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लखनऊ: एथलीट तृप्ति का सीएम योगी से वादा, टोरंटो से लाएंगी गोल्ड मेडल

देहरादून में आयोजित राष्ट्रीय मास्टर मीट में तृप्ति ने उत्तर प्रदेश के लिए सर्वाधिक चार मेडल जीते हैं. यहीं से खेल की दुनिया में तृप्ति की फिर से यात्रा शुरू हो गई. एथलीट डॉ. तृप्ति ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत कर बातें साझा की.

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डॉ. तृप्ति सिंह.
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Published : Jan 8, 2020, 11:13 PM IST

लखनऊ: एथलीट खिलाड़ी डॉ. तृप्ति सिंह खेल की दुनिया में नाम रोशन करना चाहती थीं, लेकिन उनके पिता तृप्ति को पढ़ा-लिखाकर अफसर बनाना चाहते थे. उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 1981 में जन्मी डॉ. तृप्ति सिंह वर्ष 2000 में खेल की दुनिया से दूर हो गईं. इसके बाद उन्होंने बीपीएड, एमपी, पीएचडी, एमफिल जैसी डिग्रियां हासिल कीं, लेकिन इससे उन्हें संतोष नहीं मिला. उनके मन में खेल की दुनिया में जाने का सपना जीवित रहा.

ईटीवी भारत से बातचीत करतीं डॉ. तृप्ति सिंह.

तृप्ति के गुरु जी ने फोन करके फिर से प्रैक्टिस करने के लिए उन्हें प्रेरित किया. मौका था देहरादून में राष्ट्रीय मास्टर मीट के आयोजन का. उससे कुछ दिनों पूर्व उन्होंने तैयारी शुरू की. नतीजा यह रहा कि तृप्ति ने उत्तर प्रदेश के लिए सर्वाधिक चार मेडल जीते. यहीं से खेल की दुनिया में तृप्ति की फिर से यात्रा शुरू हो गई.

डॉ. तृप्ति के कैरियर पर एक नजर... उन्हीं के शब्दों में
20 साल बाद जब मैंने खेल की दुनिया में दोबारा कदम रखा. प्रतियोगिता में भाग लेने से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से करीब छह माह पूर्व मुलाकात की थी. उस वक्त मुख्यमंत्री जी ने मुझे आशीर्वाद दिया था. उन्होंने कहा था कि मलेशिया में एशियाड खेलने के लिए जा रही हो तो देश के लिए गोल्ड मेडल लेकर ही आना. मैंने उनको दिए वादे के मुताबिक मेहनत की. भगवान ने साथ दिया और गोल्ड मेडल जीतकर आई.

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डॉ. तृप्ति सिंह.

ये भी पढ़ें- छात्रों के साथ अधिक संवाद स्थापित करें, संकाय को विश्वास में लें JNU वीसी : MHRD

सीएम योगी से लिया आशीर्वाद
आज मैं पुनः सीएम योगी के पास आई. उन्होंने मुझे फिर से आशीर्वाद दिया है. वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप टोरंटो कनाडा में संपन्न होना है, जिसके लिए मैं फिर से तैयारी कर रही हूं. मुझे पूरी उम्मीद है कि मैं वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में फिर से 100 मीटर बाधा दौड़ में गोल्ड मेडल लेकर आऊंगी. मुझे आज बहुत खुशी हो रही है और सबकी दुआ मेरे साथ है. मैं अपना पूरा दमखम लगाऊंगी कि फिर से भारत देश का झंडा लहरा सकूं.

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टोरंटो से गोल्ड मेडल लाने का वादा.

गुरु ने बढ़ाया हौसला
तृप्ति ने कहा कि यह सब कुछ हासिल करना मेरे लिए बहुत कठिन था. वर्ष 2000 में खेल छोड़ चुकी थी. करीब 20 साल बाद 2019 में खेल में वापसी की. खेल छोड़ने के बाद मैंने बीपीएड, एमपीएड से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई की. 20 नेशनल पेपर पब्लिश हुए. मेरे गुरु दिनेश जायसवाल जिनके नेतृत्व में बचपन से प्रैक्टिस करती थी, उन्होंने फिर से मुझे हौसला दिया. उन्होंने कहा कि तृप्ति तुम्हें अपनी प्रैक्टिस जारी करनी चाहिए. तुम फिर से खेल की दुनिया में उपलब्धि हासिल कर सकती हो. उनकी हौसला अफजाई करने की वजह से मैंने फिर से प्रैक्टिस शुरू की.

ये भी पढ़ें- मुजफ्फरनगर: सीसीटीवी फुटेज से पहचाने गए तीन उपद्रवी, गिरफ्तार

फिर लाऊंगी गोल्ड मेडल
तृप्ति ने कहा कि देहरादून में नेशनल प्रतियोगिता होनी थी, जिसके कुछ ही दिन पूर्व मैंने हार्ड प्रैक्टिस शुरू की. कठिन परिश्रम और लोगों का आशीर्वाद रहा कि मैं नेशनल में प्रतियोगिता जीती. तमाम फिजिकल प्रॉब्लम्स से भी सामना करना पड़ा, लेकिन इसके बाद गोवा में नेशनल मीट हुआ. वहां भी 100 मीटर की बाधा दौड़ में मैंने गोल्ड मेडल हासिल किया. इसके बाद मलेशिया में 100 मीटर बाधा दौड़ में फिर से गोल्ड मेडल हासिल किया. मेरी इस पूरी यात्रा में सबसे ज्यादा मेरे पति का साथ मिला, जिस वजह से मैं फिर से खेल की दुनिया में आकर यह उपलब्धि हासिल कर सकी. मैं विश्वास व्यक्त करती हूं कि कनाडा में होने वाले एथलेटिक मीट में मैं पुनः 100 मीटर बाधा दौड़ में गोल्ड मेडल हासिल करके आऊंगी.

लखनऊ: एथलीट खिलाड़ी डॉ. तृप्ति सिंह खेल की दुनिया में नाम रोशन करना चाहती थीं, लेकिन उनके पिता तृप्ति को पढ़ा-लिखाकर अफसर बनाना चाहते थे. उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 1981 में जन्मी डॉ. तृप्ति सिंह वर्ष 2000 में खेल की दुनिया से दूर हो गईं. इसके बाद उन्होंने बीपीएड, एमपी, पीएचडी, एमफिल जैसी डिग्रियां हासिल कीं, लेकिन इससे उन्हें संतोष नहीं मिला. उनके मन में खेल की दुनिया में जाने का सपना जीवित रहा.

ईटीवी भारत से बातचीत करतीं डॉ. तृप्ति सिंह.

तृप्ति के गुरु जी ने फोन करके फिर से प्रैक्टिस करने के लिए उन्हें प्रेरित किया. मौका था देहरादून में राष्ट्रीय मास्टर मीट के आयोजन का. उससे कुछ दिनों पूर्व उन्होंने तैयारी शुरू की. नतीजा यह रहा कि तृप्ति ने उत्तर प्रदेश के लिए सर्वाधिक चार मेडल जीते. यहीं से खेल की दुनिया में तृप्ति की फिर से यात्रा शुरू हो गई.

डॉ. तृप्ति के कैरियर पर एक नजर... उन्हीं के शब्दों में
20 साल बाद जब मैंने खेल की दुनिया में दोबारा कदम रखा. प्रतियोगिता में भाग लेने से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से करीब छह माह पूर्व मुलाकात की थी. उस वक्त मुख्यमंत्री जी ने मुझे आशीर्वाद दिया था. उन्होंने कहा था कि मलेशिया में एशियाड खेलने के लिए जा रही हो तो देश के लिए गोल्ड मेडल लेकर ही आना. मैंने उनको दिए वादे के मुताबिक मेहनत की. भगवान ने साथ दिया और गोल्ड मेडल जीतकर आई.

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डॉ. तृप्ति सिंह.

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सीएम योगी से लिया आशीर्वाद
आज मैं पुनः सीएम योगी के पास आई. उन्होंने मुझे फिर से आशीर्वाद दिया है. वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप टोरंटो कनाडा में संपन्न होना है, जिसके लिए मैं फिर से तैयारी कर रही हूं. मुझे पूरी उम्मीद है कि मैं वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में फिर से 100 मीटर बाधा दौड़ में गोल्ड मेडल लेकर आऊंगी. मुझे आज बहुत खुशी हो रही है और सबकी दुआ मेरे साथ है. मैं अपना पूरा दमखम लगाऊंगी कि फिर से भारत देश का झंडा लहरा सकूं.

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टोरंटो से गोल्ड मेडल लाने का वादा.

गुरु ने बढ़ाया हौसला
तृप्ति ने कहा कि यह सब कुछ हासिल करना मेरे लिए बहुत कठिन था. वर्ष 2000 में खेल छोड़ चुकी थी. करीब 20 साल बाद 2019 में खेल में वापसी की. खेल छोड़ने के बाद मैंने बीपीएड, एमपीएड से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई की. 20 नेशनल पेपर पब्लिश हुए. मेरे गुरु दिनेश जायसवाल जिनके नेतृत्व में बचपन से प्रैक्टिस करती थी, उन्होंने फिर से मुझे हौसला दिया. उन्होंने कहा कि तृप्ति तुम्हें अपनी प्रैक्टिस जारी करनी चाहिए. तुम फिर से खेल की दुनिया में उपलब्धि हासिल कर सकती हो. उनकी हौसला अफजाई करने की वजह से मैंने फिर से प्रैक्टिस शुरू की.

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फिर लाऊंगी गोल्ड मेडल
तृप्ति ने कहा कि देहरादून में नेशनल प्रतियोगिता होनी थी, जिसके कुछ ही दिन पूर्व मैंने हार्ड प्रैक्टिस शुरू की. कठिन परिश्रम और लोगों का आशीर्वाद रहा कि मैं नेशनल में प्रतियोगिता जीती. तमाम फिजिकल प्रॉब्लम्स से भी सामना करना पड़ा, लेकिन इसके बाद गोवा में नेशनल मीट हुआ. वहां भी 100 मीटर की बाधा दौड़ में मैंने गोल्ड मेडल हासिल किया. इसके बाद मलेशिया में 100 मीटर बाधा दौड़ में फिर से गोल्ड मेडल हासिल किया. मेरी इस पूरी यात्रा में सबसे ज्यादा मेरे पति का साथ मिला, जिस वजह से मैं फिर से खेल की दुनिया में आकर यह उपलब्धि हासिल कर सकी. मैं विश्वास व्यक्त करती हूं कि कनाडा में होने वाले एथलेटिक मीट में मैं पुनः 100 मीटर बाधा दौड़ में गोल्ड मेडल हासिल करके आऊंगी.

Intro:लखनऊ: एथलीट तृप्ति का योगी से वादा टोरंटो से लाएंगे गोल्ड मेडल लखनऊ। एथलीट खिलाड़ी डॉ तृप्ति सिंह खेल की दुनिया में नाम रोशन करना चाहती थीं। लेकिन उनके पिताजी तृप्ति को पढ़ा लिखा कर अफसर बनाना चाहते थे। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 1981 में जन्मी डॉ तृप्ति सिंह वर्ष 2000 में खेल की दुनिया से दूर हो गयीं। इसके बाद उन्होंने बीपीएड, एमपी, पीएचडी, एमफिल जैसी डिग्रियां हासिल कीं। इससे उन्हें संतोष नहीं मिला। उनके मन में खेल की दुनिया में जाने का सपना जीवित रहा। एक दिन उनके गुरुजी जो वर्षों पूर्व उन्हें प्रैक्टिस कराया करते थे, उन्होंने फोन करके तृप्ति को फिर से प्रैक्टिस करने के लिए प्रेरित किया। मौका था देहरादून में राष्ट्रीय मास्टर मीट के आयोजन का। उससे कुछ दिनों पूर्व उन्होंने तैयारी शुरू की। नतीजा यह रहा कि तृप्ति ने उत्तर प्रदेश के लिए सर्वाधिक चार मेडल जीते। फिर क्या पूछना था। यहीं से खेल की दुनिया में तृप्ति की फिर से यात्रा शुरू हो गयी। एथलीट डॉ तृप्ति ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत की।


Body: डॉ तृप्ति ने कहा कि 20 साल बाद जब मैने खेल की दुनिया में दोबारा कदम रखा। प्रतियोगिता में भाग लेने से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से करीब छह माह पूर्व मुलाकात की थी। उस वक्त मुख्यमंत्री जी ने मुझे आशीर्वाद दिया था। उन्होंने कहा था कि मलेशिया में एशियाड खेलने के लिए जा रही हो तो देश के लिए गोल्ड मेडल लेकर ही आना। उनका मुझे आशीर्वाद मिला था। मैने उनको दिए वादे के मुताबिक मेहनत की। भगवान ने साथ दिया और गोल्ड मेडल जीतकर आई। आज मैने पुनः उनके पास आई। उन्होंने मुझे फिर से आशीर्वाद दिया है। वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप टोरंटो कनाडा में संपन्न होना है। उसके लिए फिर से तैयारी कर रही हूं। मुझे पूरी उम्मीद है कि मै वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में फिर से 100 मीटर बाधा दौड़ में गोल्ड मेडल लेकर आऊंगी। मुझे आज बहुत खुशी हो रही है। सबकी दुआ मेरे साथ है। मै अपना पूरा दमखम लगाऊंगी कि फिर से भारत देश का झंडा लहरा सकूं। यह हासिल करना मेरे लिए बहुत कठिन था। वर्ष 2000 में मै खेल छोड़ चुकी थी। करीब 20 साल बाद 2019 में खेल में वापसी की। खेल छोड़ने के बाद मैने बीपीएड, एमपीएड से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई की। 20 नेशनल पेपर पब्लिश हुए। मेरे गुरु दिनेश जायसवाल सर जिनके नेतृत्व में बचपन से प्रैक्टिस करती थी। उन्होंने फिर से मुझे हौसला दिया। उन्होंने कहा कि तृप्ति तुम्हें अपनी प्रैक्टिस जारी करनी चाहिए। तुम फिर से खेल की दुनिया में उपलब्धि हासिल कर सकती हो। देश के लिए कुछ कर सकती हो। तो उनके हौसला आफजाई करने की वजह से मैने फिर से प्रैक्टिस शुरू की। देहरादून में नेशनल प्रतियोगिता होनी थी। उससे कुछ ही दिन पूर्व मैने हार्ड प्रैक्टिस शुरू की। कठिन परिश्रम और लोगों का आशीर्वाद रहा कि मै नेशनल में प्रतियोगिता जीती। तमाम फिजिकल प्रॉब्लम से भी सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद गोवा में नेशनल मीट हुआ। वहां भी 100 मीटर की बाधा दौड़ में मैने गोल्ड मेडल हासिल किया। इसके बाद मलेशिया में 100 मीटर बाधा दौड़ में फिर से गोल्ड मेडल हासिल किया। अगर हौसला हो, परिवार का साथ मिले, अच्छा गुरु मिले तो कोई भी चीज नामुमकिन नहीं है। मेरी इस पूरी यात्रा में सबसे ज्यादा मेरे पति का साथ मिला। जिसकी वजह से मै फिर से खेल की दुनिया में आकर यह उपलब्धि हासिल कर सकी। अगर मै इस बुलंदी पर पहुंची हूँ। तो इसमें मेरे पति, मेरे ससुराल वालों का, मेरे मायके वालों का, मेरे गुरुजन का, सबका सहयोग रहा है। मै विश्वास व्यक्त करती हूं कि कनाडा में होने वाले एथलेटिक मीट में मै पुनः 100 मीटर बाधा दौड़ में गोल्ड मेडल हासिल करके आऊंगी। भारत का तिरंगे का मान बढ़ाऊंगी। दिलीप शुक्ला, 9450663213


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