लखनऊ : देश में लोकसभा के चुनाव वर्ष 2024 में प्रस्तावित हैं. इसलिए सीटों के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सभी दल अभी से अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गए हैं. देश और प्रदेश की सत्ता में होने के कारण भाजपा की तैयारी सबसे आगे दिखाई दे रही है. हालांकि अन्य विपक्षी दल भी अपनी रणनीति के अनुसार आगे बढ़ रहे हैं. उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी लगातार जिलों के दौरे कर रहे हैं. सपा में संगठन पुनर्गठन की भी तैयारी चल रही है. कांग्रेस ने कुछ माह पूर्व ही प्रदेश को संगठन अध्यक्ष के साथ पांच क्षेत्रीय अध्यक्ष भी दिए हैं, जिनमें जातीय समीकरणों का भी खासतौर पर ध्यान रखा गया है. बसपा अध्यक्ष मायावती भी लगातार बैठकें कर रही हैं. उन्होंने भी प्रदेश संगठन को नया अध्यक्ष देकर चुनावी तैयारी तेज कर दी है. स्वाभाविक है कि आने वाले दिनों में प्रदेश में चुनावी अखाड़ा सज जाएगा, जहां हर दल दूसरे को पछाड़ने के लिए जी तोड़ कोशिश करेगा.
यूपी में लोकसभा चुनाव पर चर्चा पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ था. इस चुनाव में जहां समाजवादी पार्टी का सत्ता में आने का सपना टूटा, वहीं बसपा और कांग्रेस जैसे दलों को दुर्गति का सामना पड़ा. दोनों ही दल अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच गए, जहां कांग्रेस को दो तो बसपा को महज एक सीट हासिल हुई. विधान परिषद से इन दोनों ही दलों का नेतृत्व भी खत्म हो गया. ऐसे में सभी विपक्षी दलों को यह समझ में आ चुका है कि यदि भाजपा से मुकाबला लेना है, तो तैयारी भी आला दर्जे की होनी चाहिए. लोकसभा चुनावों से पहले निकाय चुनाव भी होने हैं. ऐसे में सभी दलों के दावों का नतीजा इन चुनावों में ही देखने को मिल सकता है. भाजपा के बारे में कहा जाता है कि वह हमेशा चुनाव की तैयारी में रहती है, यह दिखाई भी देता है. सपा भी मैनपुरी लोकसभा का उप चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीतकर उत्साह में है और अखिलेश-शिवपाल मिलकर भाजपा से मुकाबिल होने के लिए कड़ी तैयारी कर रहे हैं. हालांकि स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे सपा नेता गैर जरूरी विवादित बयान देकर पार्टी को असहज करने का कोई मौका नहीं छोड़ते. कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश में नेतृत्व भले ही दे दिया है, लेकिन विधान सभा चुनावों में प्रभारी रहीं प्रियंका गांधी का चुनाव बाद प्रदेश आगमन नहीं हो पा रहा है. स्वाभाविक है कि जनता ऐसे नेताओं को पसंद नहीं करती जो चुनाव के मौके पर ही प्रकट होते हैं. ऐसे नया नेतृत्व पार्टी को कितनी सफलता दिला पाएगा, कहना कठिन है. वहीं बहुजन समाज पार्टी के नेतृत्व के काम करने का अपना तरीका है. बसपा कैडर बेस पार्टी होने के कारण अपने आधार वोट को साधने का प्रयास कर रही है, लेकिन अन्य वर्गों को लुभाने में वह कितनी कामयाब होगी, अभी यह बता पाना मुश्किल है.
यूपी में लोकसभा चुनाव पर चर्चा राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन कहते हैं 'सभी राजनीतिक दल अपने संगठनात्मक ढांचे के अनुरूप काम करते हैं. चूंकि भाजपा ने प्रदेश की सभी अस्सी लोक सभा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है, अभी फिलहाल वह इस लक्ष्य पर नहीं हैं. पिछले चुनाव में वह 14 सीटें हार गए थे. ऐसी स्थिति में वह हारी हुई सीटों पर मंथन कर रहे हैं. ऐसी सीटों पर भाजपा अपने बड़े नेताओं को लगा रही है.' वह कहते हैं 'अभी जो भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक हुई है, उसमें एक नया एजेंडा और ऐप आ गया है, जिसके माध्यम से वह अपनी सरकार की उपलब्धियों को आम लोगों तक ले जाकर जुड़ने वाले हैं.'
यूपी में लोकसभा चुनाव पर चर्चा मनमोहन कहते हैं 'जहां तक विपक्ष की रणनीति की बात है, तो विपक्ष की भी अपनी-अपनी तैयारी होती है. भाजपा केंद्र और प्रदेश की सत्ता में है, इसलिए उनके पास संसाधन अधिक हैं. विपक्ष के संसाधन सीमित हैं और उनकी अपनी रणनीति है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी अब जिले-जिले का दौरा करके संगठन से लेकर जमीनी कार्यकर्ताओं को जोड़ने की कोशिश में जुटे हुए हैं. पार्टी पदाधिकारियों और पूर्व विधायकों, पूर्व मंत्रियों आदि से भी संपर्क बना रहे हैं. वर्ष 2024 उनका भी लक्ष्य है. सपा भी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना चाहेगी. जहां तक बहुजन समाज पार्टी का सवाल है, मायावती भी अब धीरे-धीरे अपनी पार्टी की गति को बढ़ा रही हैं. यही कारण है कि अब उन्होंने पिछड़ों के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी पर हमला बोला है. मायावती कहती हैं कि चुनाव में यादवों को छोड़कर कोई भी सपा के साथ गया नहीं.' वह कहते हैं 'हर पार्टी का एक नजरिया होता है, अपना एक वोट बैंक है. उस वोट बैंक को साधने और समीकरण बैठाने के लिए वह कहीं न कहीं अपने कार्यक्रम तय करते हैं.'
यूपी में लोकसभा चुनाव पर चर्चा राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन कहते हैं 'यदि कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस भी भारत जोड़ो अभियान के जरिए एक मैसेज दे रही है कि हम ही हैं, जो भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ लड़ सकते हैं और देश को नेतृत्व दे सकते हैं. काफी हद तक यह माना भी जाता है कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है और राष्ट्रीय फलक पर सभी राज्यों उनका प्रभाव है, तो उनका भी दावा हो सकता है. हालांकि उप्र में उनका दावा इतना मजबूत नहीं है. हालांकि भारत जोड़ो यात्रा द्वारा उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस अपना प्रभाव बढ़ाना चाह रही है. अभी कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ पांच प्रांतीय अध्यक्ष भी बनाए हैं और उनमें जातीय समीकरणों को भी बांधा है. स्वाभाविक है कि कांग्रेस की भी अपनी रणनीति है.' वह कहते हैं 'भारतीय जनता पार्टी की ताकत थोड़ा ज्यादा है विपक्ष के मुकाबले. इसलिए वह ज्यादा दिखाई पड़ती है. '
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