ETV Bharat / state

रिश्वत लेने के मामले में कैंटोनमेंट बोर्ड के सीईओ की याचिका खारिज, फतेहगढ़ का है मामला

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने फतेहगढ़ कैंटोनमेंट बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने रिश्वत लेने के एक मामले में अपने खिलाफ चल रहे मुकदमे को खारिज किए जाने की मांग की थी. न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि याची नए-नए बहानों के आधार पर सिर्फ ट्रायल में देरी कराना चाहता है.

c
c
author img

By

Published : Nov 18, 2022, 9:22 PM IST

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने फतेहगढ़ कैंटोनमेंट बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने रिश्वत लेने के एक मामले में अपने खिलाफ चल रहे मुकदमे को खारिज किए जाने की मांग की थी. न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि याची नए-नए बहानों के आधार पर सिर्फ ट्रायल में देरी कराना चाहता है.


यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह (Justice Dinesh Kumar Singh) की एकल पीठ ने आरोपी सीईओ महंत प्रसाद राम त्रिपाठी उर्फ एमपीआर त्रिपाठी (CEO Mahant Prasad Ram Tripathi alias MPR Tripathi) की याचिका पर पारित किया. याची की ओर से दलील दी गई कि याची के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति का आदेश गलत है व सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित नहीं किया गया है.

इसका सीबीआई द्वारा याचिका का विरोध किया गया. कहा गया कि 10 मई 2015 को एक ठेकेदार से रिश्वत लेने के मामले में वार्ड मेंबर शशि मोहन को रिश्वत की रकम लेते सीबीआई द्वारा रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया था. उक्त शशि मोहन ने स्वीकार किया था कि वह याची व दो अन्य अभियुक्तों के लिए रिश्वत की रकम प्राप्त करता है. न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात पारित अपने आदेश में कहा कि अभियोजन स्वीकृति विधि सम्मत है. न्यायालय ने याची पक्ष की इस दलील को खारिज कर दिया कि पहले सक्षम अधिकारी ने अभियोजन स्वीकृति देने से इंकार कर दिया था और इसके बावजूद उन्हीं तथ्यों के आधार पर बाद में अभियोजन स्वीकृति प्रदान की गई. न्यायालय ने कहा कि विभाग के आंतरिक विमर्श को अभियोजन स्वीकृति के सम्बंध में निर्णय नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उक्त आंतरिक विमर्श से सीबीआई को अवगत नहीं कराया गया था.

यह भी पढ़ें : बरेली जोन में धर्मांतरण कराने वालों पर पुलिस सख्त, अब तक 115 आरोपी भेजे गए जेल

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने फतेहगढ़ कैंटोनमेंट बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने रिश्वत लेने के एक मामले में अपने खिलाफ चल रहे मुकदमे को खारिज किए जाने की मांग की थी. न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि याची नए-नए बहानों के आधार पर सिर्फ ट्रायल में देरी कराना चाहता है.


यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह (Justice Dinesh Kumar Singh) की एकल पीठ ने आरोपी सीईओ महंत प्रसाद राम त्रिपाठी उर्फ एमपीआर त्रिपाठी (CEO Mahant Prasad Ram Tripathi alias MPR Tripathi) की याचिका पर पारित किया. याची की ओर से दलील दी गई कि याची के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति का आदेश गलत है व सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित नहीं किया गया है.

इसका सीबीआई द्वारा याचिका का विरोध किया गया. कहा गया कि 10 मई 2015 को एक ठेकेदार से रिश्वत लेने के मामले में वार्ड मेंबर शशि मोहन को रिश्वत की रकम लेते सीबीआई द्वारा रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया था. उक्त शशि मोहन ने स्वीकार किया था कि वह याची व दो अन्य अभियुक्तों के लिए रिश्वत की रकम प्राप्त करता है. न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात पारित अपने आदेश में कहा कि अभियोजन स्वीकृति विधि सम्मत है. न्यायालय ने याची पक्ष की इस दलील को खारिज कर दिया कि पहले सक्षम अधिकारी ने अभियोजन स्वीकृति देने से इंकार कर दिया था और इसके बावजूद उन्हीं तथ्यों के आधार पर बाद में अभियोजन स्वीकृति प्रदान की गई. न्यायालय ने कहा कि विभाग के आंतरिक विमर्श को अभियोजन स्वीकृति के सम्बंध में निर्णय नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उक्त आंतरिक विमर्श से सीबीआई को अवगत नहीं कराया गया था.

यह भी पढ़ें : बरेली जोन में धर्मांतरण कराने वालों पर पुलिस सख्त, अब तक 115 आरोपी भेजे गए जेल

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.