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कोरोना ने बिगाड़ी ऑटो चालकों की गृहस्थी, एक टाइम खाना तो एक टाइम पानी पीकर कर रहे गुजर-बसर

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हर दिन ऑटो चलाने वाले हजारों परिवारों के घरों में एक समय का ही खाना बन पाता है. ऐसा इसलिए क्योकि इन परिवारों के पास अब आय का कोई साधन नहीं है और अब तक सरकारी मदद भी इन तक नहीं पहुंच पाई है.

एक टाइम खाकर हो रहा गुजर-बसर.
एक टाइम खाकर हो रहा गुजर-बसर.
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Published : Apr 9, 2020, 10:13 PM IST

Updated : Apr 11, 2020, 11:39 AM IST

लखनऊ: कोरोना जैसी महामारी से देश का हर वर्ग किसी न किसी रूप में प्रभावित है. लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद इससे सबसे ज्यादा दैनिक मजदूरी करने वाले लोग प्रभावित हुए हैं. इसी वर्ग में ऑटो चालकों का भी महत्वपूर्ण स्थान है. ऑटो चालक ऑटो चला कर हर माह कम से कम 15 हजार रुपये कमा लेते थे. वह ऑटो चालक अब लॉकडाउन के चलते उधार मांग कर किसी तरह गुजर- बसर करने को मजबूर हैं. मुफलिसी के दौर में उनका परिवार पाई-पाई को मोहताज हो गया है. घर की रसोई में बमुश्किल एक समय खाना पक पाता है. चिंता की लकीरें उनके माथे पर साफ नजर आती हैं. परिवार को पालना इस समय किसी चुनौती से कम नहीं लग रहा है.

एक टाइम खाकर हो रहा गुजर-बसर.

इनमें से ही एक ऑटो चालक राजेश हैं, जो आम दिनों में रोजाना सुबह ऑटो लेकर सड़क पर निकल जाता था. दिन भर मेहनत से ऑटो चलाने के बाद शाम को राजेश अपने परिवार के साथ खुशी से रहता था. अब लॉकडाउन से राजेश की कमाई के सारे रास्ते लॉक हो गए हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए राजेश की आंखें बोझिल हो गईं. राजेश ने बताया कि उसका परिवार सीतापुर में रहता है. किसी तरह ऑटो चला कर वह जिंदगी गुजार रहे हैं. किराए का घर है और महीने में किराया भी भरना पड़ता है. छोटे-छोटे बच्चे हैं उन्हें भी पालना है, लेकिन लॉकडाउन ने सब बेकार कर दिया है. राजेश का कहना है कि पूरा एक पैकेट दूध का बच्चों के लिए लाते हैं लेकिन अब दूध लेने में दिक्कत हो रही है. ऑटो नहीं चलने की वजह से वह लोगों से उधार लेकर बच्चों के लिए दूध लाता है.

ऑटो चालक राजेश की पत्नी की गृहस्थी पर कोरोना ने पूरी तरह ग्रहण लगा दिया है. रसोई के अंदर अब पहले की तरह खाना दोनों समय नहीं पकता है, बल्कि बस एक समय खाना पकता है. एक समय पानी पीकर परिवार किसी तरह जिंदगी जीने को मजबूर है.

लखनऊ में जब सब कुछ बंद है तो सरकार ने ऐसे लोगों का जिम्मा खुद उठाने की जिम्मेदारी ली है. 1000 रुपए सभी के खातों में पहुंचाने की सरकार ने पहल की है, लेकिन अभी भी राजेश को वह मदद नहीं मिल पाई है. लखनऊ में अगर ऑटो की संख्या की बात की जाए तो तकरीबन 5000 ऑटो के परमिट हैं. यानी लखनऊ में 5000 परिवार ऐसे रहते हैं जो, ऑटो चालकों के परिवार हैं. इस समय लॉकडाउन के चलते ऑटो नहीं चलने से इन्हें राजेश के परिवार की ही तरह समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

इसे भी पढ़ें- COVID-19: UP में कोरोना के 30 नए मामले आए सामने, आंकड़ा पहुंचा 395

लखनऊ: कोरोना जैसी महामारी से देश का हर वर्ग किसी न किसी रूप में प्रभावित है. लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद इससे सबसे ज्यादा दैनिक मजदूरी करने वाले लोग प्रभावित हुए हैं. इसी वर्ग में ऑटो चालकों का भी महत्वपूर्ण स्थान है. ऑटो चालक ऑटो चला कर हर माह कम से कम 15 हजार रुपये कमा लेते थे. वह ऑटो चालक अब लॉकडाउन के चलते उधार मांग कर किसी तरह गुजर- बसर करने को मजबूर हैं. मुफलिसी के दौर में उनका परिवार पाई-पाई को मोहताज हो गया है. घर की रसोई में बमुश्किल एक समय खाना पक पाता है. चिंता की लकीरें उनके माथे पर साफ नजर आती हैं. परिवार को पालना इस समय किसी चुनौती से कम नहीं लग रहा है.

एक टाइम खाकर हो रहा गुजर-बसर.

इनमें से ही एक ऑटो चालक राजेश हैं, जो आम दिनों में रोजाना सुबह ऑटो लेकर सड़क पर निकल जाता था. दिन भर मेहनत से ऑटो चलाने के बाद शाम को राजेश अपने परिवार के साथ खुशी से रहता था. अब लॉकडाउन से राजेश की कमाई के सारे रास्ते लॉक हो गए हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए राजेश की आंखें बोझिल हो गईं. राजेश ने बताया कि उसका परिवार सीतापुर में रहता है. किसी तरह ऑटो चला कर वह जिंदगी गुजार रहे हैं. किराए का घर है और महीने में किराया भी भरना पड़ता है. छोटे-छोटे बच्चे हैं उन्हें भी पालना है, लेकिन लॉकडाउन ने सब बेकार कर दिया है. राजेश का कहना है कि पूरा एक पैकेट दूध का बच्चों के लिए लाते हैं लेकिन अब दूध लेने में दिक्कत हो रही है. ऑटो नहीं चलने की वजह से वह लोगों से उधार लेकर बच्चों के लिए दूध लाता है.

ऑटो चालक राजेश की पत्नी की गृहस्थी पर कोरोना ने पूरी तरह ग्रहण लगा दिया है. रसोई के अंदर अब पहले की तरह खाना दोनों समय नहीं पकता है, बल्कि बस एक समय खाना पकता है. एक समय पानी पीकर परिवार किसी तरह जिंदगी जीने को मजबूर है.

लखनऊ में जब सब कुछ बंद है तो सरकार ने ऐसे लोगों का जिम्मा खुद उठाने की जिम्मेदारी ली है. 1000 रुपए सभी के खातों में पहुंचाने की सरकार ने पहल की है, लेकिन अभी भी राजेश को वह मदद नहीं मिल पाई है. लखनऊ में अगर ऑटो की संख्या की बात की जाए तो तकरीबन 5000 ऑटो के परमिट हैं. यानी लखनऊ में 5000 परिवार ऐसे रहते हैं जो, ऑटो चालकों के परिवार हैं. इस समय लॉकडाउन के चलते ऑटो नहीं चलने से इन्हें राजेश के परिवार की ही तरह समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

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Last Updated : Apr 11, 2020, 11:39 AM IST
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