लखनऊ : गोमती रिवर फ्रंट घोटाले के अभियुक्त मेसर्स ब्रांड ईगल्स के वरिष्ठ परामर्शदाता बद्री श्रेष्ठ की अग्रिम जमानत याचिका को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने खारिज कर दी है. न्यायालय ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों में जब राजनीतिज्ञों व अधिकारियों से गठजोड़ से सरकारी धन के दुर्विनियोग का मामला हो और इसके साक्ष्य भी हों, ऐसे मामलों में अभियुक्त जमानत का हकदार नहीं है.
यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह (Justice Dinesh Kumar Singh) की एकल पीठ ने अभियुक्त बद्री श्रेष्ठ की अग्रिम जमानत याचिका पर पारित किया. सीबीआई की ओर से अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए कहा गया कि गोमती रिवर फ्रंट घोटाले की रिपोर्ट सबसे पहले गोमती नगर थाने में वर्ष 2017 में दर्ज कराई गई थी. इसके बाद 30 नवंबर 2017 को राज्य सरकार की सिफारिश पर जांच सीबीआई को स्थानांतरित की गई. आरोप है कि गोमती रिवर फ्रंट विकास परियोजना में साजिश के तहत गुलेश चंद्र, एसएन शर्मा, काजिम अली, शिवमंगल यादव, अखिल रमन, कमलेश्वर सिंह, रूप सिंह यादव एवं सुरेंद्र यादव द्वारा कार्य कराया गया था.
अभियुक्त बद्री श्रेष्ठ (Accused Badri Shrestha) ने अन्य आरोपियों के साथ साजिश में शामिल होकर लाभ प्राप्त किया. आरोपी रूप सिंह यादव ने केके स्पन पाइप प्राइवेट लिमिटेड को सिंचाई विभाग में पंजीकरण न होते हुए भी उसे टेंडर दिलाने के लिए निविदा सूचना में पंजीकरण से सम्बंधित शर्तों में छूट प्रदान करने के लिए नोट शीट में नोटिंग कर के मुख्य अभियंता एसएन शर्मा से अप्रूव करा लिया गया. जबकि छूट प्रदान करने के लिए शासन से अनुमति लेनी चाहिए थी. इसके अलावा मेमोरेंडम का प्रकाशन नहीं कराया गया. इस कारण अन्य कम्पनियां भाग भी नहीं ले पाईं. जांच के दौरान पता चला कि अभियुक्त ने 25 अगस्त 2015 को निविदा के दस्तावेज खरीदने के लिए शाहिद नाम के व्यक्ति को प्राधिकृत किया जबकि उसको तथ्य की जानकारी नहीं थी. अभियुक्त ने केके स्पन पाइप को निविदा दिलाकर सरकार को आर्थिक हानि पहुंचाई है.