लखनऊ: राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद एवं इंटीग्रल विश्वविद्यालय, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गई 'ऑल इंडिया एनालिसिस ऑफ एक्रिडिएशन रिपोर्ट' उत्तर भारतीय सम्मेलन में ऑनलाइन माध्यम से प्रतिभाग किया. सम्मेलन में उत्तर भारत के आठ राज्यों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए.
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने इस सम्मेलन का प्रतिनिधित्व करते हुए अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि वैश्विक महामारी कोरोना के कारण उत्पन्न संकट ने आज ई-पाठ्यक्रम और डिजिटल शिक्षा के महत्व को बढ़ाया है. कोविड ने हमें डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की प्रेरणा दी है. पठन-पाठन के तरीकों पर लगातार शोध करते रहने की जरूरत है, जिससे विपरीत हालात में भी विद्यार्थियों की पढ़ाई किसी प्रकार से बाधित न होने पाए. अब फ्लिप क्लास रूम का समय है, वर्चुअल लैब भी जरूरी है. राज्यपाल ने कहा कि यह सब समय की मांग है. इससे विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा मिलेगी. शिक्षक खुद को अपग्रेड करते रहेंगे, जिससे समाज में एक नया परिवर्तन देखने को मिलेगा.
एक अच्छी शिक्षा व्यवस्था नए भारत के लिए महत्वपूर्ण
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि एक अच्छी शिक्षा व्यवस्था नए भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को साकार करने के लिए महत्वपूर्ण है. वैश्वीकरण के आज के युग में शिक्षण संस्थानों के समक्ष स्वयं को वैश्विक स्तर पर स्थापित एवं प्रस्तुत करने की बड़ी चुनौती है. उन्होंने कहा कि उच्चतर शिक्षा में गुणवत्ता, उत्कृष्टता के साथ-साथ प्रासंगिकता का भी मूल्य बढ़ा है. वैश्विक स्तर पर उच्च शिक्षण संस्थानों की मूल्यांकन हेतु क्यूएस रैंकिंग, टाइम्स रैंकिंग और इसी प्रकार की कई अन्य रैंकिंग इकाइयों द्वारा मूल्यांकन की व्यवस्थाएं दी गई हैं. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्वायत्त संस्था 'राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद' की स्थापना उच्च शिक्षा के भारतीय संस्थानों को निर्धारित मानदंडों के आधार पर मूल्यांकन एवं प्रत्यायन की प्रक्रिया के माध्यम से उनका अंतर-निरीक्षण कर मूल्यांकन की सेवा प्रदान करने के लिए ही हुआ है.
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युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दें
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि नैक संस्था शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान, नवाचार और नव-पद्धतियों को प्रोत्साहित करके स्व-मूल्यांकन और जवाबदेही के आधार पर बेहतर शैक्षणिक परिवेश को प्रोत्साहित करती है. इसका लाभ विभिन्न विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों को भी मिलता है, जिससे वे पुनः निरीक्षण प्रक्रिया के माध्यम से अपनी दुर्बलताएं और अवसरों को पहचान सकते हैं. नई और आधुनिक पद्धति के अध्यापन को अपने संस्थानों में अपना सकते हैं. उन्होंने कहा कि युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देकर देश की मुख्यधारा से जोड़ना हम सभी का कर्तव्य है.
शिक्षकों को मिले दिया जाए प्रशिक्षण
राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा नीति के बदले कलेवर को समग्रता में देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि जब उच्च शिक्षण संस्थान अपना मूल्यांकन करता है तो वह राष्ट्रीय विकास में योगदान देता है. राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा के लिए यह जरूरी नहीं है कि सब कुछ क्लास रूम में ही हो. प्रयोगशाला को कक्षा और कक्षा को प्रयोगशाला में परिवर्तित करने का समय है. शिक्षकों की स्किल को बढ़ाने के लिए लगातार काम करने का समय है. उन्होंने कहा कि अध्यापक और अध्यापिकाओं को और संवेदनशील, उत्साही एवं विद्यानुरागी बनाने के लिये उनके प्रशिक्षण की सतत आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि हमें पढ़ाने और शिक्षा शास्त्र के नये तरीके गढ़ने पर विचार करना होगा. साथ ही शिक्षकों के प्रशिक्षण में व्यापक सुधार के लिए शिक्षक-प्रशिक्षण और सभी शिक्षा कार्यक्रमों को सभी स्कूलों चाहे वह सरकारी हों या गैर सरकारी सभी को जोड़ने की कोशिश करनी होगी.
राज्यपाल ने कहा कि परम्पराओं, संस्कृतियों और भाषाओं की विविधता को ध्यान में रखते हुए तेजी से बदलते समाज की जरूरतों के आधार पर पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि शोध एवं अनुसंधान भी अधिक महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि शोध का समाज के व्यापक हित चिंतन में प्रयोग हो, इसके लिए संस्थाएं सिर्फ पब्लिकेशन मात्र के लिए शोध न करें बल्कि समाज के मूल विषयों पर भी शोध करें, जिसका फायदा समाज को मिले.
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एक कॉलेज और एक गांव को लें गोद
एक कॉलेज और एक गांव को गोद लें तो बहुत सी सामाजिक समस्याओं का समाधान होगा. राज्यपाल ने कहा कि उत्तर प्रदेश में 50 हजार से अधिक महाविद्यालय हैं. अगर एक-एक कॉलेज एक-एक गांव गोद लें और उसके विकास पर ध्यान दें तो गांव से कुपोषण, क्षयरोग, कुरीतियां, बाल विवाह आदि का शीघ्र समाधान हो सकता है. इसके साथ ही वे शिक्षा प्रसार, स्वच्छता, जल संचयन, गर्भवती महिलाओं का प्रसव अस्पतालों में ही कराने आदि पर कार्य करें. उन्होंने कहा कि इसी प्रकार कृषि से जुड़े महाविद्यालय कृषकों की समस्याओं का समाधान करने और किसान उत्पादक संगठन को मजबूत करने आदि पर भी कार्य कर सकते हैं.