लखनऊ: देश के जाने माने अधिवक्ता और अटल सरकार में मंत्री रहे राम जेठमलानी का निधन हो गया. महज 17 वर्ष की आयु में उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की और वकालत को ही इसे अपना पेशा बना लिया. कठिन से कठिन और विवादित से विवादित मुकदमा लड़ना उनका शौक था. हमेशा चर्चा में रहना उनकी एक तरह से आदत बन चुकी थी. ऐसे में राम जेठमलानी बेखौफ निडर होकर काम करते थे और उन्हें किसी बात की कोई परवाह नहीं थी. राम जेठमलानी के निधन के बाद न्याय क्षेत्र में एक अपूरणीय क्षति हुई है.
जब अटल जी के खिलाफ जेठमलानी ने लड़ा चुनाव
1998 में एनडीए की सरकार में आमंत्रित और अटॉर्नी जनरल को लेकर एक विवाद हुआ, तो बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. जानकार बताते हैं कि वह इस घटनाक्रम के बाद काफी नाराज हुए और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के खिलाफ लखनऊ संसदीय क्षेत्र से राम जेठमलानी निर्दलीय उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़े. अटल जी की शख्सियत के चलते राम जेठमलानी को महज 50 हजार के आसपास ही वोट मिले और वह चुनाव हार गए. इसके बाद वह लखनऊ नहीं आए तमाम विवादित मुकदमा लड़ना और लोगों के मौलिक अधिकार की रक्षा करना उन्हें न्याय दिलाना उनका शौक था. लीक से हटकर न्यायिक सेवा के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई थी.
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बीजेपी को सबक सिखाने के उद्देश्य से लड़े थे चुनाव
2004 के लोकसभा चुनाव में जब वह लखनऊ से चुनाव लड़ने लखनऊ आए, तो पूर्व जज और उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सीबी पांडे, आईबी सिंह सहित तमाम लोगों ने उनके समर्थन में एक सभा भी की थी. वहीं से वह लखनऊ के प्रतिष्ठित लोगों से मेल मुलाकात शुरू की थी. वह एक अलग प्रकार के व्यक्ति थे और किसी भी कठिन से कठिन केस को लड़ना उनका शौक बन चुका था. वह सिर्फ अपनी जिद और बीजेपी को सबक सिखाने के उद्देश्य से ही अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़े थे.
अटल जी के आगे नहीं जीत सके चुनाव
उनेक करीबी रहे पूर्व जज सीबी पांडेय ने बताया कि 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के जैसी शख्सियत के खिलाफ राम जेठमलानी जी ने चुनाव लड़ने का फैसला किया. उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में यहां से अपना नामांकन किया. लखनऊ आए तो हम जैसे लोगों ने उनका साथ दिया, लेकिन अटल जी की शख्सियत के सामने वह चुनाव नहीं जीत सके.
कठिन से कठिन मुकदमा लड़ना था उनका शौक
वह हमेशा लोगों को न्याय दिलाने के लिए लड़ते रहे और कठिन से कठिन मुकदमा को लड़ते रहे. वह हमेशा निडर और बेखौफ होकर काम करते थे. वह लीक से हटकर मुकदमे लड़े और वह क्रिमिनल के एक अच्छे और प्रसिद्ध अधिवक्ता थे. एविडेंस के आधार पर केस लड़ते थे और उसी में उन्होंने प्रसिद्धि पाई. कई महत्वपूर्ण केस लड़े और लोगों को न्याय दिलाया. उनका निधन न्याय क्षेत्र के लिए एक बड़ी क्षति है.
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी उनके बयानों के चलते बीजेपी ने उनसे नाता तोड़ लिया था. भाजपा से निष्कासित किए जाने से वह इतने नाराज हुए थे कि भाजपा के खिलाफ उन्होंने मुकदमा दायर किया था. मानहानि के रूप में 50 लाख की मांग भी की थी. कुल मिलाकर राम जेठमलानी हमेशा विवादित और महत्वपूर्ण मुकदमा लड़ते रहे और हमेशा चर्चाओं में रहे.
-सीबी पांडेय, पूर्व जज एवं वरिष्ठ अधिवक्ता, उच्च न्यायालय