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घने कोहरे में ट्रेन चलाने में दगा दे रहीं फॉग डिवाइस, पटाखे दगाकर ट्रेनों को दी जा रही रफ्तार

घने कोहरे की वजह से यातायात संचालन व्यवस्था गड़बड़ा जाती है. विजिबिलिटी कम होने से किसी भी साधन को रफ्तार देने खतरे से खाली नहीं है. रेलवे ने तकनीकि की क्षेत्र में काफी तरक्की कर ली है, लेकिन घने कोहरे में ट्रेनों के संचालन में अभी भी पारंपरिक तरीके अपनाने की मजबूरी है.

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Published : Jan 6, 2023, 9:44 AM IST

लखनऊ : रेलवे ने टेक्नोलॉजी (technology in railway) के क्षेत्र में कितना ही विकास क्यों न कर लिया हो, लेकिन अभी भी पारंपरिक चीजों के बिना रेलगाड़ी नहीं चल पा रही हैं. घने कोहरे में अभी भी ट्रेनों को दौड़ाने में फॉग डिवाइस फेल हो रही है और पटाखे (Crackers are helping Railways) पास हो रहे हैं. कोहरे में ट्रेनों को सिग्नल और फाटकों की जानकारी के लिए अभी भी रेलवे पटाखों (crackers in railway) का ही इस्तेमाल कर रहा है. यही वजह है कि इस कोहरे में भी उत्तर और पूर्वोत्तर रेलवे (use of firecrackers in railway) ने 10 हजार से ज्यादा पटाखे स्टेशनों को उपलब्ध कराएं हैं. इन्हीं पटाखों को दगाकर ट्रेनों को बेपटरी होने से बचाया जा रहा है और तेज रफ्तार से पटरी पर दौड़ाया जा रहा है.

रेलवे ने कोहरे (effect of fog on trains) में भी ट्रेनों का संचालन निर्बाध तरीक से जारी रहे इसके लिए तकनीकी का इस्तेमाल किया. ट्रेनों में फॉग डिवाइसें (fog device in trains) लगाईं, लेकिन विजिबिलिटी कम होने पर डिवाइसें दगा दे रही हैं. ऐसे में पटाखे ट्रेनों को चलाने और दुर्घटना से बचाने में मददगार साबित हो रहे हैं. रेलवे अधिकारी बताते हैं कि कोहरे में सिग्नलों, फाटकों की जानकारी देने के लिए पटाखे काफी समय से इस्तेमाल किए जा रहे हैं. इन पटाखों को पटरी पर 200 से 500 मीटर की दूरी पर फिट कर दिया जाता है, जिसमें दो तार निकले होते हैं. जब इंजन पटाखों के ऊपर से गुजरता है तो ये फट जाते हैं. इनकी आवाज से लोको पायलट आगे आने वाले फाटक और सिग्नल का अंदाजा लगा लेते हैं. अब कई बड़े स्टेशनों पर पटाखों की जगह उपकरण लगा दिए गए हैं, लेकिन छोटे स्टेशनों पर अभी भी ट्रेनों का संचालन पटाखों के ही सहारे होता है. चारबाग रेलवे स्टेशन पर करीब 200 पटाखे दिए गए हैं. फॉग डिवाइस जीपीएस आधारित होती हैं, लेकिन अफसर बताते हैं कि विजिबिलिटी (Effect of visibility on trains) घटने पर डिवाइसों से सहायता नहीं मिलती, जिससे ट्रेनों का संचालन बाधित होता है. पटरियों पर पटाखे लगाकर ट्रेनों का सुरक्षित संचालन किया जाता है.

बता दें, हर साल रेलवे प्रशासन (railway administration ) सर्दी के दिनों में कोहरा पड़ने पर हजारों पटाखे जलाकर ट्रेनों (train running with firecrackers) को पटरी पर दौड़ाता है. जबकि लाखों करोड़ों रुपये की डिवाइस कोहरे में दगा दे जाती हैं. हर साल सर्दी के मौसम में सभी स्टेशनों को रेलवे मंडल की तरफ से जरूरत के मुताबिक पटाखे उपलब्ध कराए जाते हैं. आउटर एरिया वाले स्टेशनों के आउटर पर कोहरे की संभावना ज्यादा होती है. ऐसे में इन स्टेशनों को ज्यादा मात्रा में पटाखे भी दिए जाते हैं.

लखनऊ : रेलवे ने टेक्नोलॉजी (technology in railway) के क्षेत्र में कितना ही विकास क्यों न कर लिया हो, लेकिन अभी भी पारंपरिक चीजों के बिना रेलगाड़ी नहीं चल पा रही हैं. घने कोहरे में अभी भी ट्रेनों को दौड़ाने में फॉग डिवाइस फेल हो रही है और पटाखे (Crackers are helping Railways) पास हो रहे हैं. कोहरे में ट्रेनों को सिग्नल और फाटकों की जानकारी के लिए अभी भी रेलवे पटाखों (crackers in railway) का ही इस्तेमाल कर रहा है. यही वजह है कि इस कोहरे में भी उत्तर और पूर्वोत्तर रेलवे (use of firecrackers in railway) ने 10 हजार से ज्यादा पटाखे स्टेशनों को उपलब्ध कराएं हैं. इन्हीं पटाखों को दगाकर ट्रेनों को बेपटरी होने से बचाया जा रहा है और तेज रफ्तार से पटरी पर दौड़ाया जा रहा है.

रेलवे ने कोहरे (effect of fog on trains) में भी ट्रेनों का संचालन निर्बाध तरीक से जारी रहे इसके लिए तकनीकी का इस्तेमाल किया. ट्रेनों में फॉग डिवाइसें (fog device in trains) लगाईं, लेकिन विजिबिलिटी कम होने पर डिवाइसें दगा दे रही हैं. ऐसे में पटाखे ट्रेनों को चलाने और दुर्घटना से बचाने में मददगार साबित हो रहे हैं. रेलवे अधिकारी बताते हैं कि कोहरे में सिग्नलों, फाटकों की जानकारी देने के लिए पटाखे काफी समय से इस्तेमाल किए जा रहे हैं. इन पटाखों को पटरी पर 200 से 500 मीटर की दूरी पर फिट कर दिया जाता है, जिसमें दो तार निकले होते हैं. जब इंजन पटाखों के ऊपर से गुजरता है तो ये फट जाते हैं. इनकी आवाज से लोको पायलट आगे आने वाले फाटक और सिग्नल का अंदाजा लगा लेते हैं. अब कई बड़े स्टेशनों पर पटाखों की जगह उपकरण लगा दिए गए हैं, लेकिन छोटे स्टेशनों पर अभी भी ट्रेनों का संचालन पटाखों के ही सहारे होता है. चारबाग रेलवे स्टेशन पर करीब 200 पटाखे दिए गए हैं. फॉग डिवाइस जीपीएस आधारित होती हैं, लेकिन अफसर बताते हैं कि विजिबिलिटी (Effect of visibility on trains) घटने पर डिवाइसों से सहायता नहीं मिलती, जिससे ट्रेनों का संचालन बाधित होता है. पटरियों पर पटाखे लगाकर ट्रेनों का सुरक्षित संचालन किया जाता है.

बता दें, हर साल रेलवे प्रशासन (railway administration ) सर्दी के दिनों में कोहरा पड़ने पर हजारों पटाखे जलाकर ट्रेनों (train running with firecrackers) को पटरी पर दौड़ाता है. जबकि लाखों करोड़ों रुपये की डिवाइस कोहरे में दगा दे जाती हैं. हर साल सर्दी के मौसम में सभी स्टेशनों को रेलवे मंडल की तरफ से जरूरत के मुताबिक पटाखे उपलब्ध कराए जाते हैं. आउटर एरिया वाले स्टेशनों के आउटर पर कोहरे की संभावना ज्यादा होती है. ऐसे में इन स्टेशनों को ज्यादा मात्रा में पटाखे भी दिए जाते हैं.

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