लखनऊ: प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं नीति आयोग की श्रेणी में पिछड़ने के बाद आज ईटीवी भारत की टीम ने स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ की हड्डी कही जाने वाली 108 एंबुलेंस सेवा का रियलिटी चेक किया, जिसमें नीति आयोग की श्रेणी में पिछड़ने के कारण सामने आए. रियलिटी चेक में 108 एंबुलेंस समय की पाबंद नहीं नजर आई. पेश है 108 एंबुलेंस पर ईटीवी भारत के रियलिटी चेक की खास रिपोर्ट.
उत्तर प्रदेश में स्वास्थ सेवाओं की रीढ़ की हड्डी कही जाने वाली 108 एंबुलेंस सेवा को लेकर तमाम दावे और वादे किए जाते हैं. इन्हीं दावों को जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने 108 एंबुलेंस सेवा की जांच-पड़ताल कर इससे जुड़ी तमाम जानकारी सामने लाने का जिम्मा उठाया. हमने अपने संवाददाता को एक डमी मरीज के तौर पर तैयार किया. बुधवार सुबह 10:45 बजे के आसपास 108 एंबुलेंस को कॉल कर यह जानकारी दी गई कि हमारे साथी को सीने में दर्द की शिकायत है. सूचना देने के बाद हम एंबुलेंस के आने का इंतजार करने लगे.
एंबुलेंस ड्राइवर को नहीं होता रास्ते का पता
इस दौरान 108 एंबुलेंस के कॉल सेंटर और एंबुलेंस ड्राइवर के बीच हुई बातचीत में स्वास्थ्य विभाग की पहली कमी का पता चला. एंबुलेंस ड्राइवर अपनी नई जॉइनिंग का हवाला देकर यह कहते हैं कि उन्हें मरीज तक पहुंचने के लिए रास्ता नहीं पता है. बातचीत में यह भी मालूम चलता है कि इस आधुनिक समय में एंबुलेंस में जीपीएस और एसी की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है.
45 मिनट बाद पहुंची एंबुलेंस
इस दौरान करीब आधे घंटे से अधिक समय तक हम एंबुलेंस आने का इंतजार करते रहे. इसके बाद फिर से 108 नंबर पर कॉल करके पूरी जानकारी पुन: दी जाती हैं. कॉल सेंटर से आश्वासन मिलता है कि एंबुलेंस हम तक पहुंच रही है. सूचना देने के 45 मिनट बाद 11:31 बजे पर हमारे पास दूसरी एंबुलेंस पहुंचती है. एंबुलेंस आने के बाद हम अपने डमी मरीज को एंबुलेंस में ले जाते हैं.
एंबुलेंस में नहीं लगा होता जीपीएस और एसी
एंबुलेंस से मरीज को ले जाते समय पता चलता है कि एंबुलेंस में जीपीएस और एसी नहीं होता है. इस वजह से हमारे मरीज को एंबुलेंस में उलझन सी महसूस होती है. एंबुलेंस में चालक कृष्णपाल और ईएमटी कर्मचारी के रूप मे धर्मवीर मौजूद होते हैं. धर्मवीर से बातचीत में यह बात भी पता चली कि 108 एंबुलेंस में जीपीएस और एसी जैसी सुविधाएं मिलने की सिर्फ बातें हो रही हैं. यह सुविधाएं एंबुलेंस कर्मचारी तक पहुंच नहीं पा रही हैं.
एक घंटे से अधिक समय में अस्पताल पहुंचा मरीज
इन हालातों से यह तो साफ हो जाता है कि एंबुलेंस सेवाएं पूरी तरह से लोगों तक समुचित तरीके से नहीं पहुंच पा रही हैं. इसके बाद रास्ते में हम शहर के कई चौराहों पर जाम से निकलते हुए लारी हॉस्पिटल 11:55 बजे पहुंच पाते हैं. इस दौरान दिल के मरीज को एक घंटे से अधिक का समय 108 एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचने में लग जाता है, जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस आदेश की भी धज्जियां उड़ाता दिख रहा है, जिसमें वह एंबुलेंस के समय से पहुंचने की बात करते हैं.
मरीज के बजाय रिपोर्ट देखतें हैं डॉक्टर
जब हम लारी कॉर्डियोलॉजी की इमरजेंसी में मरीज को लेकर पहुंचते हैं तो हर सरकारी अस्पताल की तरह यहां भी सवाल सामने आता है कि पहले पर्चा लेकर आइए. हालांकि हम किसी तरह अपने मरीज को 10 मिनट की मशक्कत के बाद अंदर ले जाते हैं, जहां डॉक्टर अपनी प्राथमिक जांच शुरू करते हैं, जिसमें सबसे पहले ईसीजी की जांच की जाती है. ईसीजी रिपोर्ट देखने के बाद हमारे मरीज को बिना देखे वहां से जाने को बोल दिया जाता है. जब हम डॉक्टर तनवीर से मरीज को देखने को कहते हैं तो डॉ. तनवीर आक्रामक रूप में आकर हमें वहां से चले जाने को बोल देते हैं.
रियलटी चेक ने खोली स्वास्थ्य विभाग के वादों की पोल
108 एंबुलेंस सेवा पर ईटीवी भारत के रियलिटी चेक ने स्वास्थ्य विभाग की सेवाओं पर कई सवाल खड़े किए हैं. 108 एंबुलेंस सेवा की लापरवाही उन सभी तमाम दावों और वादों की पोल खोलती है और उन सभी लोक लुभावने वादों की काली सच्चाई भी सामने लाती है, जो योगी सरकार बड़े गर्व के साथ बेहतर होने की बात कहती है. इस रियलिटी चेक से यह तो साफ हो गया कि सरकारी हुक्मरान आम जनमानस की सेहत को लेकर कितने संजीदा और तत्पर हैं.