लखनऊ: लोहिया संस्थान से डॉक्टरों का पलायन जारी है.ताजा मामला गैस्ट्रो मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ प्रशांत वर्मा से जुड़ा है. उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया है. विभाग में इकलौते डॉक्टर के छोड़ने से सेवाओं पर ताला लगना तय है. ऐसे में अब पेट रोग के मरीजों को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. लोहिया संस्थान में करीब एक हजार बेड हैं. यहां डेढ़ सौ के करीब डॉक्टर कार्यरत हैं. वहीं सौ के करीब डॉक्टरों के पद रिक्त हैं. ऐसे में कई विभाग एक-एक डॉक्टर के सहारे चल रहे हैं.
इसके चलते मरीजों को इलाज के लिए दुश्वारियां उठानी पड़ रही हैं.हालांकि गैस्ट्रो मेडिसिन के अध्यक्ष डॉ प्रशांत वर्मा का इस्तीफा संस्थान प्रशासन ने अभी मंजूर नहीं किया है. इसमें तीन माह का नोटिस पीरियड है.
150-200 से अधिक की होती है ओपीडी
लोहिया संस्थान में रोजाना 6 से 7 हजार मरीज ओपीडी में आते हैं. इसमें गैस्ट्रो मेडिसिन में 150 से 200 मरीजों को हर ओपीडी में देखा जाता है. इकलौते डॉक्टर के छोड़ने से विभाग में कोई भी संकाय सदस्य नहीं बचेगा. ऐसे में विभाग की सेवाएं बाधित होना तय है.
इंडोक्राइन विभाग में पड़ चुका ताला
इससे पहले संस्थान के इंडोक्राइन मेडिसिन विभाग के इकलौते डॉक्टर मनीष गुच्छ अलविदा कह चुके हैं. उन्होंने प्राइवेट अस्पताल में नौकरी ज्वाइन की है. ऐसे में इंडोक्राइन विभाग में ताला लग गया. यहां इलाज करा रहे मरीजों को दुश्वारियां झेलनी पड़ रही हैं. मरीज प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर हैं. वहीं एनस्थीसिया विभाग समेत 8 से 10 डॉक्टर नौकरी छोड़ चुके हैं.
दो ही अस्पतालों में पेट का इलाज
शहर के तीन सरकारी संस्थानों में गैस्ट्रो मेडिसिन की सुविधा है. इसमें एसजीपीजीआइ, केजीएमयू, लोहिया संस्थान में गैस्ट्रो मेडिसिन का विभाग है. इसमें केजीएमयू में भी सिर्फ एक डॉक्टर हैं. वहीं एसजीपीजीआई में मरीजों की लंबी लाइन है. अब लोहिया संस्थान में सेवाएं बेपटरी होने से मरीजों के लिए और आफत बनेगी.
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