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सोशल मीडिया यूजर्स पर शिकंजा, एक साल में 1107 केस दर्ज, जानिए सजा का प्रावधान

उत्तर प्रदेश में सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने के लिए तेजी से कार्रवाई की जा रही है. ट्विटर के खिलाफ पहला केस दर्ज होने के बाद लोगों में भी जागरूकता आई है.

लखनऊः
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Published : Jun 18, 2021, 10:50 AM IST

Updated : Jun 18, 2021, 12:34 PM IST

लखनऊः संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी सभी को दी गई है लेकिन इंटरनेट और सोशल मीडिया पर इस आजादी का दुरुपयोग भी देखने को मिल रहा है. ध्यान रहे कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आप किसी कानून का उल्लंघन नहीं कर सकते. दूसरों की भावनाओं को आहत नहीं कर सकते. किसी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचा सकते. हैरानी की बात ये है कि आजकल यह सारे काम सोशल मीडिया पर हो रहे हैं.

गाजियाबाद में ट्विटर के खिलाफ पहला केस दर्ज होने के बाद अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय लोग बेशक सकते में आ रहे हैं, लेकिन यूपी पुलिस एक साल के भीतर ऐसे 1107 मुकदमे दर्ज कर चुकी है. यही नहीं कई मामलों में पोस्ट डालने वालों को गिरफ्तार करके जेल भी भेजा जा चुका है.

सोशल मीडिया पर पुलिस किस तरह पैनी नजर रखे हुए है, इसका अंदाजा एक साल के अंदर हुई कार्रवाईयों से पता लगाया जा सकता है. एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार ने बताया कि एक जून 2020 से 31 मई 2021 तक सोशल मीडिया पर टिप्पणियों के मामलों में 1107 केस दर्ज किए जा चुके हैं. इसमें अफवाह, गलत जानकारी पर 118 FIR, सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाली पोस्ट पर 366 मुकदमे, आपत्तिजनक पोस्ट, ऑडियो, वीडियो पर 623 FIR दर्ज की जा चुकी हैं.

गाजियाबाद में एक मुस्लिम बुजुर्ग की पिटाई के वीडियो के ट्विटर पर सामने आने के बाद तमाम तरह की टिप्पणियों को लेकर गाजियाबाद पुलिस ने नौ के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया. जिसमें खुद ट्विटर को भी आरोपी बनाया गया है. इसके बाद सोशल मीडिया यूजर्स में एक तरह का खौफ भी दिखने लगा है. इस मामले से पहले इस प्लेटफॉर्म पर मुखर लोग अब हर पोस्ट बहुत सोच समझकर डाल रहे हैं लेकिन सरकार ने सोशल मीडिया पर काफी पहले से शिकंजा कसना शुरू कर दिया था.

सितंबर 2019 में यूपी में बच्चा चोर गिरोह के सक्रिय होने की घटना सामने आई थी. एक तरफ पुलिस इसे लेकर फैले डर को खत्म करने का प्रयास कर रही थी, दूसरी ओर सोशल मीडिया पर इसे लेकर हर पल नई-नई अफवाहें सामने आ रही थी. तत्कालीन एसएसपी कलानिधि नैथानी ने सोशल मीडिया पर इसकी अफवाह फैलाने वाले तीन युवकों को गिरफ्तार कर जेल भेजा, जिन्हें दो महीने बाद जमानत मिल पाई थी. इसी तरह नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर चल रहे विरोध के दौरान दिसंबर 2019 में सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वाले 5 लोगों को लखनऊ पुलिस ने जेल भेजा था. इसी 11 जून को कोरोना वैक्सीन के बारे में सोशल मीडिया पर फिरोजाबाद के सिरसागंज में एक युवक को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया.

इसे भी पढ़ेंः अलीगढ़ः कोरोना के डर से घर से नहीं निकली, बच्चे भूखे मरते रहे

वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज श्रीवास्तव के मुताबिक, कानून लागू होने के साथ इसमें सबसे बड़ी धारा 66 ए में सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए प्रावधान जोड़ा गया था, लेकिन यह धारा किसी व्यक्ति विशेष पर की जाने वाली आपत्तिजनक टिप्पणियों की रोकथाम के लिए थी. इसकी वजह से पुलिस इस धारा को प्रभावशाली लोगों के इशारे पर किसी को भी फंसाने में इस्तेमाल करने लगी. इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में इस धारा को निष्प्रभावी कर दिया. इसके बाद सोशल मीडिया यूजर्स को लगने लगा कि अब आईटी एक्ट बेहद मामूली सा कानून बनकर रह गया लेकिन बढ़ते साइबर क्राइम ने सोशल मीडिया को भारतीय दंड संहिता के दायरे में ला दिया, जहां कड़े सजा के प्रावधान हैं.

इसे भी पढ़ेंः रोज बढ़ रहे सब्जियों के दाम, भिंडी-गोभी 60 रुपये किलो पहुंचे

लखनऊः संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी सभी को दी गई है लेकिन इंटरनेट और सोशल मीडिया पर इस आजादी का दुरुपयोग भी देखने को मिल रहा है. ध्यान रहे कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आप किसी कानून का उल्लंघन नहीं कर सकते. दूसरों की भावनाओं को आहत नहीं कर सकते. किसी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचा सकते. हैरानी की बात ये है कि आजकल यह सारे काम सोशल मीडिया पर हो रहे हैं.

गाजियाबाद में ट्विटर के खिलाफ पहला केस दर्ज होने के बाद अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय लोग बेशक सकते में आ रहे हैं, लेकिन यूपी पुलिस एक साल के भीतर ऐसे 1107 मुकदमे दर्ज कर चुकी है. यही नहीं कई मामलों में पोस्ट डालने वालों को गिरफ्तार करके जेल भी भेजा जा चुका है.

सोशल मीडिया पर पुलिस किस तरह पैनी नजर रखे हुए है, इसका अंदाजा एक साल के अंदर हुई कार्रवाईयों से पता लगाया जा सकता है. एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार ने बताया कि एक जून 2020 से 31 मई 2021 तक सोशल मीडिया पर टिप्पणियों के मामलों में 1107 केस दर्ज किए जा चुके हैं. इसमें अफवाह, गलत जानकारी पर 118 FIR, सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाली पोस्ट पर 366 मुकदमे, आपत्तिजनक पोस्ट, ऑडियो, वीडियो पर 623 FIR दर्ज की जा चुकी हैं.

गाजियाबाद में एक मुस्लिम बुजुर्ग की पिटाई के वीडियो के ट्विटर पर सामने आने के बाद तमाम तरह की टिप्पणियों को लेकर गाजियाबाद पुलिस ने नौ के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया. जिसमें खुद ट्विटर को भी आरोपी बनाया गया है. इसके बाद सोशल मीडिया यूजर्स में एक तरह का खौफ भी दिखने लगा है. इस मामले से पहले इस प्लेटफॉर्म पर मुखर लोग अब हर पोस्ट बहुत सोच समझकर डाल रहे हैं लेकिन सरकार ने सोशल मीडिया पर काफी पहले से शिकंजा कसना शुरू कर दिया था.

सितंबर 2019 में यूपी में बच्चा चोर गिरोह के सक्रिय होने की घटना सामने आई थी. एक तरफ पुलिस इसे लेकर फैले डर को खत्म करने का प्रयास कर रही थी, दूसरी ओर सोशल मीडिया पर इसे लेकर हर पल नई-नई अफवाहें सामने आ रही थी. तत्कालीन एसएसपी कलानिधि नैथानी ने सोशल मीडिया पर इसकी अफवाह फैलाने वाले तीन युवकों को गिरफ्तार कर जेल भेजा, जिन्हें दो महीने बाद जमानत मिल पाई थी. इसी तरह नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर चल रहे विरोध के दौरान दिसंबर 2019 में सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वाले 5 लोगों को लखनऊ पुलिस ने जेल भेजा था. इसी 11 जून को कोरोना वैक्सीन के बारे में सोशल मीडिया पर फिरोजाबाद के सिरसागंज में एक युवक को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया.

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वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज श्रीवास्तव के मुताबिक, कानून लागू होने के साथ इसमें सबसे बड़ी धारा 66 ए में सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए प्रावधान जोड़ा गया था, लेकिन यह धारा किसी व्यक्ति विशेष पर की जाने वाली आपत्तिजनक टिप्पणियों की रोकथाम के लिए थी. इसकी वजह से पुलिस इस धारा को प्रभावशाली लोगों के इशारे पर किसी को भी फंसाने में इस्तेमाल करने लगी. इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में इस धारा को निष्प्रभावी कर दिया. इसके बाद सोशल मीडिया यूजर्स को लगने लगा कि अब आईटी एक्ट बेहद मामूली सा कानून बनकर रह गया लेकिन बढ़ते साइबर क्राइम ने सोशल मीडिया को भारतीय दंड संहिता के दायरे में ला दिया, जहां कड़े सजा के प्रावधान हैं.

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Last Updated : Jun 18, 2021, 12:34 PM IST
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