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तेज करने होंगे गंगा संरक्षण के प्रयास, तभी सुधर पाएगी सूरत - UP bureau chief Alok Tripathi

देव नदी गंगा की सफाई और संरक्षण का दम भरने वाली राजनीतिक पार्टी को शायद अब इस मुद्दे से इस्तेफाक नहीं रहा. बीते कई चुनावों में गंगा को निर्मल बनाने को लेकर जोर शोर से नारे गढ़े गए और सत्ता में काबिज होने के बाद कई प्लान बनाए गए, लेकिन यह प्लान और दावे पिछली सरकारों की भांति केवल हवाई साबित हुए. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण...

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Published : Jan 7, 2023, 7:59 AM IST

Updated : Jan 7, 2023, 8:39 AM IST

निर्मल गंगा अभियान.
निर्मल गंगा अभियान.

लखनऊ : कई दशकों से गंगा को निर्मल (Efforts to make Ganga clean) बनाने की कोशिशें की जा रही हैं. यह बात और है कि यह कोशिशें अभी परवान नहीं चढ़ सकी हैं. वर्ष 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा सफाई को अपना ड्रीम प्रोजेक्ट माना. गंगा को निर्मल बनाने के लिए तमाम कोशिशें की गईं और सैकड़ों करोड़ का बजट भी आवंटित किया गया. वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार चुनकर आई. वर्ष 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार फिर लौटी, तो वहीं वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा सरकारों की वापसी हुई. इसके बावजूद गंगा सफाई के मामले में उतना काम नहीं हो सका, जिसकी उम्मीद की जा रही थी. इसे देखते हुए गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट को तल्ख टिप्पणी करते हुए महाधिवक्ता को अदालत में बुलाया. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि सरकार गंगा की सफाई कर नहीं रही या करना नहीं चाहती? स्वाभाविक है कि गंगा सफाई की मुहिम में खामी तो जरूर है.

निर्मल गंगा अभियान.
निर्मल गंगा अभियान.

केंद्र की भाजपा सरकार ने गंगा को प्रदूषण मुक्त (pollution free ganga) कराने के लिए 'नमामि गंगे' (Namami Gange) नाम से एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन (Ganga Conservation Mission) की शुरुआत की थी. इसके तहत उत्तराखंड के गंगोत्री से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल तक गंगा में प्रदूषण और नालों आदि का गिरना रोका जा सके. इसके लिए गंगा सफाई के लिए त्रिस्तरीय योजना बनाई गई, जिसके तहत शुरुआती प्रयास, पांच साल तक लागू की जाने वाली मध्यावधि की गतिविधियां और दस साल में लागू की जाने वाली दीर्घकालिक गतिविधियां शामिल हैं. प्रथम स्तर पर नदी के ठोस कचरे की सफाई, शौचालयों का निर्माण, शव दाह स्थलों का नवीनीकरण और निर्माण, लोगों को जागरूक करना, घाटों का निर्माण आदि के काम किए जाने थे, जबकि मध्यावधि के प्लान में शहरी नालों और औद्योगिक कचरे को सीधे नदी में जाने से रोकने के उपाय किए जाने थे. वहीं दीर्घकालिक योजना में वित्तीय प्रबंध और बड़े वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट आदि लगाए जाने की योजना थी. इसी के तहत घाटों पर पौधरोपण कराना, जैवविविधता का ध्यान रखना और जल प्रदूषण की लगातार निगरानी करने की व्यवस्था की जानी है.

निर्मल गंगा अभियान.
निर्मल गंगा अभियान.

जाहिर है कि यह काम बहुत आसान नहीं है. इसके लिए बहुत बड़े स्तर पर मानव संसाधन और जन सहयोग के साथ-साथ अलग-अलग राज्यों से तालमेल, उद्योगों का सहयोग आदि भी जरूरी है. हिमालय से निकल कर गंगासागर में मिलने तक यह नदी ढाई हजार किलोमीटर की यात्रा करती है. इसके तटों पर 29 बड़े शहर, 23 छोटे शहर और 48 कस्बे बसे हैं. करोड़ों लोगों की आबादी से निकलने वाले नाले और उद्योगों का कचरा गंगा में प्रवाहित होता है. इसे अचानक रोका नहीं जा सकता. फिर भी व्यवस्था बनाने में जितना समय लगना चाहिए और सरकार गंगा सफाई को लेकर जो दावे कर रही है, उनमें सच्चाई दिखाई नहीं देती. निश्चित रूप से नदी की सफाई के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी भी है. उत्तराखंड, यूपी, हिमाचल, हरियाणा, बिहार और झारखंड आदि राज्यों के तमाम सहायक नदियां भी गंगा में मिलती हैं. जब तक इन सहायक नदियों को स्वच्छ नहीं बनाया जाएगा गंगा भी साफ नहीं हो पाएगी. इस दिशा में अब तक बहुत ही कम काम हुए हैं.

निर्मल गंगा अभियान.
निर्मल गंगा अभियान.

26 जुलाई 2022 को भाजपा सांसद वरुण गांधी ने गंगा सफाई पर सवाल उठाते हुए ट्वीट किया था 'गंगा हमारे लिए सिर्फ नदी नहीं, 'मां' है. करोड़ों देशवासियों के जीवन, धर्म और अस्तित्व का आधार है मां गंगा. इसलिए नमामि गंगे पर 20,000 करोड़ का बजट बना. 11,000 करोड़ खर्च के बावजूद प्रदूषण क्यों? गंगा तो जीवनदायिनी (life giving ganga) है, फिर गंदे पानी के कारण मछलियों की मौत क्यों? जवाबदेही किसकी?' स्वाभाविक है कि सरकार को इन सवालों के जवाब देने होंगे. यदि उत्तर प्रदेश की बात करें तो 2019 के महाकुंभ मेले में 24 करोड़ श्रद्धालुओं ने प्रयागराज स्थित संगम तट पर डुबकी लगाई थी, तब मेले के आयोजन पर 4200 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. वहीं 2025 में लगने वाले कुंभ मेले के लिए सरकार ने 6800 करोड़ रुपये खर्च करने का बजट रखा है. इससे समझा जा सकता है कि गंगा और इसके तट पर लगने वाले मेले का भारतीय समाज और बहुसंख्यक हिंदुओं के लिए क्या महत्व है. जब सरकार आयोजनों पर सैकड़ों करोड़ खर्च कर सकती है, तो गंगा को निर्मल बनाने के लिए क्यों नहीं?

निर्मल गंगा अभियान.
निर्मल गंगा अभियान.

22 जुलाई 2022 को एनजीटी ने राष्ट्रीय गंगा परिषद (National Ganga Council) की रिपोर्ट के आधार पर कहा था कि इतनी घोषणाों के बाद भी जुलाई 2022 तक पांच प्रमुख गंगा प्रवाह वाले राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में गंगा नदी में 60 फीसदी बिना उपचार वाले सीवेज की निकासी जारी है. एनजीटी ने अपनी रिपोर्ट में पाया था कि गंगा प्रवाह वाले राज्यों में एसटीपी और सीईटीपी न सिर्फ 60 फीसदी तक कम हैं, बल्कि अपनी क्षमताओं से भी कम काम कर रहे हैं. एनजीटी की यह रिपोर्ट सरकारी तंत्र की उदासीनता की ओर इंगित करती है. इसलिए देश की 40 फीसद आबादी को उर्वरा भूमि और पानी देने वाली करोड़ों लोगों की आस्था की प्रतीक एक नदी के संरक्षण और निर्मलीकरण की योजनाओं पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है.

पर्यावरण और नदी विशेषज्ञ प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता.
पर्यावरण और नदी विशेषज्ञ प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता.

इस संबंध में पर्यावरण और नदी विशेषज्ञ प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता (Environment and river expert Professor Venkatesh Dutta) कहते हैं 'शहरी आर्थिक और औद्योगिक क्षेत्रों से मीठे पानी की लगातार बढ़ती मांग और संरचनात्मक नियंत्रण के कारण गंगा का पारिस्थितिकी तंत्र (ganga ecosystem) प्रभावित हो गया है. गंगा पुनर्जीवन और संरक्षण के चार संरचनात्मक स्तंभों में निरंतर प्रवाह, प्रवाह, भूवैज्ञानिक विशेषताओं का संरक्षण और जलीय जैव विविधता का संरक्षण शामिल हैं. इसलिए यह समझ लेना चाहिए कि इन चार बिंदुओं को एकीकृत किए बिना गंगा की सफाई का सपना साकार नहीं हो सकता.' वह कहते हैं 'लगभग तीन दशकों तक गंगा को साफ करने की अलग-अलग नीतियां अपनाई गईं. इनमें गंगा एक्शन प्लान और राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (Ganga Action Plan and National Ganga River Basin Authority) की स्थापना आदि प्रयास शामिल थे, लेकिन इनके ठोस नतीजे सामने नहीं आ सके. इसलिए स्मार्ट शहर के विकास के नाम पर नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के बुनियादी ढांचे के विकास और विनाश को रोका जाना चाहिए, ताकि जल स्रोतों की रक्षा और उनका संरक्षण किया जा सके.' प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता (Professor Venkatesh Dutta) कहते हैं 'गंगा को जल देने वाली सहायक नदियों की अनदेखी कर दी गई है. गंगा की आठ प्रमुख सहायक नदियां गोमती, घाघरा, यमुना, सोन, रामगंगा, गंडक, दामोदर और कोसी का संरक्षण भी बहुत जरूरी है. हालांकि छोटी नदियां उपेक्षित हैं. इसलिए उन्हें प्रदूषण से बचाने की योजनाएं भी नजरअंदाज हो जाती हैं.'

यह भी पढ़ें : अखिलेश यादव ने कहा, विकास की दौड़ में यूपी पिछड़ा, जनता को झूठे सब्जबाग दिखा रही भाजपा सरकार

निर्मल गंगा अभियान.
निर्मल गंगा अभियान.

लखनऊ : कई दशकों से गंगा को निर्मल (Efforts to make Ganga clean) बनाने की कोशिशें की जा रही हैं. यह बात और है कि यह कोशिशें अभी परवान नहीं चढ़ सकी हैं. वर्ष 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा सफाई को अपना ड्रीम प्रोजेक्ट माना. गंगा को निर्मल बनाने के लिए तमाम कोशिशें की गईं और सैकड़ों करोड़ का बजट भी आवंटित किया गया. वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार चुनकर आई. वर्ष 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार फिर लौटी, तो वहीं वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा सरकारों की वापसी हुई. इसके बावजूद गंगा सफाई के मामले में उतना काम नहीं हो सका, जिसकी उम्मीद की जा रही थी. इसे देखते हुए गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट को तल्ख टिप्पणी करते हुए महाधिवक्ता को अदालत में बुलाया. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि सरकार गंगा की सफाई कर नहीं रही या करना नहीं चाहती? स्वाभाविक है कि गंगा सफाई की मुहिम में खामी तो जरूर है.

निर्मल गंगा अभियान.
निर्मल गंगा अभियान.

केंद्र की भाजपा सरकार ने गंगा को प्रदूषण मुक्त (pollution free ganga) कराने के लिए 'नमामि गंगे' (Namami Gange) नाम से एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन (Ganga Conservation Mission) की शुरुआत की थी. इसके तहत उत्तराखंड के गंगोत्री से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल तक गंगा में प्रदूषण और नालों आदि का गिरना रोका जा सके. इसके लिए गंगा सफाई के लिए त्रिस्तरीय योजना बनाई गई, जिसके तहत शुरुआती प्रयास, पांच साल तक लागू की जाने वाली मध्यावधि की गतिविधियां और दस साल में लागू की जाने वाली दीर्घकालिक गतिविधियां शामिल हैं. प्रथम स्तर पर नदी के ठोस कचरे की सफाई, शौचालयों का निर्माण, शव दाह स्थलों का नवीनीकरण और निर्माण, लोगों को जागरूक करना, घाटों का निर्माण आदि के काम किए जाने थे, जबकि मध्यावधि के प्लान में शहरी नालों और औद्योगिक कचरे को सीधे नदी में जाने से रोकने के उपाय किए जाने थे. वहीं दीर्घकालिक योजना में वित्तीय प्रबंध और बड़े वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट आदि लगाए जाने की योजना थी. इसी के तहत घाटों पर पौधरोपण कराना, जैवविविधता का ध्यान रखना और जल प्रदूषण की लगातार निगरानी करने की व्यवस्था की जानी है.

निर्मल गंगा अभियान.
निर्मल गंगा अभियान.

जाहिर है कि यह काम बहुत आसान नहीं है. इसके लिए बहुत बड़े स्तर पर मानव संसाधन और जन सहयोग के साथ-साथ अलग-अलग राज्यों से तालमेल, उद्योगों का सहयोग आदि भी जरूरी है. हिमालय से निकल कर गंगासागर में मिलने तक यह नदी ढाई हजार किलोमीटर की यात्रा करती है. इसके तटों पर 29 बड़े शहर, 23 छोटे शहर और 48 कस्बे बसे हैं. करोड़ों लोगों की आबादी से निकलने वाले नाले और उद्योगों का कचरा गंगा में प्रवाहित होता है. इसे अचानक रोका नहीं जा सकता. फिर भी व्यवस्था बनाने में जितना समय लगना चाहिए और सरकार गंगा सफाई को लेकर जो दावे कर रही है, उनमें सच्चाई दिखाई नहीं देती. निश्चित रूप से नदी की सफाई के लिए कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी भी है. उत्तराखंड, यूपी, हिमाचल, हरियाणा, बिहार और झारखंड आदि राज्यों के तमाम सहायक नदियां भी गंगा में मिलती हैं. जब तक इन सहायक नदियों को स्वच्छ नहीं बनाया जाएगा गंगा भी साफ नहीं हो पाएगी. इस दिशा में अब तक बहुत ही कम काम हुए हैं.

निर्मल गंगा अभियान.
निर्मल गंगा अभियान.

26 जुलाई 2022 को भाजपा सांसद वरुण गांधी ने गंगा सफाई पर सवाल उठाते हुए ट्वीट किया था 'गंगा हमारे लिए सिर्फ नदी नहीं, 'मां' है. करोड़ों देशवासियों के जीवन, धर्म और अस्तित्व का आधार है मां गंगा. इसलिए नमामि गंगे पर 20,000 करोड़ का बजट बना. 11,000 करोड़ खर्च के बावजूद प्रदूषण क्यों? गंगा तो जीवनदायिनी (life giving ganga) है, फिर गंदे पानी के कारण मछलियों की मौत क्यों? जवाबदेही किसकी?' स्वाभाविक है कि सरकार को इन सवालों के जवाब देने होंगे. यदि उत्तर प्रदेश की बात करें तो 2019 के महाकुंभ मेले में 24 करोड़ श्रद्धालुओं ने प्रयागराज स्थित संगम तट पर डुबकी लगाई थी, तब मेले के आयोजन पर 4200 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. वहीं 2025 में लगने वाले कुंभ मेले के लिए सरकार ने 6800 करोड़ रुपये खर्च करने का बजट रखा है. इससे समझा जा सकता है कि गंगा और इसके तट पर लगने वाले मेले का भारतीय समाज और बहुसंख्यक हिंदुओं के लिए क्या महत्व है. जब सरकार आयोजनों पर सैकड़ों करोड़ खर्च कर सकती है, तो गंगा को निर्मल बनाने के लिए क्यों नहीं?

निर्मल गंगा अभियान.
निर्मल गंगा अभियान.

22 जुलाई 2022 को एनजीटी ने राष्ट्रीय गंगा परिषद (National Ganga Council) की रिपोर्ट के आधार पर कहा था कि इतनी घोषणाों के बाद भी जुलाई 2022 तक पांच प्रमुख गंगा प्रवाह वाले राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में गंगा नदी में 60 फीसदी बिना उपचार वाले सीवेज की निकासी जारी है. एनजीटी ने अपनी रिपोर्ट में पाया था कि गंगा प्रवाह वाले राज्यों में एसटीपी और सीईटीपी न सिर्फ 60 फीसदी तक कम हैं, बल्कि अपनी क्षमताओं से भी कम काम कर रहे हैं. एनजीटी की यह रिपोर्ट सरकारी तंत्र की उदासीनता की ओर इंगित करती है. इसलिए देश की 40 फीसद आबादी को उर्वरा भूमि और पानी देने वाली करोड़ों लोगों की आस्था की प्रतीक एक नदी के संरक्षण और निर्मलीकरण की योजनाओं पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है.

पर्यावरण और नदी विशेषज्ञ प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता.
पर्यावरण और नदी विशेषज्ञ प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता.

इस संबंध में पर्यावरण और नदी विशेषज्ञ प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता (Environment and river expert Professor Venkatesh Dutta) कहते हैं 'शहरी आर्थिक और औद्योगिक क्षेत्रों से मीठे पानी की लगातार बढ़ती मांग और संरचनात्मक नियंत्रण के कारण गंगा का पारिस्थितिकी तंत्र (ganga ecosystem) प्रभावित हो गया है. गंगा पुनर्जीवन और संरक्षण के चार संरचनात्मक स्तंभों में निरंतर प्रवाह, प्रवाह, भूवैज्ञानिक विशेषताओं का संरक्षण और जलीय जैव विविधता का संरक्षण शामिल हैं. इसलिए यह समझ लेना चाहिए कि इन चार बिंदुओं को एकीकृत किए बिना गंगा की सफाई का सपना साकार नहीं हो सकता.' वह कहते हैं 'लगभग तीन दशकों तक गंगा को साफ करने की अलग-अलग नीतियां अपनाई गईं. इनमें गंगा एक्शन प्लान और राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (Ganga Action Plan and National Ganga River Basin Authority) की स्थापना आदि प्रयास शामिल थे, लेकिन इनके ठोस नतीजे सामने नहीं आ सके. इसलिए स्मार्ट शहर के विकास के नाम पर नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के बुनियादी ढांचे के विकास और विनाश को रोका जाना चाहिए, ताकि जल स्रोतों की रक्षा और उनका संरक्षण किया जा सके.' प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता (Professor Venkatesh Dutta) कहते हैं 'गंगा को जल देने वाली सहायक नदियों की अनदेखी कर दी गई है. गंगा की आठ प्रमुख सहायक नदियां गोमती, घाघरा, यमुना, सोन, रामगंगा, गंडक, दामोदर और कोसी का संरक्षण भी बहुत जरूरी है. हालांकि छोटी नदियां उपेक्षित हैं. इसलिए उन्हें प्रदूषण से बचाने की योजनाएं भी नजरअंदाज हो जाती हैं.'

यह भी पढ़ें : अखिलेश यादव ने कहा, विकास की दौड़ में यूपी पिछड़ा, जनता को झूठे सब्जबाग दिखा रही भाजपा सरकार

Last Updated : Jan 7, 2023, 8:39 AM IST
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