ETV Bharat / state

Guru Purnima 2021: गुरु पूर्णिमा आज, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि - guru purnima puja samagri

देश में गुरु पूर्णिमा आज मनाई जा रही है. सनातन धर्म में इस तिथि को गंगा स्नान व दान बेहद शुभ माना जाता है. आषाढ़ पूर्णिमा तिथि को ही वेदों के रचयिता महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था. तभी से गुरुओं की पूजा की परंपरा चली आ रही है.

Guru Purnima 2021
Guru Purnima 2021
author img

By

Published : Jul 24, 2021, 6:47 AM IST

Updated : Jul 24, 2021, 11:21 AM IST

लखनऊ: आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं. इस दिन गुरु की पूजा की जाती है. साधारण भाषा में गुरु वह व्यक्ति है, जो अपने ज्ञान से हमारे अन्दर अज्ञान के अंधकार को मिटा देता है और प्रकाश की ओर ले जाता है. पूरे भारत में यह पर्व बड़े श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 24 जुलाई 2021 को मनाया जा रहा है. मान्यता है कि पैराणिक काल के महान व्यक्तित्व, ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद् भागवत और अठारह पुराण जैसे अद्भुत साहित्यों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था. वेदव्यास ऋषि पराशर के पुत्र थे. हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास तीनों कालों के ज्ञाता थे.

उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर यह जान लिया था कि कलियुग में धर्म के प्रति लोगों की रुचि कम हो जायेगी. धर्म में रुचि कम होने के कारण मनुष्य ईश्वर में विश्वास न रखने वाला, कर्तव्य से विमुख और कम आयु वाला हो जायेगा. एक बड़े और सम्पूर्ण वेद का अध्ययन करना उसके बस की बात नहीं होगी. इसी लिए महर्षि व्यास ने वेद को चार भागों में बांट दिया, जिससे अल्प बुद्धि और अल्प स्मरण शक्ति रखने वाले लोग भी वेदों का अध्ययन करके लाभ उठा सकें.

हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की पूर्णिमा 23 जुलाई (शुक्रवार) को सुबह 10 बजकर 45 मिनट से शुरू होगी, जो कि 24 जुलाई की सुबह 08 बजकर 08 मिनट तक रहेगी. आचार्य कमल दूबे के अनुसार पूर्णिमा पर दिये गये दान-दक्षिणा का फल कई गुना होकर हमें वापस मिलता है. पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद तिल, गुड़, कपास, घी, फल, अन्न, कम्बल, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए. साथ ही किसी जरूरतमंद को भोजन कराना चाहिए. शास्त्रों में इस दिन सबसे अधिक प्रयागराज में स्नान-दान का महत्व बताया गया है, लेकिन अगर आप कहीं बाहर नहीं जा सकते तो घर पर ही नहाने के पानी में थोड़ा-सा गंगाजल डालकर, पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए स्नान करें और गायत्री मंत्र का जाप करें.

ये भी पढ़ें- मुख्यमंत्री योगी ने गुरु पूर्णिमा पर प्रदेशवासियों को दी शुभकामनाएं

गुरु पूर्णिमा के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान करके सबसे पहले अपने गुरु की पूजा के लिए सामग्री (पान का पत्ता, पानी वाला नारियल, पुष्प, इलायची, कर्पूर, लौंग, मोदक आदि) तैयार करें. जिसमें फूल-माला, तांबूल, श्रीफल, रोली-मोली, जनेउ, सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा और पंचवस्त्र लेकर अपने गुरु के स्थान पर जाएं. उसके बाद अपने गुरु के चरणों को धुलकर उसकी पूजा करें और उन्हें अपने सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, मेवा, मिष्ठान और धन आदि दें. पूर्णिमा की शाम को चंद्र दर्शन करने के बाद दूध, गंगाजल और अक्षत मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देने से चंद्र दोष दूर होता है. अर्घ्य देने के बाद चंद्रदेव के मंत्र ‘ॐ सों सोमाय नमः’ का जप करना न भूलें.

लखनऊ में अलीगंज स्थित स्वास्तिक ज्योतिष केन्द्र के संस्थापक ज्योतिषाचार्य पं. एस. एस. नागपाल ने बताया कि परम्परागत रूप से यह दिन गुरु पूजन के लिये निर्धारित है. गुरु पूर्णिमा तिथि पर शिष्य अपने गुरुओं की पूजा-अर्चना कर श्रद्धा अर्पित करते हैं. गुरु अथार्त वह महापुरुष, जो आध्यात्मिक ज्ञान एवं शिक्षा द्वारा अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करते हैं. हिन्दू धर्म के कुछ महत्वपूर्ण गुरुओं में आदि शंकराचार्य, रामानुज आचार्य तथा माधवाचार्य उल्लेखनीय हैं.

पौराणिक मान्यता है कि इस तिथि में भगवान कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास का प्राकट्य हुआ. चतुर्वेदों को संहिताबद्व करने के कारण उनका नाम वेद व्यास पड़ा. उन्होनें चतुर्वेदों के अतिरिक्त 18 पुराणों, उपपुराणों, महाभारत, व्यास संहिता आदि ग्रंन्थों की रचना की थी. वेद व्यास जी को जगत गुरू भी कहते है. वेद व्यास जी के पिता ऋषि पराशर और माता सत्यवती थी. इस दिन वेद व्यास, शंकराचार्य, ब्रहमा जी का विशेष पूजन किया जाता है. स्नान और पूजा आदि से निवृत्त होकर उत्तम वस्त्र धारण करके गुरू को वस्त्र, फल, फूल, माला व दक्षिणा अर्पण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए.

लखनऊ: आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं. इस दिन गुरु की पूजा की जाती है. साधारण भाषा में गुरु वह व्यक्ति है, जो अपने ज्ञान से हमारे अन्दर अज्ञान के अंधकार को मिटा देता है और प्रकाश की ओर ले जाता है. पूरे भारत में यह पर्व बड़े श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 24 जुलाई 2021 को मनाया जा रहा है. मान्यता है कि पैराणिक काल के महान व्यक्तित्व, ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद् भागवत और अठारह पुराण जैसे अद्भुत साहित्यों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था. वेदव्यास ऋषि पराशर के पुत्र थे. हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास तीनों कालों के ज्ञाता थे.

उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर यह जान लिया था कि कलियुग में धर्म के प्रति लोगों की रुचि कम हो जायेगी. धर्म में रुचि कम होने के कारण मनुष्य ईश्वर में विश्वास न रखने वाला, कर्तव्य से विमुख और कम आयु वाला हो जायेगा. एक बड़े और सम्पूर्ण वेद का अध्ययन करना उसके बस की बात नहीं होगी. इसी लिए महर्षि व्यास ने वेद को चार भागों में बांट दिया, जिससे अल्प बुद्धि और अल्प स्मरण शक्ति रखने वाले लोग भी वेदों का अध्ययन करके लाभ उठा सकें.

हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की पूर्णिमा 23 जुलाई (शुक्रवार) को सुबह 10 बजकर 45 मिनट से शुरू होगी, जो कि 24 जुलाई की सुबह 08 बजकर 08 मिनट तक रहेगी. आचार्य कमल दूबे के अनुसार पूर्णिमा पर दिये गये दान-दक्षिणा का फल कई गुना होकर हमें वापस मिलता है. पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद तिल, गुड़, कपास, घी, फल, अन्न, कम्बल, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए. साथ ही किसी जरूरतमंद को भोजन कराना चाहिए. शास्त्रों में इस दिन सबसे अधिक प्रयागराज में स्नान-दान का महत्व बताया गया है, लेकिन अगर आप कहीं बाहर नहीं जा सकते तो घर पर ही नहाने के पानी में थोड़ा-सा गंगाजल डालकर, पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए स्नान करें और गायत्री मंत्र का जाप करें.

ये भी पढ़ें- मुख्यमंत्री योगी ने गुरु पूर्णिमा पर प्रदेशवासियों को दी शुभकामनाएं

गुरु पूर्णिमा के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान करके सबसे पहले अपने गुरु की पूजा के लिए सामग्री (पान का पत्ता, पानी वाला नारियल, पुष्प, इलायची, कर्पूर, लौंग, मोदक आदि) तैयार करें. जिसमें फूल-माला, तांबूल, श्रीफल, रोली-मोली, जनेउ, सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा और पंचवस्त्र लेकर अपने गुरु के स्थान पर जाएं. उसके बाद अपने गुरु के चरणों को धुलकर उसकी पूजा करें और उन्हें अपने सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, मेवा, मिष्ठान और धन आदि दें. पूर्णिमा की शाम को चंद्र दर्शन करने के बाद दूध, गंगाजल और अक्षत मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देने से चंद्र दोष दूर होता है. अर्घ्य देने के बाद चंद्रदेव के मंत्र ‘ॐ सों सोमाय नमः’ का जप करना न भूलें.

लखनऊ में अलीगंज स्थित स्वास्तिक ज्योतिष केन्द्र के संस्थापक ज्योतिषाचार्य पं. एस. एस. नागपाल ने बताया कि परम्परागत रूप से यह दिन गुरु पूजन के लिये निर्धारित है. गुरु पूर्णिमा तिथि पर शिष्य अपने गुरुओं की पूजा-अर्चना कर श्रद्धा अर्पित करते हैं. गुरु अथार्त वह महापुरुष, जो आध्यात्मिक ज्ञान एवं शिक्षा द्वारा अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करते हैं. हिन्दू धर्म के कुछ महत्वपूर्ण गुरुओं में आदि शंकराचार्य, रामानुज आचार्य तथा माधवाचार्य उल्लेखनीय हैं.

पौराणिक मान्यता है कि इस तिथि में भगवान कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास का प्राकट्य हुआ. चतुर्वेदों को संहिताबद्व करने के कारण उनका नाम वेद व्यास पड़ा. उन्होनें चतुर्वेदों के अतिरिक्त 18 पुराणों, उपपुराणों, महाभारत, व्यास संहिता आदि ग्रंन्थों की रचना की थी. वेद व्यास जी को जगत गुरू भी कहते है. वेद व्यास जी के पिता ऋषि पराशर और माता सत्यवती थी. इस दिन वेद व्यास, शंकराचार्य, ब्रहमा जी का विशेष पूजन किया जाता है. स्नान और पूजा आदि से निवृत्त होकर उत्तम वस्त्र धारण करके गुरू को वस्त्र, फल, फूल, माला व दक्षिणा अर्पण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए.

Last Updated : Jul 24, 2021, 11:21 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.