लखनऊ : प्रदेश में नोएडा, गाजियाबाद, लखनऊ, कानपुर और आगरा में मेट्रो सेवा शुरू हो चुकी है, जबकि गोरखपुर के लिए डीपीआर बनकर तैयार है. राजधानी लखनऊ में मेट्रो का वाणिज्यिक संचालन पांच सितंबर 2017 को शुरू हुआ था, लेकिन दूसरे कॉरिडोर के लिए आज तक काम शुरू नहीं हो पाया है. यही कारण है कि आज तक लखनऊ मेट्रो घाटे में चल रही है. उन अन्य शहरों में जहां दूसरा कॉरिडोर नहीं बन पाया है, वहां का भी यही हाल है. केंद्र सरकार के नौ साल और उत्तर प्रदेश सरकार के छह साल पूरे होने पर भाजपा सरकार अपनी उपलब्धियां गिनाने में लगी है, जिसमें मेट्रो संचालन का श्रेय भी खूब लिया जा रहा है, लेकिन लगातार हो रहे इस घाटे का जिम्मेदार कौन होगा?
लखनऊ मेट्रो के पहले चरण में रेड लाइन (उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर) का संचालन चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से लेकर मुंशी पुलिया मेट्रो स्टेशन तक नौ मार्च 2019 को शुरू किया गया था. इक्कीस स्टेशन (17 एलिवेटेड और चार अंडरग्राउंड) वाले इस रूट पर मेट्रो 22.87 किलो मीटर दौड़ती है. इस रूट पर प्रतिदिन लगभग सत्तर हजार लोग यात्रा करते हैं. पहली मेट्रो सुबह छह बजे शुरू होती है और आखिरी रात दस बजे छूटती है. इस रूट का न्यूनतम किराया 10 रुपये और अधिकतम 60 रुपये है. यह शहर का सबसे सस्ता किराए वाला साधन होने के बावजूद लगातार घाटे में है, क्योंकि सरकार और प्रशासन ने कभी इसे घाटे से उबारने वाले उपाय नहीं किए.
ब्लू लाइन (पूरब-पश्चिम कॉरिडोर) के लिए प्रस्ताव बहुत पहले दिया जा चुका है और इसकी डीपीआर भी तैयार है, बावजूद इसके इस कॉरिडोर पर आज तक काम शुरू नहीं किया जा सका है. चारबाग स्टेशन से शुरू होकर वसंतकुंज योजना तक जाने वाली इस मेट्रो लाइन पर बारह स्टेशन होंगे, जिनमें छह एलिवेटेड और छह अंडरग्राउंड बनाए जाएंगे. इनमें चारबाग रेलवे स्टेशन, गौतमबुद्ध मार्ग, अमीनाबाद, पांडेयगंज, सिटी रेलवे स्टेशन, चिकित्सा विश्वविद्यालय चौराहा, नवाबगंज, ठाकुरगंज, बालागंज, सरफराजगंज, मूसाबाग और वसंतकुंज शामिल हैं. यदि यह दूसरा रूट शुरू हो जाता हो मेट्रो घाटे के बजाय फायदे का सौदा साबित होती, लेकिन फिलहाल इस ओर कोई उम्मीद दिखाई नहीं देती. हां, ऐसा लगता है कि सरकार ज्यादा से ज्यादा शहरों में मेट्रो की सेवा आरंभ कर चुनावी लाभ जरूर लेना चाहती है.
राजनीतिक विश्लेषक विमलेश शर्मा कहते हैं 'प्रदेश में मेट्रो रेल को राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने वाला हथियार मान बैठे हैं. चाहें समाजवादी पार्टी हो या भारतीय जनता पार्टी. 2017 के चुनाव से पहले हम सभी ने देखा था कि कैसे आधे-अधूरे काम का उद्धाटन करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव किस कदर उतावले थे. यही स्थिति भाजपा सरकार की भी है. इतने शहरों में मेट्रो शुरू करने से अच्छा था कि किन्हीं एक-दो शहरों में पूरी तरह सभी रूट बनाकर संचालन शुरू करते. इससे मेट्रो को लाभ होता और जनता का पैसा बर्बाद होने से बच जाता. जिन शहरों में आधा-अधूरा मेट्रो संचालन शुरू हुआ है, उनमें सभी रूट चालू होने में न जाने कितना समय लग जाएगा, तब तक यूपी मेट्रो को घाटा झेलना होगा.'
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