लखनऊ: दुर्गा पूजा की रौनक इस बार फीकी रहेगी, क्योंकि कोरोना के चलते सरकारी नियमों के दायरे में ही इस बार समितियों को त्योहार मनाना होगा .पहले पितृपक्ष से ही दुर्गा पूजा पंडालों के निर्माण का काम शुरू हो जाता था और दुर्गा प्रतिमाएं भी आकार लेने लगती थी. लेकिन इस बार पूरा सन्नाटा पसरा हुआ है. दुर्गा पूजा के आयोजन में सबसे ज्यादा बंगाली समाज बढ़-चढ़कर आगे रहता था. लेकिन उनके उत्साह पर कोरोना ने पानी फेर दिया है. इस त्योहार के लिए पूरे साल बंगाली समाज को इंतजार रहता है, लेकिन इस बार कोरोना ने उनके इस त्योहार की रौनक को छीन ली है.
छोटी मूर्तियों के साथ करनी होगी पूजा
इस बार बंगाल से ढाक बजाने वाले भी नहीं आयेंगे, क्योंकि जहां ट्रेनों की संख्या कम है, तो वहीं कोरोना वायरस का संक्रमण भी जारी है. अब भव्य दुर्गा पूजा पंडाल नहीं, बल्कि छोटी मूर्तियों के साथ ही उन्हें पूजा करनी है. वह भी नियमों के दायरे में. वहीं दूसरी तरफ मूर्तियां बनाने वाले कारीगर भी मायूस हैं. क्योंकि उनके हाथों से एक बड़ा रोजगार भी छिन गया है. अकेले लखनऊ में ही 80 से ज्यादा रजिस्टर्ड दुर्गा पूजा समितियां हैं. वही छोटे-बड़े पंडालों की संख्या 500 से भी ज्यादा हैं.
इस बार नहीं सजे हैं दुर्गा पूजा पंडाल
कोरोना के चलते इस बार दुर्गा पूजा की रौनक फीकी नजर आ रही है. 1 अक्टूबर कोयोगी सरकार ने कई प्रतिबंधों के साथ दुर्गा पूजा मनाने की अनुमति दी है. वही इस बार दुर्गा पूजा के भव्य पंडाल और भारी भीड़ के लिए मनाही भी है. राजधानी लखनऊ में बंगाली क्लब 105 साल पुरानी समिति है, लेकिन इस बार यहां भी दुर्गा पूजा पंडाल अभी तक नहीं बना है. बंगाली क्लब दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष अरुण बनर्जी बताते हैं कि इस बार उनके यहां न तो भव्य पांडाल बनेगा और न ही बड़ी मूर्तियां स्थापित होंगी. छोटी मूर्तियों के सहारे ही वो दुर्गा पूजा के इस त्योहार को मनाएंगे. रविंद्र पल्ली पूजा समिति की दुर्गा पूजा पंडाल की रौनक पूरे लखनऊ में सबसे अलग होती थी, लेकिन इस बार यहां के पार्क में अभी कोई तैयारी ही नहीं है. समिति के सेक्रेटरी मिठू दास बताते हैं कि इस बार केवल नाम के लिए दुर्गा पूजा का आयोजन होगा.
कोरोना ने छीन लिया रोजगार
राजधानी लखनऊ में 50 से ज्यादा बंगाली समितियां है, जो दुर्गा पूजा का आयोजन बड़े पैमाने पर करती है. लेकिन इस बार पूरा आयोजन ही फीका है. 4 महीने पहले से दुर्गा पूजा पंडाल का ढांचा तैयार होने लगता था. जिसमें बंगाली कारीगर हिस्सा लेते थे, लेकिन इस बार अभी तक कोई भी पंडाल नहीं बना है. वहीं हजारों की संख्या में मूर्तियां बनाने के लिए भी बंगाली मूर्तिकार आते थे. लेकिन कोरोना वायरस के कारण इस बार ज्यादातर लोग दुर्गा पूजा पंडाल नहीं सजा रहे हैं. वहीं इस बार बड़ी मूर्तियों की मांग भी नहीं है. पूरे दुर्गा पूजा पंडाल की बनावट से लेकर विसर्जन तक हजारों लोगों को रोजगार उपलब्ध होता था. लेकिन इस बार कोरोना ने कारीगर से लेकर मजदूरों का रोजगार छीन लिया है.
बंगाल से नहीं आयेंगे ढाक बजाने वाले
हर साल दुर्गा पूजा में बंगाल से ढाक बजाने वाले को बुलाया जाता था. लेकिन इस बार इन कलाकारों को भी नहीं बुलाया जा रहा है. नवरात्र के मौके पर बंगाली दुर्गा पूजा समितियां ढाक बजाने वाले कई कलाकारों को बुलाते थे, लेकिन इस बार कोरोना के चलते कलाकार नहीं आ रहे हैं.
मायूस है मूर्तिकार
राजधानी में सैकड़ों की संख्या में बंगाल से मूर्ति बनाने वाले कलाकार पहुंचते थे. लेकिन इस बार कोरोना के चलते बड़ी संख्या में मूर्तिकार नहीं पहुंचे हैं. रविंद्र पल्ली में तीन पीढ़ियों से मूर्ति बनाने वाले सुजीत पाल बताते हैं कि हर बार उनके पास 35 से 40 बड़ी मूर्तियों का आर्डर रहता था. लेकिन इस बार केवल 22 मूर्तियां ही बनाने का ऑर्डर मिला है. यह मूर्तियां भी काफी छोटी है. जिनकी कीमत पांच से 6 हजार रुपये हैं, जबकि पिछले साल उनके यहां एक एक मूर्ति की कीमत 40 से 50 हजार होती थी. उनके यहां 20 बड़ी मूर्तियां पड़ी हुई है. जिनका कोई खरीदार नहीं है .कोरोना के चलते अब रोजगार भी घटकर 25 फीसद रह गया है.
राजधानी लखनऊ में दुर्गा पूजा की तैयारियां फीकी है. शहर के ज्यादातर पार्कों में सजने वाले पांडाल अभी तक खाली है. इस बार टेंट का सहारा लेकर ही पंडालों में छोटी मूर्तियां स्थापित की जाएंगी. वही कोरोना वायरस से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजेशन को भी ध्यान में रखकर काम किया जाएगा.