लखनऊ: केंद्र सरकार ने इस सत्र में सीबीएसई की 10वीं की परीक्षा न कराने का फैसला लिया है. वहीं 12वीं की परीक्षाएं टाल दी गई हैं. इस फैसले का विशेषज्ञों ने स्वागत किया है. हालांकि 10वीं की परीक्षा को न कराने के फैसले को लेकर थोड़ा मतभेद भी है. विशेषज्ञों का कहना है कि जैसे 12वीं की परीक्षाएं टाली गई हैं, वैसे ही 10वीं की भी टाल सकते थे. 10वीं की परीक्षा न कराने का फैसला छात्रों के लिए थोड़ा गलत साबित हो सकता है. ठीक से मूल्यांकन संभव नहीं होगा.
केन्द्रीय विद्यालय सीआरपीएफ बिजनौर के प्रिंसिपल मनोज वर्मा कहते हैं कि आमतौर पर सत्र की शुरुआती परीक्षाओं को बच्चे उतना गंभीरता से नहीं लेते. इस सत्र में तो कोरोना संक्रमण के चलते शुरुआत ऑनलाइन क्लासेज से हुई थी. नवम्बर-दिसम्बर में बच्चों के स्कूल पहुंचने पर पढ़ाई नियमित हुई. बच्चों ने भी मेहनत की थी. अब इन बच्चों के मूल्यांकन का क्या फार्मूला होगा? इसको लेकर थोड़ा संशय की स्थितियां बन गई हैं. यह भी कह पाना मुश्किल है कि इस फार्मूले से सभी बच्चों को उचित न्याय मिल पाएगा या नहीं. उधर, 12वीं की परीक्षाएं टालने की बात कही गई है. यह जरूरी भी था, लेकिन इन हालातों में अभी जो प्रैक्टिकल परीक्षाएं चल रही हैं, उनका क्या होगा? इस पर भी तस्वीर स्पष्ट नहीं है.
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मौजूदा हालातों में थी इसकी जरूरत
क्रिएटिव कॉन्वेंट कॉलेज के प्रबंधक योगेन्द्र सचान का कहना है कि मौजूदा हालातों को देखते हुए सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है. ज्यादातर स्कूलों में 10वीं की दो से तीन प्री बोर्ड परीक्षाएं हो चुकी हैं. उनके परिणामों के आधार पर भी 10वीं के नतीजे तैयार हो सकते हैं. चूंकि, 12वीं के बच्चों का मूल्यांकन विद्यालय स्तर पर ठीक से होना संभव नहीं हो पाता है, ऐसे में उनके लिए स्थितियां सामान्य होने पर परीक्षा कराना ही बेहतर होगा.