लखनऊ: देश भर की विधानसभाओं और संसद में सदस्य वेल में आकर हंगामा करते हैं. सदन की कार्यवाही को चलाने वाले लोगों के लिए यह बड़ी चिंता का विषय है. कॉमनवेल्थ पार्लियामेंट्री एसोसिएशन इंडिया रीजन की दो दिवसीय कान्फ्रेंस में इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा हुई. इस सम्मेलन में लोकसभा अध्यक्ष से लेकर कई विधानसभाओं के अध्यक्ष भी मौजूद रहे. सभी ने अपनी बात रखी. सीपीए सम्मेलन में शामिल होने लखनऊ पहुंचे गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.
गुजरात विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी ने कहा कि सम्मेलन से तुरंत हल नहीं निकलता. इसके ऊपर बहुत गहन चर्चा होती है. इंडिया रीजन का सातवां सम्मेलन हुआ है. इसमें एक बड़ा मुद्दा था कि चुने हुए प्रतिनिधि वेल में आ जाते हैं और हंगामा खड़ा करते हैं. उसका क्या उपाय हो? इस पर अलग-अलग लोगों के विचार आए. उन्होंने बच्चे और मां का उदाहरण दिया. उन्होंने बताया कि बच्चा अपनी मांग को लेकर मां से अड़ जाता है और मांग पूरी कराने के लिए घर से बाहर तक चला जाता है. यह मानव का स्वभाव है. सदन के अंदर कई बार ऐसा भी मौका आता है जब प्रतिपक्ष अपनी बात रखता है तो सत्ता पक्ष के विधायक भी खिलाफत में खड़े हो जाते हैं.
सदन चलाने में स्पीकर की अहम भूमिका
उन्होंने कहा कि वेल में आने पर जब वह अपने प्रतिरोध या विचार को ताकत के साथ रखना चाहते हैं तो उनके पास हंगामे के अलावा कोई रास्ता नहीं होता. हाथापाई वे कर नहीं सकते. विधायक सूझबूझ वाले हैं. वह वेल में आ जाते हैं. वेल में आकर अपनी मांगों को रखते हैं. नारेबाजी करते हैं. ऐसे में स्पीकर की भूमिका उसे समझना होता है. वह कैसे विधायकों को समझा-बुझाकर सदन की कार्यवाही को आगे बढ़ाएं. विरोध के बाद अगर आपने निलंबित कर दिया तो यह कठोर निर्णय हो जाएगा. विरोध के बगैर लोकतंत्र नहीं हो सकता, तो उनको निलंबित न करें. कोशिश यह हो कि आप बैठ जाइए. आपको मैं समय देता हूं और बोलने का मौका देता हूं. इस तरह विधायक को समझाने के प्रयास किए जाएं.
'विधायक अपनी बात रखना चाहते हैं'
छत्तीसगढ़ में सभी चुने प्रतिनिधियों को यह मालूम है कि अगर वह वेल में आकर विरोध प्रदर्शन करेंगे तो वह उस दिन के लिए निलंबित मान लिए जाएंगे. सदन की कार्यवाही में आगे वह हिस्सा नहीं ले सकेंगे. मगर यह स्वीकृत बात नहीं है. भारत के सभी सदन में ऐसा होता है, लेकिन स्वयं निलंबित हो जाए ऐसा स्वीकृत नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि गुजरात में मैंने एक तरीका अपनाया है कि हम विपक्ष को ज्यादा बोलने का मौका देते हैं, जो पहली बार चुनकर आए हैं. दूसरी बार चुनकर आये हैं. उन्हें और ज्यादा मौका बोलने के लिए सदन में दिया जाता है. नए प्रतिनिधि अपनी बात रख लेते हैं तो विरोध अपने आप कम हो जाता है. वह केवल अपनी बात रखना चाहते हैं. सदन में सत्तापक्ष के सामने, विपक्ष के सामने जो भी सदस्य अपनी बात रखना चाहते हैं, उन्हें मौका दिया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि यह बात जरूर है कि सदस्य को सदन में ऐसा कोई कृत्य नहीं करना चाहिए जो जायज न हो. कई बार विधायक यह जानते हुए भी वेल में आ जाते हैं कि वह अगर वेल में गए तो निलंबित कर दिए जाएंगे और निलंबित हो जाते हैं. दूसरे दिन यह घटना मीडिया जगत की सुर्खियां बनती हैं और वह इस बात को चाहते भी हैं.
ब्यूरोक्रेसी की जवाबदेही तय किए जाने पर सब एकमत
ब्यूरोक्रेसी की जवाबदेही तय किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह बात तो सही है. इस पर सब ने अपनी अलग-अलग बात कही है. विधायक की जिम्मेदारी तो नहीं बनती है. विधायक पांच साल के लिए चुनकर आता है. वह चाहता है कि मैं लोगों की सेवा करूँ. पांच साल में मेरे से जो हो सके, उतना करूं. मगर उसको अड़चनें आती है तो उसका जिम्मेदार वाकई में कार्यपालिका है या विधायक. इस बात को फोकस करना बहुत जरूरी होता है. इसलिए डेमोक्रेसी में विधायक अपनी बात रखे. सरकार अपनी जिम्मेदारी ले. सरकार के अधिकारी जो जिम्मेदार हैं, उनके खिलाफ कुछ एक्शन लिया जाए. अगर कोई जानबूझकर गलती करे तो उन्हें कटघरे में खड़ा किया जाए. जो जानबूझकर काम नहीं कर रहे हैं तो उनके ऊपर कुछ न कुछ चार्ज तय होना चाहिए.
विधायक दो ढाई लाख लोगों का प्रतिनिधि है. वह दो ढाई लाख लोग सदन में अपनी बात कहने के लिए नहीं आते. विधायक ही उनकी बात कहता है. इसलिए वह बड़े दमखम के साथ अपने लोगों की बात रखना चाहता है. वह अपनी बात रखेगा और जायज बात होने के बावजूद स्वीकृत नहीं होगी तो उसका जिम्मेदार एमएलए तो नहीं है. एमएलए ने कोशिश की. एमएलए बार-बार कोशिश करेगा, तो जिम्मेदारी किसकी बनती है. सरकार पक्ष उसका जिम्मेदार होता है. अप्रत्यक्ष रूप से देखा जाए तो अधिकारी जिम्मेदार है. सदन चलने के वक्त अधिकारी भी बैठे होते हैं. वह भी सुनते हैं लिखते हैं. इसलिए जरूरी है कि अधिकारियों की जवाबदेही तय हो.