लखनऊ : राजधानी लखनऊ में कर्मचारी राज्य बीमा निगम (अस्पताल) स्थित है जहां पर कर्मचारी अपने और अपने परिजनों के इलाज के लिए पहुंचते हैं. कई बार तो उन्हें इलाज मिल जाता है, लेकिन कई बार उन्हें हताश होकर महंगे अस्पतालों में इलाज कराना पड़ता है. ईएसआई स्कीम के तहत कई केंद्र शासित प्रदेशों और राज्यों में सरकार 150 से अधिक हॉस्पिटल और डिस्पेंसरी हैं. इसमें कर्मचारी और उनके परिवार के सदस्यों को मुफ्त इलाज की सुविधा मिलती है. इस स्कीम के तहत बीमारी के दौरान छुट्टी पर कर्मचारियों को 91 दिनों के लिए नकद भुगतान किया जाता है.
मरीजों की लगती है लंबी लाइन : ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान मरीजों ने अपनी परेशानियां साझा कीं. एक मरीज ने कहा कि यहां पर आने का मतलब घंटों इलाज के लिए इंतजार करना फिर चाहे मरीज की स्थिति कितनी भी खराब क्यों न हो. तीन से चार घंटे लाइन में लगकर ही इलाज मिलता है. यहां पर मरीजों की काफी संख्या होती है. ऐसे में काउंटर कम होने के चलते मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. सिर्फ एक पर्चा काउंटर है. दवा काउंटर भी एक ही है. जिस वजह से ज्यादा परेसानी होती है. एक सिस्टम पर ओवरलोड होने के चलते आए दिन सर्वर ठप हो जाता है. सर्वर ठप होने के बाद मैन्युअल पर्चा नहीं बनने के कारण भी काफी दिक्कत होती है. गंभीर मरीज को घंटों दर्द से तड़पना पड़ता है. अगर सर्वर नहीं ठीक होता है तो बगैर इलाज के वापस घर लौटना पड़ता है.
इलाज नहीं तो कंपनियां क्यों काटती हैं पैसा : सही तरीके से इलाज न मिलने से परेशान मरीजों ने ईटीवी भारत से खुलकर बात की. कुछ मरीजों ने कहा कि यहां पर बहुत ज्यादा भीड़ होती है और पर्चा काउंटर एक है. जिसकी वजह से दिक्कत होती है तो वहीं कुछ मरीजों ने कहा कि यहां पर जांच नहीं होती है. मशीन ही खराब रहती है. बहुत से मरीज ने तो यह तक कह दिया कि जब ईएसआई में बेहतर चिकित्सा सुविधा ही नहीं है तो हर महीने कंपनी किस बात के लिए सैलरी का एक हिस्सा काटती है. कभी-कभी तो छोटी बीमारियों के इलाज के लिए भी मारामारी हो जाती है. इसके अलावा बहुत से मरीज ने कहा कि जब इलाज न मिलने के कारण किसी उच्चाधिकारी से मिलने की कोशिश करते हैं तो गार्ड अधिकारी से मिलने भी नहीं देते हैं और जब मिलते हैं तो अधिकारी गलत तरीके से बात करते हैं.
रेफर न करने से बढ़ रही समस्या : एक मरीज ने बताया कि इस समय अन्य अस्पताल में मरीज को रेफर नहीं कर रहे हैं कुछ केस में कर देते हैं, लेकिन बहुत सारे केस में नहीं कर रहे हैं. अस्पताल में इलाज करने पहुंचे एक तीमारदार ने कहा कि एक साल पहले उनकी शादी हुई थी. पत्नी की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है. वह ईएसआई के तहत आते हैं. उनकी पत्नी के गॉलब्लैडर में पथरी है. जब वह यहां पर इलाज के लिए आए तो पता चला कि यहां पर लेजर तकनीक से ऑपरेशन नहीं होता है. इसलिए रेफर की मांग की, लेकिन यहां से रेफर नहीं किया जा रहा है. जिसकी वजह से बहुत दिक्कत हो रही है. पत्नी भी दर्द से परेशान है. निजी अस्पताल में इलाज कर सके इतना अधिक पैसा नहीं है.
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