भूलभुलैया, बड़ा इमामबाड़ा और छतर मंजिल लखनऊ की इन धरोहरों का महत्व अपने आप में बेमिसाल है. इन इमारतों का तालुक स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई से भी है. लखनऊ की यह धरोहरें दुनिया भर में फेमस हैं. बावजूद इसके यह बेमिसाल धरोहरें विश्व धरोहर सूची में शामिल नहीं हैं.
इतिहासकार संजय चौधरी ने बताया कि विश्व भर में लखनऊ की धरोहर प्रसिद्ध है दूरदराज से लोग यहां घूमने फिरने के लिए आते हैं. आज यहां से जुड़ी यादों को तस्वीरों में कैद करते हैं. लखनऊ में जो इमारतें हैं वह नवाबों के समय के है. भूलभुलैया के लिए ज्यादातर लोग घूमने के लिए आते हैं और यह एक दार्शनिक स्थल है. यह एक आकर्षण का केंद्र है. वर्तमान में लखनऊ में जो पर्यटक बाहर से आते हैं भूल भुलैया घूमने के लिहाज से ही आते हैं.
वर्ष 1784 में भूलभुलैया का निर्माण हुआ था. यह वो दौर था जब नवाब फैजाबाद से लखनऊ आए. नवाब आसिफुद्दौला ने इसका निर्माण कराया. निर्माण और वास्तुकला की दृष्टि से लखनऊ स्थित भूल भुलैया अपने आप में अनोखी विरासत है. भूलभुलैया बड़े इमाम बड़ा का ही हिस्सा है. भूल भुलैया के अलावा आसिफी मस्जिद और बावली कुआं भी बना हुआ है. इमामबाड़े में 1024 रास्तें हैं, इसमें छत तक 84 सीढ़ियां हैं, इसमें 489 दरवाजे हैं, लेकिन वापसी के लिए पहले गेट या फिर आखिरी गेट तक पहुंचने के लिए सिर्फ दो ही रस्ते हैं. इमामबाड़े के सेंट्रल हॉल में एक भी स्तम्भ (पिलर) नहीं है. बिना किसी सपोर्ट के यह हॉल बना है. इसकी छत को खोखला रखा गया, जिससे इस पर छत और गुम्बद का भार न रहे, इस वास्तुकला के वास्तुकार का नाम कवायत उल्ला है, जब आप भूलभुलैया में जाते हैं तो आपको 45 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं और जिससे आप पहली मंजिल पर नहीं दूसरी मंजिल पर पहुंच जाते है.
आम जनमानस और पुरातत्व विभाग की है नाकामयाबी
इतिहासकार संजय चौधरी के अनुसार भारत की 40 धरोहरें वर्तमान में विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं. ताजमहल, आगरा का किला, एलोरा की गुफा, अजंता की गुफा इन चारों को 1983 में घोषित किया गया. इसी तरह बाकी अन्य धरोहरें भी विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं. लखनऊ की एक से बढ़कर एक इमारतें हैं जो अपनी वास्तु कला, संस्कृति और शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध हैं. लेकिन एक भी धरोहर एनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल नहीं है. इसका मुख्य कारण यहां की जनता, सामाजिक संस्थाएं, जिला प्रशासन और पुरातत्व विभाग है. समाज के जिम्मेदार लोगों ने आवाज उठाई और न ही सामाजिक संस्थाएं, जिम्मेदार अधिकारियों ने कोई पहल नहीं की.