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खादी महोत्सव में लोगों को भा रही पीलीभीत की बांसुरी

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Published : Jan 28, 2021, 5:38 AM IST

यूपी दिवस के अवसर पर शिल्प ग्राम में 13 दिवसीय खादी महोत्सव चल रहा है. एक तरफ अब तक करीब 71.65 लाख रुपये के उत्पादों की बिक्री हुई है तो वहीं दूसरी तरफ लोगों को पीलीभीत की बांसुरी खूब भा रही है. पीलीभीत के बांसुरी की मांग दुनिया के कई देशों में होती है.

खादी महोत्सव
खादी महोत्सव

लखनऊ: उत्तर प्रदेश दिवस के अवसर पर अवध शिल्प ग्राम में चल रहे 13 दिवसीय खादी महोत्सव में अब तक लगभग 71.65 लाख रुपये के उत्पादों की बिक्री हुई है. अपर मुख्य सचिव, खादी एवं ग्रामोद्योग डॉ. नवनीत सहगल ने बताया कि प्रदर्शनी में विभिन्न स्टॉलों पर विशिष्ट उत्पादों की एक लम्बी श्रृंखला मौजूद है. आम लोग ठंड के मौसम में कम्बल, जैकेट, सदरी, कोट व अन्य ऊनी वस्त्रों की खूब खरीदारी कर रहे हैं.

पीलीभीत के बांसुरी की मांग
पीलीभीत के बांसुरी की मांग



लोगों को भा रही बांसुरी

हुनर हाट में खास तरह की बांसुरी भी लोगों को खूब भा रही है. उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में बनी बांसुरी के मुरीद देश में ही नहीं बल्कि सात समुंदर पार फ्रांस, इटली और अमेरिका सहित कई देशों में हैं. योगी सरकार ने बांसुरी को ओडीओपी योजना में घोषित कर रखा है. अवध शिल्प ग्राम के हुनर हाट में ओडीओपी की दीर्घा में एक दुकान बांसुरी की भी है. यह दुकान पीलीभीत के बशीरखां मोहल्ले में रहने वाले, बांसुरी बनाने वाले इकरार नवी की है. नवी अपने नायाब किस्म की बांसुरियों के लिए कई पुरस्कार भी पा चुके हैं. उनके स्टॉल में दस रुपये से लेकर पांच हजार रुपये तक की बांसुरी मौजूद है. बांसुरी बनाना और बेचना उनका पुश्तैनी काम है. इकरार नवी कहते हैं कि बांसुरी तो कन्हैया जी (भगवान कृष्ण) की देन है, जो लोगों की रोजी-रोटी चला रही है. बांसुरी कारोबार पर आए संकट को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओडीओपी के जरिए दूर कर दिया है.

पीलीभीत के बांसुरी की मांग दुनिया के अन्य देशों में भी है

इकरार बताते हैं कि पीलीभीत में आजादी के पहले से बांसुरी बनाने का कारोबार चलता आ रहा है. पीलीभीत की बनी बांसुरी दुनिया के कोने-कोने में जाती है. पीलीभीत की हर गली-मोहल्ले में पहले बांसुरी बनती थी लेकिन अब बहुत लोगों ने यह काम छोड़ दिया है. बांसुरी 24 तरह की होती है. उनमें छह इंच से लेकर 36 इंच तक की बांसुरी आती है. इकरार बताते हैं कि वह एक दिन में करीब ढ़ाई सौ बांसुरी बना लेते हैं.

बांसुरी के लिए नेपाल से आता था खास बांस

इकरार बांसुरी कारोबार के संकट का भी जिक्र करते हैं. वह बताते हैं कि बांसुरी जिस बांस से बनती है, उसे निब्बा बांस कहते हैं. वर्ष 1950 से पहले नेपाल से यह बांस यहां आता था. लेकिन, बाद के द‍िनों में नेपाल से आयात बंद हो गया. इसके बाद असम के सिलचर से निब्‍बा बांस पीलीभीत आने लगा. पीलीभीत से छोटी रेल लाइन पर गुहाटी एक्‍सप्रेस चला करती थी, इससे सिलचर से सीधे कच्‍चा माल (निब्‍बा बांस) पीलीभीत आ जाता था. इससे बहुत सुविधा थी लेकिन 1998 में यह लाइन बंद हो गई. यहीं से परेशानी की शुरुआत हो गई और हजारों लोगों ने बांसुरी बनाने से तौबा कर लिया. लेकिन, अब हमारे कारोबार को सीएम योगी ने ओडीओपी से जोड़कर संजीवनी दी है.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश दिवस के अवसर पर अवध शिल्प ग्राम में चल रहे 13 दिवसीय खादी महोत्सव में अब तक लगभग 71.65 लाख रुपये के उत्पादों की बिक्री हुई है. अपर मुख्य सचिव, खादी एवं ग्रामोद्योग डॉ. नवनीत सहगल ने बताया कि प्रदर्शनी में विभिन्न स्टॉलों पर विशिष्ट उत्पादों की एक लम्बी श्रृंखला मौजूद है. आम लोग ठंड के मौसम में कम्बल, जैकेट, सदरी, कोट व अन्य ऊनी वस्त्रों की खूब खरीदारी कर रहे हैं.

पीलीभीत के बांसुरी की मांग
पीलीभीत के बांसुरी की मांग



लोगों को भा रही बांसुरी

हुनर हाट में खास तरह की बांसुरी भी लोगों को खूब भा रही है. उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में बनी बांसुरी के मुरीद देश में ही नहीं बल्कि सात समुंदर पार फ्रांस, इटली और अमेरिका सहित कई देशों में हैं. योगी सरकार ने बांसुरी को ओडीओपी योजना में घोषित कर रखा है. अवध शिल्प ग्राम के हुनर हाट में ओडीओपी की दीर्घा में एक दुकान बांसुरी की भी है. यह दुकान पीलीभीत के बशीरखां मोहल्ले में रहने वाले, बांसुरी बनाने वाले इकरार नवी की है. नवी अपने नायाब किस्म की बांसुरियों के लिए कई पुरस्कार भी पा चुके हैं. उनके स्टॉल में दस रुपये से लेकर पांच हजार रुपये तक की बांसुरी मौजूद है. बांसुरी बनाना और बेचना उनका पुश्तैनी काम है. इकरार नवी कहते हैं कि बांसुरी तो कन्हैया जी (भगवान कृष्ण) की देन है, जो लोगों की रोजी-रोटी चला रही है. बांसुरी कारोबार पर आए संकट को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओडीओपी के जरिए दूर कर दिया है.

पीलीभीत के बांसुरी की मांग दुनिया के अन्य देशों में भी है

इकरार बताते हैं कि पीलीभीत में आजादी के पहले से बांसुरी बनाने का कारोबार चलता आ रहा है. पीलीभीत की बनी बांसुरी दुनिया के कोने-कोने में जाती है. पीलीभीत की हर गली-मोहल्ले में पहले बांसुरी बनती थी लेकिन अब बहुत लोगों ने यह काम छोड़ दिया है. बांसुरी 24 तरह की होती है. उनमें छह इंच से लेकर 36 इंच तक की बांसुरी आती है. इकरार बताते हैं कि वह एक दिन में करीब ढ़ाई सौ बांसुरी बना लेते हैं.

बांसुरी के लिए नेपाल से आता था खास बांस

इकरार बांसुरी कारोबार के संकट का भी जिक्र करते हैं. वह बताते हैं कि बांसुरी जिस बांस से बनती है, उसे निब्बा बांस कहते हैं. वर्ष 1950 से पहले नेपाल से यह बांस यहां आता था. लेकिन, बाद के द‍िनों में नेपाल से आयात बंद हो गया. इसके बाद असम के सिलचर से निब्‍बा बांस पीलीभीत आने लगा. पीलीभीत से छोटी रेल लाइन पर गुहाटी एक्‍सप्रेस चला करती थी, इससे सिलचर से सीधे कच्‍चा माल (निब्‍बा बांस) पीलीभीत आ जाता था. इससे बहुत सुविधा थी लेकिन 1998 में यह लाइन बंद हो गई. यहीं से परेशानी की शुरुआत हो गई और हजारों लोगों ने बांसुरी बनाने से तौबा कर लिया. लेकिन, अब हमारे कारोबार को सीएम योगी ने ओडीओपी से जोड़कर संजीवनी दी है.

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