लखनऊ: भारतीय पुलिस सेवा यानी आईपीएस, जो भी इस सेवा में आता है वह दिल में ये उम्मीद पाले रखता है कि कभी न कभी उसके हाथों में जिला पुलिस की बागडोर होगी और वह जनता के साथ न्याय करेगा लेकिन उत्तर प्रदेश में यूपी कैडर आईपीएस का एक ऐसा बैच है जिसमे भर्ती हुई 5 महिला आईपीएस अधिकारियों को जिले की जिम्मेदारी अभी तक नसीब नही हुई बल्कि उनकी जूनियर अधिकारी जिले की कमान संभाल चुकी हैं.
यूपी में पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा महिला आईपीएस अधिकारी किसी एक बैच में भर्ती हुई थी तो वह है 2014 बैच. इस बैच में 5 महिला आईपीएस की भर्ती हुई. शुरुआती दौर में इन सभी महिला अधिकारियों की तैनाती अलग -अलग जिलों में क्षेत्राधिकारी व अपर पुलिस अधीक्षक के तौर पर हुई और अपने सख्त तेवरों से सभी ने मीडिया और लोगों के बीच अपनी जगह भी बनाई.
सूबे के पूर्व डीजीपी ने रिटायरमेंट से ठीक पहले 2014 बैच के अधिकारियों को जिलों की कमान सौंपी तो उस लिस्ट में इस बैच की एक भी महिला अधिकारी अपना नाम नही शामिल करवा सकीं. हालांकि बाद में उन्हें लखनऊ और नोएडा कमिश्नरेट में डीसीपी के पद पर तैनाती दी गई.
2014 बैच की महिला आईपीएस अधिकारियों को जिले की बागडोर न दिए जाने से अंदरखाने में रोष इसलिए भी है क्योंकि उनसे जूनियर अधिकारी को सरकार पुलिस कप्तान बना चुकी है. दरअसल, 2015 बैच की आईपीएस अपर्णा गौतम औरैया जिले की एसपी रह चुकी है. हालांकि वर्तमान में वह डीजीपी मुख्यालय से संबद्ध हैं.
2014 बैच की महिला आईपीएस अधिकारी
यूपी कैडर के 2014 बैच में 16 आईपीएस अधिकारियों की भर्ती हुई जिसमें 5 महिला आईपीएस अधिकारी थीं. इनमें तेजतर्रार अधिकारी और लेडी सिंघम के नाम से फेमस रवीना त्यागी (डीसीपी कानपुर कमिश्नरेट), गोरखपुर में तैनाती के वक़्त में चर्चा में आई और राजधानी लखनऊ का ट्रैफिक सिस्टम सुधारने वाली चारु निगम (सेना नायक, 6वीं बटालियन पीएसी), मीनाक्षी कात्यायन (डीसीपी नोएडा पुलिस कमिश्नरेट), पूजा यादव (डीजीपी मुख्यालय संबद्ध) और वृन्दा शुक्ला (डीसीपी नोएडा पुलिस कमिश्नरेट ) शामिल हैं.
हालांकि किस जिले का पुलिस कप्तान कौन आईपीएस अधिकारी तैनात होगा यह सरकार की इच्छा शक्ति और अधिकारी के प्रदर्शन पर निर्भर करता है.
2014 बैच की महिला अधिकारियों को जिले में तैनाती न दिए जाने से अंदरखाने में चर्चा है तो दूसरी तरफ एक सवाल भी उठता है कि आखिरकार किस कमी के कारण अभी तक सरकार की नजर इन अधिकारियों की ओर इनायत नही हो सकी है.
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पूर्व डीजीपी यशपाल की मानें तो किसी भी आईपीएस अधिकारी को जिले का कप्तान बनाने के लिए राज्य सरकार, डीजीपी और प्रमुख सचिव गृह के साथ गहन चर्चा करती है. चर्चा के दौरान आईपीएस अधिकारियों के कार्य करने के प्रति ऊर्जा, उसके कार्य प्रभाव और उनकी कमजोरी के विषय मे बात की जाती है. शायद जिस बैच की महिला अधिकारियों के विषय में बात की जा रही है उनमें सरकार को ये सब गुण न दिखते हो और जूनियर्स में दिखे हों.
दो दशक से क्राइम रिपोर्टिंग कर रहे वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी कहते है कि किसी अधिकारी को पुलिस कप्तान बनाना सरकार का खुद का निर्णय होता है. सरकार अधिकारी की काबिलियत देखकर उसे जिले की कमान सौंपती है लेकिन अगर किसी अधिकारी को जिले का एसपी बनाती ही नही है तो कैसे उसकी काबिलियत का निर्णय कर सकती है. यही नही जब भी किसी को कप्तान के रूप में तैनाती दी जाती है तो सरकार संतुलन बनाये रखती है जिसमें पुरुष और महिला दोनों अधिकारियों को ही जिले में भेजा जाता है. यदि इस बैच में ऐसा नही हुआ है तो ये सरकार की भूल है या फिर असावधानी.
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