लखनऊ : जल निगम की वित्तीय हालत सुधारने के लिए सरकार ने निगम को ग्रामीण और शहरी दो भागों में बांट दिया था. मगर वित्तीय हालत सुधरने के लिए किए गए इस निर्णय का कोई असर देखने को नहीं मिल रहा है, जिसके विरोध में कर्मचारियों ने काला फीता बांधकर विरोध किया और बीते कई महीने से रुकी हुये वेतन व अन्य भत्ते देने की मांग की है और मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगाई है.
उत्तर प्रदेश के नगरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में जल आपूर्ति, सीवरेज व नदियों के प्रदूषण नियंत्रण के लिए निर्माण कार्य जल निगम द्वारा कराए जाते हैं. जल निगम को ग्रामीण और शहरी दो भागों में बांटे जाने के बाद से यह काम प्रभावित हुए हैं. इस दौरान जल निगम के पूर्व प्रबन्ध निर्देशक अनूप कुमार सक्सेना ने कहा कि बीते एक वर्ष में जल निगम (नगरीय) एवं जल निगम (ग्रामीण) द्वारा कोई उल्लेखनीय प्रगति हासिल नहीं हो पाई है. जिसकी वजह से निगम की वित्तीय हालत और भी बुरी हो गई है. उन्होंने बताया कि इस दौरान जल जीवन मिशन जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम के अन्तर्गत जल योजनाओं में विगत एक वर्ष में मात्र 4 प्रतिशत की उपलब्धि ही मिली है. साथ ही ग्रामीण और शहरी दो भागों में बांटे जाने के बाद निगम पर विभिन्न आर्थिक लोड पड़ा है. इतना ही नहीं विभिन्न शासकीय विभागों पर जल निगम की बकाया धनराशि 770 करोड़ हो गई है. विगत 3 से 4 माह से कार्मिकों के वेतन, पेंशन, छठे वेतनमान व अन्य मदों का भुगतान भी बकाया चल रहा है. जल निगम के विभक्तीकरण के निर्णय को पूर्णतया असफल बताते हुए जल निगम को पूर्व की भांति पुनः एकीकृत करने की मांग की है.
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