लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई के सम्बंध में नियमों को स्पष्ट करते हुए कहा है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी का निलंबन तीन महीने से अधिक जारी नहीं रखा जा सकता है. न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि इन तीन महीनों के दौरान आरोपी कर्मचारी को आरोप पत्र न दिया गया तो निलंबन आदेश का प्रभाव स्वतः समाप्त हो जाएगा.
यह आदेश न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की एकल सदस्यीय पीठ ने रामरतन की ओर से दाखिल सेवा सम्बंधी एक याचिका पर दिया. याचिका में कहा गया था कि सचिवालय प्रशासन विभाग में कार्यरत याची पर लगे कुछ आरोपों के मद्देनजर, प्रथम दृष्टया उसे दोषी पाते हुए निलंबित कर दिया गया था.
उक्त निलंबन आदेश 4 दिसम्बर 2018 को जारी किया गया, लेकिन चार माह से अधिक समय बीत जाने के बावजूद न तो उसे आरोप पत्र सौंपा गया और न ही विभागीय जांच शुरू की गई. इस पर न्यायालय ने जब 11 अप्रैल को सरकार से जवाब तलब किया तो उसी दिन सम्बंधित विभाग द्वारा एक आदेश पारित करते हुए याची के मामले में जांच अधिकारी की नियुक्ति कर दी गई और आरोप पत्र भी प्रेषित कर दिया गया.
इस पर न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के आलोक में निलंबन के सम्बंध में प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए कहा कि निलंबन आदेश के बाद चार माह बीत चुके थे और वह भी जब कोर्ट ने जवाब मांगा तब आरोप पत्र प्रेषित किया गया और जांच अधिकारी की नियुक्ति की गई. न्यायालय ने इसे नियमों का घोर उल्लंघन करार दिया. न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने व निलंबन आदेश के साथ ही जांच अधिकारी की नियुक्ति की जानी चाहिए थी.
विभाग द्वारा ऐसा न करके नियमों की अनदेखी की गई. उक्त टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने याची के खिलाफ पारित 4 दिसम्बर 2018 के निलंबन आदेश को खारिज कर दिया और आरोप पत्र के आधार पर जल्द से जल्द विभागीय कार्यवाही पूर्ण करने का निर्देश दिया. इसके साथ ही न्यायालय ने मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वह इस आदेश के अनुपालन में सभी विभागों को निर्देश जारी करें, ताकि निलंबन आदेश पारित करते समय आवश्यक प्रावधानों का ख्याल रखा जाए.