लखनऊः देश के लिए अपनी जान की बाजी लगा देने वाले पूर्व रॉ एजेंट मनोज रंजन दीक्षित को बेड ना मिलने के कारण उनकी मौत हो गई. उन्हें 11 घंटे तक बेड के लिए जूझना पड़ा. जब बेड मिला, तब तक उनकी मौत हो चुकी थी.
रात दो बजे आवंटन पत्र हुआ तैयार
पूर्व रॉ एजेंट मनोज रंजन ने तबीयत खराब होने पर चेकअप कराया था. वह कोरोना संक्रमित थे. रविवार को ज्यादा दिक्कत होने पर उन्होंने अस्पताल से संपर्क किया लेकिन कहीं भी बेड खाली नहीं था. इलाज के लिए सीएमओ की टीम से कई बार आग्रह किया. रात दो बजे उनकी मेहनत रंग लाई. आवंटन पत्र तैयार हुआ. लोकबंधु, एरा और बलरामपुर अस्पताल आवंटित किया गया. जब इसे मनोज रंजन के संपर्क नंबर पर भेजा गया तब तक हालत काफी ज्यादा बिगड़ चुकी थी. चिट्ठी में आवंटित किए गए अस्पतालों ने भर्ती करने से ही मना कर दिया. इसी जद्दोजहद के बीच सुबह सवा चार बजे मनोज रंजन दीक्षित का निधन हो गया.
लॉकडाउन ने बिगाड़ दी थी आर्थिक स्थिति
पूर्व रॉ एजेंट मनोज रंजन दीक्षित की आर्थिक स्थिति साल 2020 के लॉकडाउन से ही खराब हो गई थी. उन्हें एक स्टोर पर स्टोर कीपर की नौकरी करनी पड़ी. गोमती नगर विस्तार में स्टोर कीपर की नौकरी कर रहे थे लेकिन वह भी छूट गई. तब से मुफलिसी ने घेर लिया. वे पाकिस्तान में यूनुस, यूसुफ और इमरान बनकर रहे. अफगानिस्तान बॉर्डर पर गिरफ्तार होने के बाद कई बार टॉर्चर किया गया लेकिन उन्होंने देश से गद्दारी नहीं की.
कब हुए भर्ती
वर्ष 1985 में मनोज रंजन दीक्षित को नजीबाबाद से चुना गया. दो बार सैन्य प्रशिक्षण के बाद उनको कश्मीरियों के साथ पाकिस्तान भेजा गया था. वहां से वह लगातार सूचनाएं देते रहे लेकिन जनवरी 1992 में उनको गिरफ्तार कर लिया गया. वहां से उनको कराची जेल ले जाया गया. देश के लिए अपनी जवानी कुर्बान करने वाले मनोज रंजन की उम्र 56 वर्ष थी.
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पत्नी का कैंसर से निधन
पूर्व रा एजेंट मनोज रंजन दीक्षित पाकिस्तान की कैद से किसी तरह छूटकर आए. 2007 में उनकी शादी हुई लेकिन कुछ समय बाद पता चला कि पत्नी को कैंसर हो गया है. 2013 में पत्नी की मृत्यु हो गई. तब से वह लखनऊ में ही रह रहे थे.