लखनऊ : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी हो या फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह क्षेत्र गोरखपुर कब्जेदरों ने हर जगह पर चरागाह की भूमि पर कब्जा कर रखा है. यही नहीं प्लाटिंग कर ऐसी जमीनों को बेच भी दिया है. अब इन जमीनों को खाली कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है, क्योंकि इन जमीनों पर भवन का निर्माण तक हो चुका है. हालांकि पशुधन एवं दुग्ध विकास विभाग के अधिकारियों का दावा है कि जुलाई से लेकर अगस्त तक गोचर भूमियों का चिन्हांकन कर कब्जा मुक्त कराए जाने को लेकर जो अभियान चलाया गया उसके काफी सकारात्मक परिणाम आए हैं. हजारों हेक्टेयर जमीन प्रदेश भर में अब तक खाली कराई जा चुकी है. "ईटीवी भारत" के सवाल पर अपर मुख्य सचिव पशुधन एवं दुग्ध विकास विभाग रजनीश दुबे का कहना है कि अभी तक 21 हजार एकड़ जमीन खाली करा ली गई है और यह सिलसिला जारी है.
बीते जुलाई माह में उत्तर प्रदेश के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने सभी जिलों के जिलाधिकारियों को यह निर्देश दिए थे कि चारागाह की भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराते हुए इस भूमि पर मनरेगा और अन्य सीएसआर मद का उपयोग करते हुए हरा चारा (नैपियर घास ) का उत्पादन किया जाए. इसके लिए 11 जुलाई से 25 अगस्त तक 45 दिन का विशेष अभियान प्रारम्भ किया गया था. मंगलवार को प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जब ईटीवी भारत ने मंत्री से सवाल किया कि इस अभियान के दौरान अब तक कितनी जमीन को मुक्त कराया गया है और किस जिले में सबसे ज्यादा चारागाह भूमि कर कब्जा है, इस पर मंत्री के बजाय अपर मुख्य सचिव ने जवाब दिया. हालांकि उनका जवाब भी संतोषजनक नहीं है. अभी तक जो चारागाह की जमीन मुक्त करने की कार्रवाई की गई है वह काफी धीमी नजर आ रही है.
नियुक्त किए गए थे नोडल अधिकारी : डॉ. रजनीश दुबे, डॉ. शशि भूषण लाल सुशील, शिव सहाय अवस्थी, देवेंद्र कुमार पांडेय, रामसहाय, डॉ. नीरज गुप्ता, कुणाल सिल्कू, डॉ. इंद्रमणि, डॉ. राकेश पांडेय. उक्त अधिकारियों पर गोरखपुर, वाराणसी, , लखनऊ, कानपुर,आजमगढ़, बस्ती, झांसी, चित्रकूट, विंध्याचल, प्रयागराज, मेरठ, सहारनपुर, बरेली, मुरादाबाद, आगरा, अलीगढ़, अयोध्या, देवीपाटन मंडलों से जमीनें खाली कराने का जिम्मा था.
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