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आदि-गंगा 'गोमती नदी' के अस्तित्व को खतरा, नदी में गंदगी का अम्बार

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Published : Dec 18, 2020, 12:24 PM IST

आदि-गंगा कही जाने वाली गोमती नदी आज भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. यहां गंदगी का अंबार लगा है. नदी किनारे घाट तो बन गये हैं, लेकिन गोमती की सफाई अबतक नहीं हो पायी है.

गोमती नदी में गंदगी का अम्बार
गोमती नदी में गंदगी का अम्बार

लखनऊः सरकार नदियों की सफाई के लिए कई योजनाएं चला रही है और इसके लिए प्रतिबद्धता भी जताती रही है. लेकिन लखनऊ में गोमती नदी की सफाई का बुरा हाल है. यहां गंदगी का अंबार लगा हुआ है. आदि-गंगा कही जाने वाली गोमती नदी के अस्तित्व पर अब खतरा मंडराने लगा है. यहां घाट तो बन गये हैं. लेकिन नदी की सफाई अभी तक नहीं हो सकी है.

आदि-गंगा 'गोमती नदी' के अस्तित्व को खतरा

गोमती नदी की हो रही उपेक्षा
केंद्र सरकार नदियों की सफाई के लिए नमामि गंगे प्रोजेक्ट चला रही है. जिसमें गंगा और उसकी सहायक नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है. लेकिन आज भी राजधानी लखनऊ की गोमती नदी अपने अस्तित्व को तलाशने में जुटी हुई है. 2017 में योगी सरकार आने के बाद गोमती की साफ-सफाई को लेकर काफी दावे किए गए. लेकिन वे दावे सरकारी कागजों में सिमट कर ही रह गए. ईटीवी भारत की टीम जब लखनऊ की गोमती नदी की हकीकत जानने पहुंची, तो पिछले कई सालों से जो समाजसेवी संस्थाएं गोमती की सफाई के लिए काम कर रही हैं. ऐसी ही एक समाज सेवी संस्था के महामंत्री से हमारी टीम ने बातचीत की है.

समाजसेवी का ये कहना है

शुभ संस्कार समिति के महामंत्री रिद्धि गौड़ के मुताबिक उनके संस्थान लगातार कई सालों से गोमती नदी की सफाई के लिए प्रयासरत हैं. कई बार उन्होंने संबंधित विभागों और मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा. लेकिन अधिकारियों की टालमटोल की वजह से आज भी गोमती नदी की सफाई नहीं हो पाई है. आंकड़ों की मानें तो पिछले 20 सालों में 35 सौ करोड रुपए गोमती की सफाई के लिए खर्च किए गए हैं. लेकिन वह पैसा अगर सफाई में नहीं लगा तो आखिर गया कहां? इसके साथ ही उन्होंने कहा कि शुरुआती दौर में अटल बिहारी बाजपेयी के समय कोलकाता से एक ड्रेसर मंगवाया गया था, जो गोमती नदी के शिल्ट को निकालने का काम किया करता था. लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार जाने के बाद काम बंद हो गया. गोमती नदी में आज भी कई खुले नाले गिरते हैं, जिससे शहर का कचरा नदी में सीधा जाता है. भले ही सरकारें बदल गई हों, समय बदल गया हो, लेकिन गोमती नदी की स्थिति जस की तस बनी हुई है. एक ओर जहां केंद्र सरकार नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों की साफ-सफाई का दावा कर रही है. वहीं दूसरी ओर राजधानी लखनऊ की गोमती नदी आज भी अपने अस्तित्व को तलाशने में जुटी हुई है.

लखनऊः सरकार नदियों की सफाई के लिए कई योजनाएं चला रही है और इसके लिए प्रतिबद्धता भी जताती रही है. लेकिन लखनऊ में गोमती नदी की सफाई का बुरा हाल है. यहां गंदगी का अंबार लगा हुआ है. आदि-गंगा कही जाने वाली गोमती नदी के अस्तित्व पर अब खतरा मंडराने लगा है. यहां घाट तो बन गये हैं. लेकिन नदी की सफाई अभी तक नहीं हो सकी है.

आदि-गंगा 'गोमती नदी' के अस्तित्व को खतरा

गोमती नदी की हो रही उपेक्षा
केंद्र सरकार नदियों की सफाई के लिए नमामि गंगे प्रोजेक्ट चला रही है. जिसमें गंगा और उसकी सहायक नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है. लेकिन आज भी राजधानी लखनऊ की गोमती नदी अपने अस्तित्व को तलाशने में जुटी हुई है. 2017 में योगी सरकार आने के बाद गोमती की साफ-सफाई को लेकर काफी दावे किए गए. लेकिन वे दावे सरकारी कागजों में सिमट कर ही रह गए. ईटीवी भारत की टीम जब लखनऊ की गोमती नदी की हकीकत जानने पहुंची, तो पिछले कई सालों से जो समाजसेवी संस्थाएं गोमती की सफाई के लिए काम कर रही हैं. ऐसी ही एक समाज सेवी संस्था के महामंत्री से हमारी टीम ने बातचीत की है.

समाजसेवी का ये कहना है

शुभ संस्कार समिति के महामंत्री रिद्धि गौड़ के मुताबिक उनके संस्थान लगातार कई सालों से गोमती नदी की सफाई के लिए प्रयासरत हैं. कई बार उन्होंने संबंधित विभागों और मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा. लेकिन अधिकारियों की टालमटोल की वजह से आज भी गोमती नदी की सफाई नहीं हो पाई है. आंकड़ों की मानें तो पिछले 20 सालों में 35 सौ करोड रुपए गोमती की सफाई के लिए खर्च किए गए हैं. लेकिन वह पैसा अगर सफाई में नहीं लगा तो आखिर गया कहां? इसके साथ ही उन्होंने कहा कि शुरुआती दौर में अटल बिहारी बाजपेयी के समय कोलकाता से एक ड्रेसर मंगवाया गया था, जो गोमती नदी के शिल्ट को निकालने का काम किया करता था. लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार जाने के बाद काम बंद हो गया. गोमती नदी में आज भी कई खुले नाले गिरते हैं, जिससे शहर का कचरा नदी में सीधा जाता है. भले ही सरकारें बदल गई हों, समय बदल गया हो, लेकिन गोमती नदी की स्थिति जस की तस बनी हुई है. एक ओर जहां केंद्र सरकार नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों की साफ-सफाई का दावा कर रही है. वहीं दूसरी ओर राजधानी लखनऊ की गोमती नदी आज भी अपने अस्तित्व को तलाशने में जुटी हुई है.

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